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By – manoj sharma

मनोविज्ञान का एक प्रयोग–एक बिल्ली को अच्छा भोजन दिया जाता था जिसे वह 2 से 3 घण्टे के अंतराल पर पचा लेती थी–बिल्ली स्वस्थ थी ।

फिर उसे भोजन करते समय कुत्ते की रिकॉर्डेड भौंक सुनवाई जाती थी –स्वाभाविक है कि बिल्ली भयग्रस्त हो जाती थी –भोजन तो वह पूरा खा लेती थी पर आशंका व भय से भरी हुई । अब खाना पचाने में 6 घण्टे का समय लगता था—धीरे धीरे भोजन सड़ने लगा, गैस बनने लगी, बिल्ली कमजोर होने लगी–फिर भूख व नींद भी गड़बड़ा गई ।

हमारे साथ तो यह रोज होता है—अखबार पढ़ते समय, टीवी देखते समय, मोबाइल–फेसबुक ,व्हाट्सएप्प –ये सब हमारे भीतर —रोष, विद्वेष, घृणा, निराशा, भय, आशंका पैदा करते है और इसी मनोभाव में हम भोजन करते है ।

इससे पेट का एक नया रोग –IBS =इरिटेबल बाउल सिंड्रोम पैदा हो गया है जो अल्सरेटिव कोलाईटीस बन जाता है । 70 प्रतिशत पेट को रोगियों को IBS बताया जाता है जिसे आयुर्वेद ग्रहणी या संग्रहनी कहता है ।

सब दवाईयां असफल सिद्ध होंगीं क्योंकि हर एक रोग हमारे विचार श्रृंखला के कारण पैदा हो रहा है । अब तो फिक्स है कि आप अगर ऐसा सोचते है तो क्या रोग होगा आपको —अगर कोई रोग है आपको तो आप यह सोचते ही है । यह विचार श्रृंखला जब तक नहीं टूटेगी तब तक आप स्वस्थ हो ही नहीं सकते है ।

अगर आप स्वस्थ होना ही चाहते है तो विचारों की जांच करवाइए ,अपने सोचने के ढंग की जांच करवाइए ।

( फेसबुक से साभार )

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