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ऑपरेशन सिंदूर, एक मानवीय राहत एवं सैन्य समर्पण का मिश्रित अभियान था। लेकिन वह ‘सिंदूर’ अब केवल सुहाग का प्रतीक नहीं, साहस और सच्ची सेवा भावना की लाली बन चुका है। अब चूड़ियों की खनक नहीं, बूटों की धमक बदलाव का संगीत रच रही है।

भारत ने एक ऐतिहासिक दृश्य देखा ;
वर्दी पहने दो महिला सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह  राष्ट्र के सबसे संवेदनशील और गौरवपूर्ण सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग कर रही थीं। यह केवल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं थी। यह उस युगांतकारी क्षण का उद्घोष था जहाँ भारत की बेटियाँ अब वंदना की नहीं, विकास की कमान संभाल रही हैं।

सोफिया और व्योमिका कोई चमत्कार नहीं हैं। वे उस चेतना की प्रतिनिधि हैं जो वर्षों से प्रतीक्षित थी — स्त्री का अपनी संपूर्ण क्षमताओं के साथ राष्ट्रीय नेतृत्व में उतरना। एक लंबे दौर तक स्त्रियों को सीमित करने वाली सामाजिक संरचनाएँ अब दरक रही हैं, और उन दरारों से नए युग की रोशनी छनकर आ रही है।

इन दोनों अधिकारियों की मौजूदगी, उनके शब्द, उनकी आँखों की दृढ़ता — सबने स्पष्ट संकेत दिया कि आज की स्त्री न तो कोई विशेषाधिकार मांग रही है, न सुरक्षा का वादा। वह केवल अवसर मांग रही है — कर्तव्य निभाने का अवसर। और जब उसे वह अवसर मिलता है, तो वह न केवल सफल होती है, बल्कि उदाहरण बन जाती है।

लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी, जो एक मुस्लिम महिला होते हुए भी भारत की सेना में ऊँचे ओहदे पर कार्यरत हैं, हमारे उस सामाजिक पूर्वग्रह को खारिज करती हैं जो अल्पसंख्यकों को केवल उपेक्षा या सहानुभूति के पात्र के रूप में देखता है। वे बताती हैं कि अल्पसंख्यक होना कोई कमजोरी नहीं, एक जिम्मेदारी भी हो सकती है — पूरे समुदाय के लिए प्रेरणा बनने की जिम्मेदारी।

विंग कमांडर व्योमिका सिंह, वायुसेना की तेजस्वी छवि के साथ, यह स्पष्ट करती हैं कि महिलाएँ अब केवल सहायक की भूमिका में नहीं — निर्णायक और संचालनकर्ता की भूमिका में हैं। उनके स्वर में नेतृत्व की स्पष्टता थी और उनकी उपस्थिति में आने वाले कल की तस्वीर।

ऑपरेशन सिंदूर, एक मानवीय राहत एवं सैन्य समर्पण का मिश्रित अभियान था। लेकिन वह ‘सिंदूर’ अब केवल सुहाग का प्रतीक नहीं, साहस और सच्ची सेवा भावना की लाली बन चुका है। अब चूड़ियों की खनक नहीं, बूटों की धमक बदलाव का संगीत रच रही है।

यह बदलाव केवल सैन्य व्यवस्था में नहीं, समाज के हर स्तर पर दस्तक दे रहा है। लेकिन सवाल है — क्या हमारा समाज इस बदलाव के लिए मानसिक रूप से तैयार है? क्या हम अपनी बेटियों को केवल दुल्हन के रूप में नहीं, कमांडर के रूप में देखने के लिए तैयार हैं?

सच तो यह है कि अब तैयार होने के अलावा कोई विकल्प नहीं। क्योंकि यह बदलाव कहीं बाहर से नहीं आया — यह भीतर से निकला है। यह स्त्री के अपने आत्मबोध, अपने आत्मसम्मान और अपने आत्मनिर्णय से निकला है।

अब समय है कि हम स्त्रियों के बारे में बात करना बंद करें और स्त्रियों से बात करना शुरू करें — उन्हें उनके हिस्से की जगह देने के लिए नहीं, बल्कि उनके साथ मिलकर भविष्य गढ़ने के लिए।

लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की यह ब्रीफिंग केवल सैन्य भाषा नहीं थी — वह आने वाले युग का उद्घोष थी।
अब सवाल नहीं पूछे जाएंगे — उत्तर सामने खड़े होंगे।
अब चूड़ियाँ नहीं जपेंगी — कमांड करेंगी।

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