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सौरभ द्विवेदी के साथ गांव पर चर्चा अभियान में गांव बक्टा की हकीकत , यह उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद के ब्लाक पहाड़ी का गांव है व कर्वी विधानसभा के अंतर्गत आता है !

विकास के दावों की हकीकत देखनी है तो ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी के समीप गांव बक्टा पर मन – मस्तिष्क की दृष्टि से देख लीजिए। यह पहाड़ी से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव मुख्य मार्ग से ही अपनी बदहाल स्थिति के लिए आंसू बहाते हुए नजर आने लगता है , जिसका मुख्य मार्ग ही अधूरा पड़ा हुआ है। ऐसे ही गांव की अनेकों समस्याओं के दृष्टिगत गांव के युवाओं से चर्चा हुई जिसमें पानी की हकीकत से लेकर दावे पानी – पानी होते नजर आ रहे हैं।

गांव में प्रवेश के दौरान जिला पंचायत से बना हुआ मुख्य मार्ग अधूरा नजर आ रहा है। बड़ी विकट स्थिति यह है कि गांव के युवा विपिन सिंह ने बताया कि बारिश के मौसम में गेडुवा में बाढ़ आने के पश्चात ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी से संपर्क टूट जाता है। गांव के नागरिकों के लिए पहाड़ी ही वह कस्बा है जहाँ से सब्जी से लेकर प्रत्येक जरूरत की चीजें लेन – देन की जाती हैं। किन्तु गेडुवा में बाढ के बाद नागरिक गांव मे ही कैद होने को मजबूर हो जाते हैं। फिर भी शासन – प्रशासन के नुमाइंदों को गांव की इतनी गंभीर समस्या नजर नहीं आती , जबकि पूर्व में गेडुवा रपटे पर फिसलन की वजह से महिला और बच्चे की मृत्यु भी हो चुकी है और हर बारिश में जिंदगी के मौत बन जाने का भय सताता रहता है।

मुख्य मार्ग की हकीकत

इससे आगे बढ़ते ही गांव की सड़क के जर्जर हालात और अधिक नजर आने लगते हैं , जहाँ गांव के अंदर प्रधानमंत्री का स्वच्छता अभियान बदनाम हो चुका है। चूंकि वहाँ आपको कीचड़ के सिवाय कुछ और नजर नहीं आएगा। फिर प्रधानमंत्री ही बताएं कि गंदगी भारत कैसे छोड़ेगी , जब बेशक मंत्री ना लगा हो परंतु बिना मंत्री वाले प्रधानमंत्री के प्रधान साफ – सफाई पर विशेष ध्यान ना दे सकें और सफाईकर्मी कागजों में सफाई कर रहे हों व उपस्थिति दर्ज करवाकर वेतन का लाभ उठा रहे हों।

हालांकि गांव के नागरिकों को भी स्वच्छता के लिए जागरूक होना होगा। गांव के नागरिकों को स्वच्छता का महत्व महसूस करना होगा , जैसे कि गांव के चिंतक युवा विपिन सिंह सोचते हैं कि स्वच्छ गांव होने से ही स्वस्थ गांव हो सकता है। महामारी के दौर में विपिन कहते हैं कि साफ – सफाई रहने से बच्चों को बीमार करने वाले कीटाणु खत्म हो जाते हैं और अगर गंदगी व्याप्त रही तो बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक सभी किसी ना किसी संक्रामक बीमारी के शिकार हो जाते हैं , बेशक वह वायरल फीवर हो या हल्की सर्दी और जुकाम हो ! इसलिए गांव के नागरिकों को स्वच्छ गांव की मांग को प्राथमिकता मे लाना होगा।

इस गांव की एक सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की सामने आई , विपिन के जागरूक साथी युवा आपस में बातें करने लगे कि बड़े संघर्ष के बाद दो बार शासन की ओर से बोरिंग का प्रयास किया गया। परंतु पूर्ण सफलता नहीं मिलने के बाद किसी ने सुध नहीं ली और आज भी गांव की जनता वही समुद्र सा खारा पानी पीने को मजबूर है। जो पानी थोड़ा बहुत ठीक स्वाद का नजर आ रहा है , वह भी स्वास्थ्य के पैमाने पर शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण पानी नहीं कहा जा सकता।

विपिन किसानों की समस्याओं को लेकर अन्ना पशुओं की ओर इंगित करने लगते हैं कि देखिए हमारी समझ में बक्टा गांव में कोई एक स्थाई या अस्थाई गोशाला का निर्माण अब तक नहीं हुआ। उसका बड़ा परिणाम यह है कि किसान रात – रात भर जगकर खेतों से पशुओं का भगाने का काम कर रहा है , आखिर किसान सोए तो कब सोए ? इस ओर वह जनपद प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं कि शीघ्र ही गांव की इस प्रमुख समस्या का अंत किया जाए , जिससे महामारी के दौर में किसान की फसल महामारी का शिकार ना हो !

अन्ना पशु और विपिन सिंह

अब विपिन गांव से पुरवा की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हैं। वह बताते हैं कि आजादी के 73 वें वर्ष मे भी बारिश के दिनों में यादव – मुस्लिम पुरवा में पहुंचना असंभव सा हो जाता है। वाहन बड़ी दूरी की कौड़ी हो जाती है , वहाँ पैदल चलकर पहुंचना भी मुहाल हो जाता है। लेकिन किसी ने भी आज तक ऐसा विकास कार्य नहीं किया कि पुरवा तक सरलता से पहुंचा जा सके और गंभीर बीमारी के समय एंबुलेंस भी आ जा सके। यह कितना चिंताजनक है कि विकास के तमाम दावों के बीच महामारी के दौर में ग्राम बक्टा विकास से करोड़ो कोस दूर खड़ा नजर आ रहा है।

पैदल चलना मुहाल हो जाएगा

यहाँ 5000 की आबादी है और करीब 2200 मतदाता होने की जानकारी मिली , और हर बार गांव का चुनाव होता है व गांव के लोग विधानसभा से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में मतदान करते हैं परंतु पीने के पानी से लेकर अच्छी सड़क तक के लिए तरस रहे हैं , वहीं अन्ना पशु की समस्या किसानों के लिए चुनौती बनी हुई है। विपिन सिंह यह भी कहते हैं कि स्कूलों में बारात ठहराना मना हो चुका है फिर भी आज तक इस गांव में एक बारात घर भी नहीं है अर्थात समझा जा सकता है कि गांव के विकास के लिए आने वाला धन धरातल में कहीं कुछ खास नजर नहीं आ रहा है। हाँ विकास के नाम पर हर बार कुछ ना कुछ काम दिखाए जाते हैं पर जनता की समस्या जड़ से हल होती नजर नहीं आ रही हैं।

गांव पर चर्चा की यात्रा में ग्राम नोनार के बाद ग्राम बक्टा की जमीनी हकीकत से शासन – प्रशासन को वाकिफ कराया जा रहा है। ताकि आजादी के 73 वें वर्ष में विकास के दावों को महसूस कर सकें और गांव को समस्याओं से आजादी मिल सके , ऐसा विपिन सिंह का भी कहना है कि युवा पीढ़ी को समस्याओं से आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए।

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Karwi Chitrakoot }

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