By :- Saurabh Dwivedi
भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यहाँ अक्सर चमत्कार देखने को मिल जाते हैं। जब एक लोकतांत्रिक दल में कोई गरीब मध्यवर्गीय आदमी सफलता के सोपान को स्पर्श करता है तब लोकतंत्र सहज ही आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी का संगठन – चुनाव संपन्न हुआ और जिलाध्यक्ष पद पर प्रदेश भर के जनपदों से घोषणाएं हुईं। वहीं प्रदेश के सबसे पिछड़ा एवं आकांक्षी जिला से भी चंद्रप्रकाश खरे के नाम की घोषणा हुई।
चंद्रप्रकाश खरे की पहचान कुर्ता नहीं सफारी है। यह एक दशक से सफारी पहने हुए नजर आते रहे। जनपद की सांगठनिक राजनीति में जिला उपाध्यक्ष तक के पद को सुशोभित करते रहे। किन्तु जिलाध्यक्ष पद टेड़ी खीर माना जाता है। जिस पर अक्सर बाहुबली और धनबली को महत्व मिलता नजर आता रहा है। अथवा जातीय समीकरण की तिकड़म भिड़ाते हुए इस पद की घोषणा होती रही।
सत्ता के समय भी इस पद के लिए धनबल , बाहुबल और पहुंच की भारी भरकम तिकड़म लगाई जा रही थी तो वहीं जातीय आधार पर भी कयास लगाए जा रहे थे। इस परिप्रेक्ष्य पर तमाम राजनीतिक पंडितों ने चंद्रप्रकाश खरे के नाम को खारिज कर दिया , यह कहकर कि इनका कोई जातिगत जनसांख्यकीय आधार नहीं है। जिनके पीछे कम से कम किसी एक जाति का बड़ा वोटबैंक हो !
एक बात और बहुत बड़ी थी कि सफारी पहनने वाले व्यक्ति के पास अपार धन नहीं है। इनके पास कोई स्कार्पियो और फार्चुनर नहीं है। पहनने के लिए सफारी तो है पर चढ़ने के लिए टाटा सफारी नहीं है। कुलमिलाकर कहा जाए तो दो पहिया वाहन को छोड़कर कदम ताल कर राजनीति की ताल से ताल मिलाने वाली शख्सियत हैं।
इनकी अपनी राजनीतिक दास्तान है। यह राम मंदिर आंदोलन के दीवाने हैं। इस दीवानगी के चलते इन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देकर राम जन्मभूमि के पास चबूतरे में धरना प्रदर्शन किया था। यही वो संघर्ष है , जो आज इन्हें यहाँ तक लेकर आया है।
चूंकि राजनीति बड़े संघर्ष का क्षेत्र है और वर्तमान समय में तो माफियाओं के चंगुल मे पहुंच चुकी है। जहाँ तमाम माफिया करोड़ो खर्च कर राजनीतिक सफलता विभिन्न दलों में हासिल कर रहे हैं। और चुनावी दंगल में तो नोटें अदृश्य रूप से हवा में उड़ान भरा करती हैं।
किन्तु राजनीति की यह दूसरी तस्वीर है , जिसमें चंद्रप्रकाश खरे की भी एक तस्वीर है। इनकी तस्वीर से गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले वैचारिक युवाओं को बल मिलेगा कि हाँ संघर्ष की पूंछ अभी भी है , कटी नहीं है !
भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल सहित शीर्ष नेतृत्व ने इस प्रकार का फैसला लेकर बहुतों की उम्मीदों को जिंदा रखा है। ताकि गरीबों की उम्मीद वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मर ना सके , यह शुभ संकेत है।
भाजपा वर्तमान में भारत की सबसे धनवान पार्टी है और इस दल में एक गरीब मध्यवर्गीय परिवार का आदमी जब जिलाध्यक्ष बनता है , वह भी सत्ता के समय तो वास्तव में कहा जा सकता है अंततः जीतता संघर्ष ही है।
इस नाम के फैसले के साथ जनपद चित्रकूट के जमीनी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार नजर आ रहा है। सभी संतुष्ट एवं ऊर्जामय नजर आ रहे हैं। ऐसा कोई भी नहीं है जो इस फैसले से नाखुश हो ! यह भी सच है कि भाजपा वह दल है जो समय-समय पर इस प्रकार के फैसले लेकर चर्चा का विषय बन जाती है। कभी सब्जी वाले के परिवार से टिकट देती है तो कभी एक सामान्य संघर्षशील कार्यकर्ता को जिलाध्यक्ष बनाकर आकर्षण का केन्द्र बन जाती है।