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कारगिल युद्ध नब्बे के दशक मे आज की वर्तमान पीढ़ी के सामने हुआ। इक्कीसवीं सदी के युवा इस युद्ध के धमाकों से परिचित हैं , यह ऐसा दौर था जब घर घर टेलीविजन पहुंच चुका था और सभी रेडियो की जगह टीवी पर खबरें देखने लगे थे।

इस युद्ध के समय गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई थे। भारत की जनता अपने प्रधानमंत्री से बहुत स्नेह करती थी। महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष दिव्या त्रिपाठी कहती हैं कि राजनीति मे अजात शत्रु के नाम से विख्यात अटल जी पाकिस्तान से भी शत्रुता समाप्त करने के पक्ष मे थे। इसलिए वह बस द्वारा शांति की पहल करने लाहौर तक पहुंचे लेकिन बदले मे पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध उपहार मे दिया।

फिर भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों का पालन करते हुए पाकिस्तान को तब तक मारा जब तक हमारी चोटियों से कब्जा समाप्त नही हुआ और एलओसी से पीछे नही हट गया। वह कहती हैं कि मुझे आज भी याद है उस उम्र मे शाम के समय टीवी पर नजरें टिकी रहतीं और गौर से सुनते थे।

भारत के वीर सैनिकों की गाथा सुनने को मिलती तो हृदय करूणा से दहल जाता। कैप्टन सौरभ कालिया सहित अनगिनत ऐसे नाम जो हमे अपनी शहादत से ना सिर्फ गौरवान्वित करते हैं बल्कि हमारा जीवन बलिदानी सैनिकों का कर्जदार है चूंकि हम तभी तक स्वतंत्र रूप से जी रहे हैं जब तक सैनिक सीमा पर डटकर हमारी रक्षा कर रहे हैं।

दिव्या त्रिपाठी कहती हैं कि पाकिस्तान ने हमेशा धोखा दिया और बदले मे धूल चाटने को पाया और अब ऐसे राष्ट्र को समझ आ जाना चाहिए कि भलाई किसमे है ? भारत आज पहले से अधिक मजबूत राष्ट्र है और सेना के साथ प्रत्येक भारतीय की प्रार्थना का साहस होता है इसलिए हमारी सेना हमेशा विजयी रही है।

भारत बदले की भावना से कुछ नही करता बल्कि बदला लेना जानता है। घर मे घुसकर मारना जानता है। आज प्रत्येक भारतीय कारगिल के बलिदानियों को नमन कर रहा है और अपने सपूतों को ऐसी वीर गाथाएं सुनाकर राष्ट्र रक्षा के लिए तैयार करते हैं जो भविष्य मे अग्निवीर बनकर राष्ट्र की रक्षा करेंगे।

जनपद चित्रकूट मे पूरे भारत की तरह शहीदों को नेताओं और आम जनता ने नमन किया।

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