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हम लोग सुबह करीब 9 बजे सोमवार को चित्रकूट से कालिंजर दुर्ग के लिए स्कार्पियो से निकले। हर यात्रा मन को तरोताजा कर देती और हमारे इतिहास की स्मृति ताजा कर देती है तो यह यात्रा चित्रकूट से बदौसा होते हुए मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती जनपदों से होते हुए अंततः बांदा जनपद के कालिंजर दुर्ग मे हम पहुंच गए।

उमस भरा दिन था। गर्मी से प्राण जा रहे थे किन्तु नीलकण्ठ के दर्शन करने को प्राण तड़प रहे थे तो हम पहुंच चुके थे मंदिर प्रांगण में।

इससे पहले हमने देखा कि पुरातत्व विभाग ने काफी काम किया है। सड़के पहले से अब अच्छी हैं और कुछ नया निर्माण कार्य हुआ है। हमारी प्राचीन धरोहर को सहेजने की दिशा मे सरकार अच्छा काम कर रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार को धन्यवाद अवश्य देना चाहिए।

इस बीच मुझे याद आया कि मैं उन्हीं नीलकण्ठ के दर्शन करने पहुंची हूँ जिन्होंने देव जीवन , मनुष्य जीवन के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए खुद विष पान कर लिया था। सागर मंथन से जो विष निकला उसका पान कर शिव जी ने सबको जीवन का वरदान दिया था।

जब मैं दर्शन करने पहुंची तो साथ मे मेरे पति संतोष त्रिपाठी भी थे। और मेरी सहयोगी राखी भी दर्शन की। मेरे साथ हमेशा लिखने पढ़ने मे सहयोगी जर्नलिस्ट सौरभ द्विवेदी रहे जिससे यात्रा के धार्मिक आध्यात्मिक और ऐतिहसिक पक्ष मे प्रकाश पड़ जाता है।

मुझे वहाँ भगवान नीलकण्ठ के अलौकिक दर्शन प्राप्त हुए। पंडित जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि यहाँ प्राकृतिक जलाभिषेक भगवान का होता रहता है और जो लोग पीड़ा मे होते हैं जिनके संकट काटने होते हैं भगवान उनको ही दर्शन देते हैं।

तो यकीनन सौरभ को याद आया कि मैं एक बार जब आया करीब 6 वर्ष पहले और तब के बाद अब दर्शन करने आ पाया हूँ तो सचमुच ऐसा होता होगा कि भगवान की इच्छा से ही उनके दर्शन होते हैं और सच तो है गीता मे पता चलता है कि भगवान की इच्छा से ही अर्जुन उनके दर्शन कर पाता है।

वहाँ से दर्शन करने के बाद हमने दुर्ग मे सरोवर देखे तो इससे समझ मे आता है कि पानी की मशीन पहाड़ क्यों कहे जाते हैं। ऐसे पहाड़ मे जल संरक्षण होता है जो भूगर्भ से हमे आसानी से प्राप्त होता है और पानी का यही विज्ञान है।

राजा का महल वहाँ बंद है। यहाँ बिना इजाजत के आप जा नही सकते लेकिन बाहर से आप देख सकते हैं। इस पूरे कालिंजर दुर्ग मे हर दीवार पर भगवान की मूर्तियां उकेरी हुई हैं।

एक से बढ़कर एक कला का दर्शन पहाड़ मे किया जा सकता है। और कला समर्पण का परिणाम है चूंकि कितना समय लगता होगा कि एक खूबसूरत मूर्ति को उकेरने मे इसलिए इनका संरक्षण हमेशा होना चाहिए लेकिन एक बात मन को चुभती रही कि मुगल शासक इतने क्रूर रहे कि इन मूर्तियों मे छिपी कला का भी सम्मान ना कर सके और टूटी हुई और खंडित मूर्तियां औरंगजेब की क्रूरता का प्रमाण हैं जबकि भगवान नीलकण्ठ आज भी पूजे जा रहे हैं।

सत्य सनातन हिन्दू धर्म की आस्था का प्रमाण है कालिंजर दुर्ग। यहाँ जल प्रपात आकर्षक हैं और उमस भरे दिन छोड़कर अन्य समय पर बेहद शांति का अनुभव किया जा सकता है। अगर किसी को धार्मिक आध्यात्मिक शांति चाहिए तो भारत देश के ऐसे स्थलों मे मिल सकती है अगर ऐसा कुछ खोज रहे हैं तो एक यात्रा करिए चूंकि जीवन एक यात्रा है और यात्रा मे सवालों के जवाब मिल जाते हैं।

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