By – Saurabh Dwivedi
आंसू
प्रेम के आंसू
दिखा नहीं करते
वो अदृश्य ही
अंतस में रिसा करते हैं
खुशी के हों या
दर्द के …
किन्तु हाँ कभी-कभी
दिख जाते हैं
छलछला कर बाहर
टपक पड़ते हैं
जैसे पत्थर से
रिसता हुआ पानी दिखता है
वैसे ही दृश्यमान हो जाते हैं
जब नहीं दृश्यमान होते
यह भी प्रेम की वह गहराई है
जिसे मापा नहीं जा सकता
हाँ इस गहराई की चाहत
जरूर होती है.
जैसे आमने-सामने
खड़े हों , अप्रत्याशित सी मुलाकात में
निःशब्द से
अंदर रिसते आंसुओं के साथ
मन ही मन शिकायतों का
बंडल लेकर स्तब्ध से
हाँ प्रेम में
ऐसे भी पल आते हैं
अप्रत्याशित से
सामने होकर भी
बाहर कुछ घटित ना होकर
अंदर सौर मंडल सी घटनाएं
घटित होती हैं
अब प्रेम विज्ञान का वैज्ञानिक ही
इन घटनाओं को महसूस कर
प्रेम को महसूस कर सकता है
प्रेम सहज सरल सा पर ,
असाधारण घटना है.
बहोत ही शानदार…
Shandaar