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आजकल तो सेल्फी का जमाना आ गया है लोग मंदिर मे भगवान के साथ सेल्फी लेने मे बिजी हो जाते हैं तो वह ना मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं और ना परमात्मा की कही महान बातों को स्वीकार कर पाते हैं।

दर्शन क्या है ? आज बाबा नीम करोली जी के प्रेरक प्रसंग की किताब पढ़कर खत्म की लेकिन ये शुरूआत कही जा सकती है कि दर्शन महज मूर्ति के दर्शन करना है या महान विचारों का दर्शन करना है !

यह सवाल सिर्फ मेरे लिए नही आप सभी के लिए है कि मूर्ति के दर्शन करना और मूर्तिमान परमात्मा के विचारों का दर्शन अपनाने मे कितना बड़ा अंतर है ?

आजकल तो सेल्फी का जमाना आ गया है लोग मंदिर मे भगवान के साथ सेल्फी लेने मे बिजी हो जाते हैं तो वह ना मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं और ना परमात्मा की कही महान बातों को स्वीकार कर पाते हैं।

नीम करोली महाराज जी किसी भी धर्म या संत का अनादर नही करते थे उन्होंने प्रभु यीशू को भी महान आत्मा कहा। यह भी कहा कि यीशू आत्मन हैं वो श्रद्धावान लोगों के सदा सहाय होंगे , यह दर्शन युवाओं को करने की कोशिश करनी चाहिए कि साईं बाबा हों या प्रभु यीशू इनकी निंदा करके आपको क्या हासिल होगा ? निंदा तो किसी की भी करो उससे कुछ हासिल नही होने वाला।

परमात्मा और धर्म के मामले मे सिर्फ और सिर्फ तपस्वी और सिद्ध संत समाज की सुननी चाहिए क्योंकि वर्तमान का कोई नेता ना उदार है ना महान है और ना उसके पास धर्म और समाज के हित मे स्थिर और महान विचार हैं इसलिए उज्जवल भविष्य के लिए चिंतन करने का श्रेष्ठ समय है।

जब मुझे सिद्धि माँ की किताब पढ़कर कुछ फील हुआ तो मैंने नीम करोली बाबा की किताब मंगाई कि मेरी जिज्ञासा शांत होगी और मुझे बाबा के प्रसंग पढ़कर आडंबर रहित भक्ति करने और भक्ति मे शक्ति का आभास हुआ , इसलिए मूर्ति दर्शन और वैचारिक दर्शन मे जो अंतर स्पष्ट हुआ है वह बहुत महत्वपूर्ण है। सबको समझने की जरूरत है मूर्ति साक्षात माध्यम है और विचार परमात्मा से गहरा रिश्ता फील कराते हैं।

अगर अपने जीवन को वास्तव मे सफल करना चाहते हैं तो आज से अभी से अपनी चेतना का दर्शन कीजिए पता लगाइए कि आपकी चेतना का स्तर क्या है ? जैसी चेतना वैसा ही जीवन होगा और ये चेतना ही जन्म के लक्ष्य तक पहुंचाती है तो यही वास्तविक दर्शन है।

” written by saurabh dwivedi “

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