
राजगुरू स्वामी डा. बदरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज कथा कहते हुए अभेद रहस्य उजागर करते हैं। मन के रहस्य आप सरलता से कह देते हैं , जब आपने कहा कथा सुनना सरल है क्या ? जब मन मति और चित्त यहाँ लगेगा तब ना कथा सुन पाओगे ?
सच कह रहे हैं महाराज जी। मन मति और चित्त से मनुष्य का जीवन चलता है। यदि यह लगने लगे तो मनुष्य का कल्याण निश्चित हो जाता है , सब माया इसकी ही है। साधना क्या ? यही साधना है।
पूजा करते हुए यह बात मन मे आई और सोचने लगा हम साधारण लोग जब पूजा करने बैठते हैं तब कितने विचार मन मे आने लगते हैं। कितनी योजनाएं यह मन बनाने लगता है। और पूजा मे विघ्न पड़ने लगता है। यह आंतरिक विघ्न हैं। सच विघ्न कहीं और नही हैं सब हमारे अंदर हैं।

जब मन , मति और चित्त नही लगता तब पूजा नही हो पाती। ऐसे ही कथा सुनना है जब यह तीनों लगते हैं तब हम कथा सुन पाते हैं। यही साधना है , यही प्रार्थना है जिसे महसूस कर और सुनकर भगवान कृपा करते हैं तो मनुष्य का मन मति और चित्त एक साथ एक आकार और एक दिशा मे लगने लगता है। वह धर्म और आध्यात्म के कार्यों मे लग जाता है। उसे कथा सुनने का अवसर मिल जाता है। वह कथा सुनने मे सक्षम हो जाता है।

असल बात तो यह है कि परमात्मा की कृपा से कथा सुनने का सामर्थ्य आता है और कथा करवाने का सामर्थ्य आता है। यह सच है कि मनुष्य का कल्याण कथा सुनने मे निहित है।
जब मन मति और चित्त समरस होकर कार्य करते हैं तब साधारण जीवन से साधक जीवन की ओर मनुष्य उन्नति करने लगता है। भक्त और शिष्य साधारण जीवन से साधक जीवन के पात्र हो जाते हैं। गुरूदेव की शरण मे सभी साधक जीवन जीने लगते हैं।