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@Saurabh Dwivedi

पहाड़ी थाने मे विदाई का वक्त था। एक थाना से दूसरे थाना में कार्यभार ग्रहण करने जाना था। एक औपचारिक विदाई अमूमन परंपरागत होती है परंतु विदा होने वाले थानाध्यक्ष ऐसा कर गए कि सभी के हृदय द्रवित हो उठे। एक कहावत है कि मर्द को दर्द नहीं होता और उस पर भी पुलिस विभाग में दर्द का कहाँ कोई वास्ता समझा जा सकता है परंतु एक ऐसा व्यक्तित्व जो वास्तव में कुछ विशेष कर गया।

मंगलवार की शाम को थानाध्यक्ष सुशील चंद्र शर्मा का विदाई कार्यक्रम आयोजित था। उनका स्थानांतरण रैपुरा थाना हो चुका था। इसलिए एक थानाध्यक्ष को परंपरागत विदाई के जरिए दूसरे थाने पहुंचना था। ऐसे विदाई के कार्यक्रम में आमतौर पर सहकर्मी जय हिन्द सर कहकर विदा कर दिया करते हैं एवं नवागंतुक थानाध्यक्ष भी लगभग एक परंपरा निभा देते हैं।

सुशील चंद्र शर्मा के विदाई समारोह के समय एक विशेष पल आया। जब उन्होंने अपने सहकर्मियों से पीछे मुड़कर कहा कि ” भाई कोई गलती माफ करना ” यह शब्द उन्होंने रूंधे हुए गले से कहा और फिर द्रवित करने वाला दृश्य दृश्यमान हो जाता है। यही उनके उदार हृदय का प्रमाण है कि अपने सहयोगियों से ना होने वाली गलती के लिए माफी मांग रहे थे कि यदि अनजाने मे कोई गलती की हो तो माफ करना , अब इतने मे सभी सहकर्मियों का हृदय द्रवित हो गया।

मेरे हृदय ने पहली बार आंखो से देखते हुए किसी पुलिस शख्सियत को विदा होते समय रोते हुए देखा। मैंने महसूस किया कि अरे कोई पुलिस का इंस्पेक्टर यूं रो भी सकता है ? हाँ सचमुच इंस्पेक्टर सुशील चंद्र शर्मा थाना से विदा होते हुए सहकर्मियों से औपचारिक मुलाकात में रोते जा रहे थे , एकाएक उनकी आंखो की अश्रुधारा किसी अविरल बहती नदी की तरह बहने लगी थी।

वे एक हथेली से आंसुओं को पोछते जा रहे थे और आंसू बहने से रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। मैंने पहली बार इतनी संवेदनशीलता को पुलिस विभाग मे नजदीक से महसूस किया। एक ऐसा व्यक्तित्व जो हाथ जोड़कर सबसे मिल रहा था और रोता जा रहा था।

वास्तव मे एक संवेदनशील हृदय ऐसा ही होता है कि उसका स्टाफ एक परिवार बन जाता है। एक परिवार के परिजन की तरह सभी से मिल रहे थे और अपनत्व की रसधार छोड़कर सभी को मुग्ध कर गए।

जैसे ही वह थाना का गेट पार किए तो मैंने नजदीक से तस्दीक की , कुछ सहकर्मियों से चर्चा छेड़ दी कि अरे आपके साहब तो रो दिए ! अब सहकर्मियों की जुबान एक – एक कर बारी – बारी से जब चलने लगी तो लगभग सभी ने कहा कि सचमुच वे बड़ा ख्याल रखते थे। सभी को एक परिवार की तरह मानते थे। किसी पर्व मे सभी से परिवार की तरह मिलते-जुलते थे। जन्माष्टमी रही हो या होली का त्योहार साहब घुलमिल कर अपनत्व से मनाए थे।

एक मुख्य बात सामने आई कि कर्तव्य निभाने के मामले वह बेशक सख्त थे परंतु अन्य समय पर उनका व्यवहार परिवार जैसा रहता था। यकीनन संसार में एक मनुष्य की इंसानियत ही उसकी वास्तविक छवि होती है और इंस्पेक्टर सुशील चंद्र शर्मा की संवेदनशीलता जिस तरह नजर आई उसके बाद से उनके व्यक्तित्व के प्रति अनायास सम्मान बढ़ जाता है।

उन्होंने कोरोना वायरस जैसी महामारी के शुरूआती दौर में लाकडाउन के समय गरीब – जरूरतमंद की खूब मदद भी की थी। और सच है कि महामारी के समय के इतिहास में पहाड़ी थाना में आपकी सेवा इतिहास का मुख्य भाग बन गया है। प्रशासनिक सेवा में स्थानांतरण एक प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया के तहत अब रैपुरा थाना क्षेत्र में आपकी कर्तव्यमय सेवा शुरू हो चुकी है। नवागंतुक थानाध्यक्ष ने उन्हें उपहार समर्पित कर विदा किया।

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