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By – Saurabh Dwivedi

हम सभी शांत मुद्रा में क्लास में बैठे थे। सुबह-सुबह क्लास टीचर ने सभी से एक-एक कर के जिंदगी में क्या पसंद है और क्या बनना पसंद करेंगे ? , का सवाल कर दिया था !

सबके अपने जवाब थे , जो अब मुझे याद नहीं रहे। किन्तु स्वयं की जिंदगी से अक्सर सवाल करता हूँ और जवाब भी ढूंढता हूँ ! अतः वर्तमान केन्द्र बिन्दु में वो सवाल भी मुझसे टकरा गया।

क्या बनने के लिए ? , मेरा जवाब घर वालों की पसंद से आईएएस अधिकारी बनने का जवाब था। जूनियर क्लास का छात्र था और तब तक सभी छात्रों में अव्वल था और प्रतिस्पर्धा तो एक छात्रा से रहती थी।

उस वक्त का जवाब सबको अच्छा लगा था और विश्वास भी कि मैं क्रैक कर सकता हूँ ! किन्तु आईएएस अधिकारी बनने के लिए स्थिर माहौल और समर्थन की जरूरत होती है , जो समय के साथ हो नहीं सका।

सच कहूँ तो मेरा रूझान जीवन में राजनीतिक – सामाजिक क्षेत्र में कुछ करने के लिए अधिक था। शनैः शनैः मेरा जीवन परिवर्तित होता चला गया और डायरी पर लिखने वाला सौरभ अखबार के पृष्ठ पर भी दिखने लगा। मैं सपना इस बात का भी देखता था कि बेशक कोई नौकरी करनी पड़े लेकिन एक दिन राजनीति जरूर करूंगा। नौकरी छोड़कर करूं पर करूंगा। आज राजनीति इतनी गंदी हो चुकी है कि बस ! राजनीति को अब फिल्टरेशन की जरूरत है और समाज ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया तो बेशक आम नागरिक बेमौत मारा जाएगा।

दूसरा सवाल जिंदगी में क्या पसंद है ? यही था , और मेरा जवाब था कि मुझे संघर्ष करना पसंद है। बचपन का टाई – बेल्ट वाला लड़का संघर्ष शब्द का जानकार था , पर सच है कि इसे संघर्ष का अहसास नहीं था। बचपन की जरूरतें भी कितनी होती हैं ? साथ ही जब परिवार की चमक – धमक साथ हो तब संघर्ष इतिहास की गाथा होती है।

हाँ इतना सा आभास था। जीवन में कुछ बनने और करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और ऐसा संघर्ष करने के लिए तैयार था , संघर्ष बड़ा रूचिकर भी लग रहा था कि चलो मैं संघर्ष करूंगा !

सच है कि जिंदगी कुछ इस तरह से परिवर्तित हुई कि शतरंज के खेल में स्वयं को घिरा हुआ पाया। जहाँ हार स्वीकार करने के लिए आत्मसमर्पण करने के वक्त को महसूस किया , पर सचमुच संघर्ष करने को ठाना था। इसलिये घनघोर अंधेरे में कृष्णमयी आभा और जीवन की सूर्य किरण का विकरण महसूस हुआ जिंदगी सचमुच संघर्ष की दास्तान लिखती हुई फिर चल पड़ी।

एक कमरे में चार कोने होते हैं और चारो कोनों से कमरा पूर्ण होता है , वैसे ही जिंदगी भी चार कोने की कमरे की तरह है। जहाँ हम आराम करते हैं और जीवन को महसूस करते हैं , अगर चारो कोने हिलने लगें तो सचमुच भूकंप आ जाता है। जब जिंदगी में ऐसी हलचल महसूस करते हैं , फिर भी हमारा जीवन होता है। यहीं से आत्मज्ञान की यात्रा शुरू होती है।

ऊपर वाले ने भी ठान रखा था कि लो संघर्ष शब्द के मायने समझ लो। उसने ये भी ठान रखा था कि तुम अमीरी महसूस करोगे तो गरीबी रेखा के नीचे का दर्द भी महसूस करोगे , तुम पूर्णिमा का प्रकाश महसूस करोगे तो हृदय में अमावस की रात का भय भी तुम्हारे अंदर होगा।

तुम प्रज्वलित अखंड दीपक की तरह का जीवन जिओगे तो मृत्यु भी इस तरह महसूस करोगे कि चलते हुए ठीक सामने से तक्षक काला सर्प गुजर जाएगा कि मानों बस अभी मौत समीप दिखी थी और ठीक अभी अपना पुनर्जन्म महसूस हो गया।

जीवन ऐसा ही है , बहुत से लोगों का जीवन ऐसा है। कुछ लोग समझते हैं और कुछ लोग मृत्यु के समीप आकर भी नहीं समझते। खैर मुझे बचपन वाले संघर्ष शब्द के प्रेमिल आकर्षण से अधिक , संघर्ष को जीकर उसका भय और साहस दोनों का खूब अहसास हुआ। मुस्कुराते हुए कहता हूँ ईश्वर से , गजब संघर्ष दिया तुमने कि वास्तव में संघर्ष तत्व का ज्ञान महसूस कर लिया , शेष अभी जिंदगी चल रही है।

जीवन का सर तत्व यही है कि हम जिंदगी की योजना बनाते हैं पर यकीनन जिंदगी की अपनी अलग योजना होती है। हमारी योजना से परे जिंदगी की योजना जब शुरू होती है , ठीक इसी वक्त समझ का रास्ता विकसित होना चाहिए और संतुलन कायम होना चाहिए अर्थात जिंदगी की योजना में ढलना ही जिंदगी है।

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