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@Anuj pandit

अभी कुछ दिन पहले यूट्यूब पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक सब्जी बेचने वाली महिला रैसा अंसारी ने कलेक्टर और नगर निगम अधिकारियों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलकर खूब खरी-खोटी सुनायी।

दरअसल बात यह थी कि ये लोग उससे सब्जी का ठेला हटाने को कह रहे थे।इस पर वह महिला तिलमिला गयी और धाराप्रवाह अंग्रेजी भाषा में यह बोलकर उनको फटकारी कि ठेला न लगायें तो क्या करें? यदि हम सब्जी का ठेला नहीं लगाएंगे तो हमारे बच्चे भूखों मर जायेंगे। क्या हम अपनी आर्थिक स्थिति का दुखड़ा केंद्र सरकार के सामने रोयें या नगर निगम के सामने?

बातचीत से पता चला कि वह महिला कोई साधारण महिला नहीं बल्कि उच्च शिक्षित एवं पीएचडी जैसी भारी डिग्रीधारी है। उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी सुनकर वहाँ पर मौजूद अधिकारी एवं अन्य लोग दंग रह गये!

जी,हाँ! यह घटना है मध्यप्रदेश के इन्दौर शहर की जिसका वीडियो देखकर हँसी नहीं आती बल्कि दुःख होता है और चिंता भी कि आखिर यह महिला ठीक ही तो कह रही है।

जिस तरह से देश में कोरोना के साथ आर्थिक संकट गहरा रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि छोटे-मोटे कारोबारी यदि काम-धन्धा ठप्प करके बैठ जाएंगे तो उनके और उनके बच्चों के मुँह में निवाला कौन डालेगा?

एक पीएचडी होल्डर महिला का यूँ सब्जी बेचना  देश की शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा तमाचा है जिसकी गूँज देश का प्रत्येक उच्च-शिक्षित व्यक्ति सुन सकता है।

जिस देश में एक उच्च-शिक्षित व्यक्ति को प्राथमिक शिक्षक की भर्ती हेतु  परीक्षा देनी पड़े, चपरासी का फॉर्म भरना पड़े या सब्जी,पकौड़े आदि बेचने पड़े उस देश का भविष्य कितना सुनहरा होगा,आप समझ सकते हैं!

एक उच्च-शिक्षित महिला या कोई पुरुष यदि सब्जी बेचता है तो निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि या तो उसने जुगाड़ से इतनी बड़ी डिग्री हासिल किया है या तो सरकार की चौपट शिक्षा व्यवस्था और रोजगार न मिलने के कारण उसने यह ऐसा रोजगार चुना है जिसमें पीएचडी का कोई काम नहीं!

एसी कमरों पर बैठकर राजनेता और आला अधिकारियों को तो सिर्फ़ यह फ़रमान जारी कर देना है कि  “घर पर रहें,सुरक्षित रहें” किन्तु तनिक  “रोज कमाओ,रोज खाओ” के सिद्धांत पर गुजारा करने वाली उस जनता से पूछिए जिसे पेट की क्षुधा शांत करने के लिए  रोज काम करना ही पड़ता है।

ऐसे में यदि लोग हाथ-पैर बांधकर घर में बैठ जाएंगे तो कौन भरेगा उनका पेट?  चार महीने से लगातार जूझ रही जनता के सब्र का बाँध शायद अब ढह चुका है,तभी वह बाहर निकलने को मजबूर है। यदि कोरोना का संकट दिनों दिन ऐसे ही गहराता रहा तो वे दिन दूर नहीं जब बहुसंख्यक जनता जीने को मोहताज होगी!

कोरोना संकट से बड़ा आर्थिक संकट है जिसकी चपेट में गरीब जनता पिसी जा रही है।

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