By :- Saurabh Dwivedi
♡ मन तरंगो से ♡
सुनो
प्रेम होता ही
ऐसे , ऐसी जगह
जहाँ मुकम्मल
होता ही नहीं है।
वियोग निश्चित था
संयोग मे बड़ा सुख था
जितना गहरा सुख
उतना गहरा दर्द
प्रेम मे होता ही है
संयोग – वियोग
प्रेम वही
जो साधनारत हो
लेकिन ये प्रेम
जिया जाता है
सिर्फ मन ही मन
इस प्रेम का अस्तित्व
मन और मन की
तरंगो मे है
स्रोत बनकर
रचना बनकर
प्रेम प्रस्फुटित होता है
तेज प्रवाहमय नदी सी
प्राकृतिक झरने की तरह भी
प्रेम
रचना बनकर
उदीयमान होता है
दिन और रात सा
अंधकार मे आलोकित कर देता है
हाँ प्रेम
कुछ ऐसा ही है
पल भर में
तारों सा टिमटिमाता है
मन तरंगो के
संयोग – वियोग से
अपने स्वरूप धारण करता है
और प्रकट होता है
संयोग प्रकट हो
वियोग प्रकट हो
पल भर का आत्मीय प्रेम होता है।
तुम्हारा ” सखा “