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टक्कर : चित्रकूट के दो लाल, जालौन की ज़मीन पर सीधी भिड़ंत

राजनीति का रंगमंच अक्सर ऐसे दिलचस्प मुकाबलों का गवाह बनता है, जहां विचारधाराएं, व्यक्तित्व और रणनीतियाँ आमने-सामने होती हैं। कुछ ऐसा ही दृश्य इन दिनों उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद में उभर रहा है, जहाँ दो युवा  नेता पंकज मिश्र और अशोक जाटव  अपने – अपने दलों के प्रतिनिधि ( जनपद प्रभारी ) बनकर मैदान में उतरे हैं।

ये दोनों नेता सिर्फ अपने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि नहीं हैं, बल्कि एक ही माटी की उपज हैं। छात्र राजनीति से जन्मे ये दो सितारे आज कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों के भरोसेमंद चेहरे बन चुके हैं। एक ओर हैं अशोक जाटव, भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ता, जो अब जालौन के जनपद प्रभारी हैं, वहीं दूसरी ओर हैं पंकज मिश्र, कांग्रेस की ओर से जालौन की राजनीति को दिशा देने आए नए प्रभारी।

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इन दोनों में जहाँ राजनीतिक सोच में भिन्नता है, वहीं स्वभाव और शिष्टता में अद्भुत समानता है। सोशल मीडिया पर जब ये दोनों एक-दूसरे के सामाजिक कार्यों की सराहना करते हैं, तो यह राजनीति की उस दुर्लभ गरिमा का स्मरण कराता है जहाँ विपक्ष दुश्मनी नहीं, प्रतिस्पर्धा होती है। परंतु अब परिस्थितियाँ बदल रही हैं — विनम्रता की चादर के नीचे अब टक्कर की तलवारें म्यान से बाहर निकल चुकी हैं।

भाजपा के पास इस समय जालौन में संगठन, जनाधार और सत्ता का मजबूत आधार है। उनके पास खोने को बहुत कुछ है — सीटें, प्रतिष्ठा और जनविश्वास। दूसरी ओर कांग्रेस एक पुनर्निर्माण की स्थिति में है। पंकज मिश्र जैसे जुझारू नेता के लिए यह चुनौती सिर्फ एक चुनावी ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि अवसर है — खोने को कुछ नहीं, पाने को बहुत कुछ।

जातीय समीकरण भी इस मुकाबले को रोचक बना रहे हैं। भाजपा ने जहाँ एक दलित चेहरे को आगे कर जातीय संतुलन साधा है, वहीं कांग्रेस ने एक ब्राह्मण नेता को उतारकर परंपरागत समीकरणों को चुनौती देने की कोशिश की है। यह केवल संगठनात्मक टक्कर नहीं है, यह सामाजिक संदेशों और विचारधाराओं की भी भिड़ंत है।

अशोक जाटव जहाँ हिन्दुत्व के मुद्दे पर जनता को सीधे संबोधित करते हैं, वहीं पंकज मिश्र सामाजिक समरसता और विकास के मुद्दों पर आम सहमति बनाने का प्रयास करते हैं। एक तेज धार वाली राजनीतिक शैली अपनाता है, तो दूसरा संवाद की भाषा बोलता है।

जालौन की धरती अब सिर्फ एक राजनीतिक युद्धभूमि नहीं, बल्कि लोकतंत्र की परख का मैदान बन गई है, जहाँ दो सोचें, दो संस्कार, और दो शख्सियतें आमने-सामने हैं।

यह टक्कर केवल वोटों की नहीं है, यह भविष्य की दिशा तय करने वाली संघर्षगाथा है — और चित्रकूट की इस महाभारत में कौन अर्जुन साबित होगा, यह आने वाला समय बताएगा।

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