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केन्द्र सरकार चार साल की उपलब्धियां गिना रही है तो वहीं विपक्ष का प्रमुख दल कांग्रेस ने विश्वासघात दिवस मना कर दिलचस्प मोड़ ला दिया है। वैसे भी चुनावी वर्ष आते ही जनता और नेता की दिलचस्पी राजनीति को लेकर बढ़ जाती है।

दिल्ली से लेकर जिले और ग्राम स्तर तक चर्चा का बाजार गरम हो जाता है तो वहीं तहसील व जिला मुख्यालय आंदोलन के चारागाह बन जाते हैं , जहाँ पशुओं के समान झुंड के झुंड आंदोलनकारी दिखा करते हैं और नारेबाजी से माहौल गुंजायमान कर देते हैं। हालांकि यह सब ध्वनि प्रदूषण के केन्द्र से बाहर हैै , ठीक ऐसे ही जैसे तेज हार्न वाले ट्रकों पर कोई प्रतिबंध वर्तमान में नहीं लगाया गया तो ध्वनि प्रदूषण के सबसे बड़े कारक यही हैं।

विपक्ष का कहना है कि नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की गरिमा नष्ट की है , यकीनन विपक्ष की बात सच भी है कि उन्होंने उन्हें ही प्राथमिकता से प्रधानमंत्री बनाया जो रिड्यूस व्वालूम में शांति से देश को इस तरह चलाए कि वैश्विक स्तर पर भारत व भारत के पीएम कि कोई खास चमक – धमक के दर्शन नहीं हुए। अपवाद स्वरूप इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल एवं लाल बहादुर शास्त्री के समय को छोड़कर यदाकदा कुछ कार्य से इतर कोई खास वर्चस्व सुनाई नहीं दिया।

जैसे कि एच. डी. देवगौड़ा ऐसे पीएम के रूप में जाने जाएंगे जिनके नाम की एच. डी . टू व्हीलर ( bike ) ने सड़क पर इतना शोर मचाया जितना कि स्वयंं पीएम ने शांति बनाए रखकर भरपाई की।

इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री पद से गुजरे हुए पहले इंद्र माने जाएंगेे , जिन्होंने सत्ता बरकरार रखने की कोशिश नहीं की बल्कि इंद्र का स्वभाव था कि ध्रुव की तपस्या से भी डर गया था। किन्तु इनके जैसे आज्ञाकारी पीएम पहले कभी नहीं हुए।

पी. वी. नरसिम्हा राव भी ऐसे पीएम थे , जिनकी मौत की खबर भी साइलेंट मोड मे आई और दो मिनिट का शोक मनाकर भूल चुकेे थे। विपक्ष का सोचना सही है कि पीएम ऐसा हो कि उसकी मौत भी हो जाए तो लोग दो मिनट का शोक मनाकर सदा सदा के लिए भुला दें , यदाकदा याद कर लें तो कर लें।

अगर याद किया जाना चाहिए तो जवाहरलाल नेहरू और समस्त गांधी परिवार को और उन्हें ही पीएम बनने – बनाने की योग्यता है। जिन्होंने देश के लिए कुर्बानियां दीं , यहाँ तक की पलक पांवडे बिछाए रहें कि कुछ ना हो तो प्रियंका वाड्रा गांधी को लेकर आइए , सचमुच इंडिया गेट में जस्टिस फार आसिफा के समय का वायरल वीडियो बता रहा था कि उन्हें कांग्रेसी पीएम बनाने को कितनेे आतुर हैं कि स्वयं मिसेज वाड्रा को याद दिलाना पड़ा कि हम किसलिए आए हैं यहाँ ?

नरेन्द्र मोदी बहुत शोर मचाने वाले प्रधानमंत्री हैं , कभी चीन से तो कभी जापान से नगाड़ा बजाते हैं और कुछ नहीं तो अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद भी रूस पहुंचकर भारत ही नहीं विश्व को चौंका देते हैं। संभव है कि इतने शोरगुल के बाद जनता हमेशा ऐसे प्रधानमंत्री को याद रखे तो क्यों ना बहुतायत चुप रहने वाले मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री बनाए जाएं ताकि नेहरू-गांधी परिवार की मर्यादा की सीमा को कोई लांघ ना सके।

सबसे बड़ी चौकाने वाली बात है कि बंदा चार साल से देश – विदेश में हिन्दी में बोल रहा है और गांव के कल्लू – मल्लू भी समझ रहे हैं कि उनका प्रधानमंत्री आस्ट्रेलिया में क्या बोलकर आया है , इसके पहले प्रधानमंत्री की गरिमा ही यही थी कि अंग्रेजी में ऐसा बोले कि चर्च के फादर के सिवाय आसिफ चच्चा , रामू काका समझें तो समझें ना समझें तो ना समझें आखिर दोष उनका है , अंग्रेजी घोट कर क्यों नहीं पिया , भला गांव की कमलाबाई क्यों ना कहे ” ई पीएम का होत है ?” पीएम झूंंठ बोलता है ? तो एएम सच बोलत है का ?

इसलिये कांग्रेस को सोचना चाहिए कि देश बदल रहा है और देश की धमक वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है। पहली बार भारत के किसी प्रधानमंत्री को लंबे अर्से बाद अटल बिहारी वाजपेयी के बाद वह सम्मान मिला जिसका भारत हकदार है।

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