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महत्वपूर्ण चर्चा

ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश से पथगामिनी आभासीय पटल की संस्थापिका श्रीमती मंजुला श्रीवास्तवा द्वारा उपर्युक्त महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा का आयोजन किया। गया।
आयोजन की शुरुआत संस्थापिका ने शफदर हाशमी की कविता ‘किताबें कुछ कहना चाहती हैं’ से की।
कार्यक्रम की संचालिका युवा छात्रा लखनऊ विश्वविद्यालय की वालंटियर और SWF संस्था की समाज सेविका साक्षी पांडे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ये परिवर्तन का यूनीक दौर चल रहा है किताबों के महत्त्व को कोई भी प्लेटफॉर्म रिप्लेस नहीं कर सकता। वहीँ वाराणसी से जुड़े बीएच यू के छात्र और विचारक ऋषभ पांडे ने अपनी बात धूमिल की पंक्ति ‘कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है’ से प्रारम्भ करते हुए बहुत से सर्वे,आंकड़ों, भूमंडलीकरण, प्रकाशन के निजीकरण और पूंजीवाद से किताबों के महँगे होने से होने वाली समस्या की ओर श्रोता का ध्यान खींचते हुए कहा कि किताबों की अंतिम सदी चल रही है।

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लेकिन समाधान में अच्छी कहानियों पर बनाई जा रही फिल्मों को बच्चों को दिखाने की दलील देते हुए सोशल मीडिया से बच्चों की बौद्धिकता पर ख़तरा का डर भी ज़ाहिर किया। तत्पश्चात मुम्बई महाराष्ट्र से सूचना और प्रद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत सुश्री प्रज्ञा मिश्रा ने शरद कोकास की कविता ‘किताबें’ की पंक्ति ‘हम झोपड़ियों में रहते हैं ‘ से प्रारम्भ करके इस बात पर ज़ोर दिया कि समाज परिवर्तनशील है प्रत्येक परिवर्तन को स्वीकार करते हुए कदम से कदम मिलाते हुए अपना आकाश तलाश लेना हम पर निर्भर करता है।

https://youtu.be/fMvb7ILxutI

हमें पाइरसी से बचना चाहिए। किताब पढ़ना सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट है। सोशल मीडिया के दौर में भावशून्यता बढ़ गई है, लाइब्रेरी का चलन बंद हो गया है। किताबों की दुनिया को सोशल मीडिया भरपाई नहीं कर सकती। आकर्षण के लिए किताबों के कलेवर में बदलाव की दलील देते हुए कई उद्धरण भी दिए।

अंत में रायबरेली से जुड़े सरकारी हिंदी प्रवक्ता शोध कार्य में संलग्न मधुरेश सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सहयोगी बताते हुए कहा कि पुस्तकों के अध्ययन से चिंतन प्रखर होता है। सोशल मीडिया पर कई बार तथ्यों की भ्रामकता बनी रहती है प्रमाणिकता किताबों में ही मिलती है। जहाँ भौतिक रूप से वृद्धि हो रही है तो वहीं नैतिक साहित्यिक पतन की ओर भी इशारा किया। आशावादी दृष्टिकोण के साथ बताया कि गाँव में लाइब्रेरी आज भी गम्भीरता के साथ चलन में है ।
अंत में पटल की संस्थापिका मंजुला श्रीवास्तव ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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