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Saurabh Dwivedi 

वैसे तो गहरे प्रेम में डूब जाने पर शायद कोई दिन ऐसा हो, जब पल भर की बात होने से खुश हो जाने का इंतजार ना हो। 
कुछ डे खास होते हैं और पर्व का दिन बेहद खास होता है। ऐसे ही होली डे पर अपनी प्रेयसी सखी के काल का इंतजार अवश्य रहेगा।
हनी के पास बतियाने का और कोई जरिया नहीं रह गया, सिवाय जिया की कृपा के ! वो सिर्फ इतना सोचता कि प्रेम एकतरफा हो सकता है पर यादें एकतरफा हों ऐसा कैसे हो सकता है ? 
असल में यह प्रेम कहानी बेहद अलहदा है, जिसमें दो परछाईं कल्पना ही कल्पना में प्रेम महसूस कर चुकी हैं, किन्तु इस प्रेम के बीच संसार की हकीकत वाली मान मर्यादा की फब्तियां विस्फोट कर जाती हैं। 
जिया स्वयं सोचती कि लोग क्या कहेंगे, इसलिये नैसर्गिक सुख महसूस कराने के बाद भी अनेक बार अलविदा कहते कहते फिर अलविदा सा ही कुछ घटित हो गया। 
ये अलविदा वाह्य है। जबकि अंतस में जिया और हनी के प्रेमिल एहसास अब भी मुकम्मल हैं। वो सिर्फ इसलिये कि जमाने के लोग कहीं भी ताक झांक कर सकते हैं, परंतु अंतस में ताक झाक और रोक टोक उनके बस की बात नहीं। 
हनी अब भी उस प्रेम को जी रहा है, बल्कि संकल्प से सिद्धि इतनी सी कि प्रेमिल एहसास को सदैव जीता रहूंगा, रचता रहूंगा। यह जिंदगी में उपहार की तरह है, हनी के चहुंओर जमाने भर की अन्यत्र खुशियां विचरण करती हैं। 
लेकिन हनी को सिर्फ और सिर्फ जिया की काल का इंतजार है। उसकी मदहोश आवाज अंतस में समा जाए। वो खुशी से भांग मिलाई हुई ठंडई के नशे जैसा बौरा जाए। 
जनाब प्रेम सुख से बड़ा त्योहार भला और क्या हो सकता है ? वियोग में हर पर्व फीका है और संयोग में हर दिन पर्व है। भले पल भर के लिए चांद और पृथ्वी की असीमित दूरी से कल्पनाओं में दो शब्द “हैप्पी होली” बोल दिए जाएं।  
काश एक बार ट्रिंग ट्रिंग हो जाए…..

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