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By :- Saurabh Dwivedi

देश – प्रदेश और गांव की तस्वीर शासन – प्रशासन के दावों से एकदम विपरीत हकीकत को बयां करती मिलती है। यद्यपि दावे बड़े आकर्षित करते हैं कि हम विकसित देश और गांव की ओर यात्रा कर रहे हैं। परंतु उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जनपद और जनपद के सबसे पिछड़े भूभाग पाठा पर नजर दौड़ाई जाए तो भूख से तड़पता मासूम नजर आता है। भूख से तड़पते मासूम की बिलखती माँ से मुलाकात मयस्सर हो जाती है। यह उसी भूभाग की तस्वीर है जहाँ के विकास के दावे करते नेताओं की सफेदी हमेशा चमकती मिली है। हाल – फिलहाल यहाँ फिर एक चुनाव होने वाला है। इस चुनाव मे भी वही होगा जो हर चुनाव में होता आ रहा है।

कुछ नया होने की उम्मीद की जाए तो किससे की जाए ? क्या उस जनता से नया होने की उम्मीद की जा सकती है जो दलगत राजनीति के बहाव में मतदान भी अंधानुकरण करके कर देती है। रूह कंपा देने वाली तस्वीर सत्ता को बदल देने की ताकत रखती है पर क्या यहाँ की जनता इस तस्वीर को महसूस कर निर्णय लेने की ताकत रखती है ? जनता चाह ले तो फौरन बदलाव के लिए आगाज कर सकती है। बड़ी से बड़ी सत्ता का खात्मा करने की क्षमता जन – जन की उंगलियों में व्याप्त है।

महाभारत का वह पल याद आता है। जब भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित होकर सुदर्शन उंगलियों में धारण कर लिए थे। इतना करते ही क्या धर्मवान और क्या विधर्मी सभी सकते मे आ गए थे। सभी ने करवद्ध निवेदन किया कि हे प्रभु ऐसा मत करिए वरना पल भर में विनाश हो जाएगा। लोकतंत्र में ऐसी ही ताकत जनता की उंगलियों मे है। किन्तु जनता सही पहचान करना कब सीखेगी ? वह पहचान कर सही व्यक्ति का चुनाव कर मतदान करना कब सीखेगी ? उसे चुनें जो वास्तव में गरीब और गरीबी का दर्द महसूस करे ! बेरोजगारी का दर्द महसूस कर युवाओं का कंधा सहला सके और जीवन स्तर में व्यापक बदलाव के लिए मानसिक परिवर्तन लाने के लिए काम कर सके।

किन्तु राजनीति धनपशुओं की गिरवी हो चुकी है। सत्ता माफियाओं का शिकार हो चुकी है। जो जितना बड़ा धनपशु है उतनी अधिक बार जनता का प्रतिनिधि बन जाता है। विधायक और सांसद बनकर कागजों पर योजनाएं बनाते हैं। बड़े – बड़े धांसू भाषण देते हैं और एक-दूसरे को पस्त कर सत्ता हथियाने का दिलचस्प खेल खेलते हैं।

जनता भी आसानी से इनका शिकार हो रही है , यही नियति बन चुकी है। गांव का गरीब कोटेदार के राशन के भरोसे भूख मिटाने के लिए निर्भर है। स्कूल का मासूम छात्र मिडडे मील में भूख मिटा पाता है। ऐसे ही कुछ हालात विकास की तस्वीर पेश कर रहे हैं। किन्तु एक तस्वीर खोज लाए हैं पत्रकार अनुज हनुमत और साथ मे हैं जनपद के कांग्रेस जिलाध्यक्ष पंकज मिश्र।

यदि पंकज मिश्र जैसे युवा नेता गरीब के घर पहुंचते हैं। मासूम बच्चे को हाथ से भोजन कराते हैं तो माँ के चेहरे पर खुशी की झलकती तस्वीर भी कैमरे मे कैद होती है। इस तस्वीर को महसूस करने के लिए संवेदनशील मन और जीती – जागती आत्मा चाहिए होती है। यदि युवा संवेदनशील हो जाए और समाज के प्रति समर्पित हो जाए। जनता ऐसी तस्वीर महसूस करे तो हम संवेदनशील समाज के निर्माण में भागीदार हो सकते हैं। एक ऐसा नेतृत्व चुन सकते हैं जो धनपशु ना हो पर भूख का दर्द महसूस करता हो। कच्ची मिट्टी के घर में रहने का दर्द महसूस करता हो। तन पर फटे लिबास पहनकर रहने की मजबूरी को समझता हो !

शासन – प्रशासन की नजरें भी तब इनायत होती हैं जब कोई पत्रकार कभी इस प्रकार की पत्रकारिता कर लेता है। उस वक्त सहायता पहुंचने लगती है। प्रशासन ऐसी सहायता तत्काल मुहैया कराता है तो संवेदनशीलता की एक झलक मिलती है। परंतु यह तस्वीर भी इसी शासन – प्रशासन की असंवेदनशीलता और असफलता की सबूत है , निशानी है।

समाज को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए। जैसे कि जिम्मेदारी समझकर दर्द महसूस कर तस्वीर को देखकर वास्तविकता शब्दों से बयां की जा सकती है। ऐसे ही समाज महसूस करे कि हमें जातिवाद और दलीय आकर्षण से परे होकर मतदान करना है तब शायद कोई गरीब , मध्यमवर्गीय और संवेदनशील युवा पदयात्रा करके भी लोकतंत्र के चुनावी पर्व में हिस्सा लेकर सत्ता की ताकत बनकर वास्तविक परिवर्तन लाने के लिए काम कर सके। किन्तु आकर्षण के चकाचौंध की गिरफ्त में गिरफ्तार समाज से ऐसी आकांक्षा भी बेमानी होगी !

जो अच्छा प्रयास अच्छे लोगों द्वारा हो सके , वह किया जाना जरूरी है। माँ के चेहरे में मुस्कान की झलक दिखना सत्ता की सियासत की सबसे बड़ी हार है। किसी चेहरे पर मुस्कान लाना बड़ा सरल काम है सिर्फ कर गुजरने की इच्छाशक्ति अंदर हो तो सचमुच ऐसे सद्प्रयास किए जा सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मानव सेवा ही सच्चा धर्म और इस धर्म को समझने के लिए युवाओं को अच्छे विचारों का अध्ययन करना होगा , अनुकरण करना होगा। विचारों को आत्मसात कर पग – पग मानव सेवा के लिए रखना होगा। इसके लिए युवाओं को स्वयं तैयार होना होगा और समाज को साथ देना चाहिए। महापुरूषों के विचारों वाले भारत में मानव सेवा की क्रांति की अलख जगनी चाहिए। बहुत अच्छा हो शुभ अवसर आए यदि शासन और प्रशासन पर बैठे लोग भी संवेदनशील होकर मानव सेवा का कार्य , जन जागरण का कार्य कर सकें और उनकी प्राथमिकता सम्मिलित हो सके।

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