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@Saurabh Dwivedi

अद्भुत घटना से ईश्वर के प्रमाण का अनुमान सिद्ध होने लगता है , व्यक्ति की इच्छा पूर्ण होने से ईश्वर पर आस्था गहरी हो जाती है। मनुष्य की इच्छा पूर्ति से वो परमात्मा जैसी शक्ति पर पूर्ण विश्वास करने लगता है परंतु समय-समय पर विश्वास कम होने लगता है। इस संसार में दैवीय प्रवृत्ति – आसुरी प्रवृत्ति की जंग अनवरत चल रही है , उसका स्वरूप बेशक बदला हुआ है परंतु अपना असर दिखा रही है। जैसे कि ईश्वर नहीं है ? ईश्वर के अस्तित्व पर कभी विज्ञान के जरिए हमला किया जाता है तो कभी मनुष्य की निम्नतम अवधारणा के रास्ते से !

किन्तु ईश्वर भी समय-समय पर अपनी प्रमाणिकता सिद्ध करते रहते हैं। एक कहावत का अंश है कि ‘ समय होत बलवान ‘ इसका सांकेतिक तत्व है कि मनुष्य बलवान नहीं होता अपितु समय बलवान होता है तो इसका मतलब है कि समय ही कमजोर होता है तो मनुष्य कमजोर हो जाता है और जब उसका समय आता है तो वह बलवान हो जाता है। यहीं से मनुष्य के मन में समय-समय पर इच्छा जन्म लेती है और वह मंदिर में या आसमान की ओर इच्छा पूर्ति हेतु कामना करने लगता है !

कामतानाथ परिक्रमा मार्ग में बांके बिहारी के दर्शन होना वृंदावन की खुश्बू महसूस हो जाना है। श्रद्धाभाव से दर्शन करें तो अहसास हो जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण वृंदावन से चित्रकूट में विराजते हैं , पर यह महसूस करने के लिए मायावी दुनिया से इतर परमात्मा की दुनिया से कनेक्शन ( रिश्ता ) होना चाहिए।

इच्छा और ईश्वर का रिश्ता है। इच्छा में छोटी ‘ इ ‘ है और ईश्वर में बड़ी ‘ ई ‘ है। तुलसीदास जी ने भी मन की प्रत्येक इच्छा पूर्ण होने की बात कह गए थे अर्थात मन की सात्विक , परोपकारी और सुखद इच्छाओं को ईश्वर पूर्ण करते हैं।

एक अद्भुत घटना लाकडाउन के बाद अनलाक वन में बांके बिहारी मंदिर चित्रकूट में घटित हुई। लाकडाउन में जब भक्त नहीं पहुंच रहे थे , तब भी भगवान मंदिर में थे। पुजारी भारतेंद्र दुबे जी लाकडाउन में लाला की पूजा करते और भक्ति भाव से सभी की सलामती की प्रार्थना करते।

एक दिन एकाएक पुजारी भारतेंद्र दुबे जी के मन में पुष्प समर्पित करने की इच्छा जाग गई , मन मे बात उठी थी कि प्रभु को ” कमल पुष्प ” समर्पित करना चाहिए ! अब ऐसे समय में श्रद्धालू भी बहुत कम आते हैं , परिचय वालों के आगमन की संख्या बहुत कम है !

पुजारी जी व्यथित होने लगे कि लाला को कमल पुष्प चाहिए। वह कमल पुष्प कहाँ से आए ? मन लगातार सवाल – जवाब कर रहा है। पुजारी असहाय होकर सोचने लगे , ठीक है प्रभु इच्छा है वही पूर्ण करेंगे।

अब समझिए प्रभु इच्छा है अर्थात अपनी इच्छा प्रभु इच्छा हो जाए तो प्रभु अपनी इच्छा की पूर्ति करेंगे , राधे – राधे।

ऐसा ही हुआ कि अगले एक दिन में एक बाबा जी आए। बाबा जैसे ही प्रवेश किए प्रांगण महकने लगा। मंदिर परिसर पर पुजारी के सिवाय एक परिजन भी थे। वह सुगंध की महक में खो गए।

बाबा जी ने एक पुष्प आगे बढ़ाया। वह ‘ कमल पुष्प ‘ था। कमल के पुष्प में ऐसी अद्भुत खुश्बू ! कमल – पुष्प में ऐसी खुश्बू नहीं मिलती।

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इसलिए पुजारी भारतेंद्र जी के बाल – परिजन ने कहा कि ” बाबा जी आप कौन सा इत्र डाले हैं ? ” जो इतना महक रहे हैं।

जवाब में बाबाजी ने होठों पर उंगली लगाई और शांति का इशारा कर संदेश दिया , प्रभु के दर्शन किए फिर चल पड़े।   इसके बाद भी उस सुगंध का प्रभाव नहीं समाप्त हुआ।

अब पुजारी जी का पुष्प की ओर ध्यान गया। उन्होंने मन ही मन कहा कि पुष्प मे खुश्बू है ! यह पुष्प अन्य कमल पुष्प से वास्तव मे अलग है और एक ही पुष्प आया है। वह भी बिना किसी को संदेश दिए कमल पुष्प आ गया। वह संत कौन थे ? कोई परिचय नहीं !

काफी देर तक वैसी ही भीनी-भीनी खुश्बू विराजमान रही और उन्होंने प्रभु को कमल पुष्प समर्पित कर इच्छापूर्ति कर ली या प्रभु ने पुजारी जी की इच्छा पूरी कर दी। पुजारी जी एक तरह से प्रभु के भक्त ही हैं और अपने भक्तों की सद्भावना से भरी हुई इच्छा को प्रभु अवश्य पूर्ण करते हैं , यह घटना ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण है।

प्रभु अपने अस्तित्व को ऐसी घटनाओं से सिद्ध कर देते हैं। मनुष्य के पास सिर्फ मन होना चाहिए , एक ऐसा मन जो इच्छा और ईश्वर के रिश्ते को समझ सके। दैवीय प्रवृत्ति और आसुरी प्रवृत्ति के अंतर को समझ सके , ऐसे आसुरी संघर्ष के मध्य दैवीय प्रवृत्ति के गुणतत्व की अधिकता को अपने मन – आत्मा और देह के रोमकूप में विशेष – विशाल जगह प्रदान किए रहे तो आपको इस संसार में एक सात्विक संसार और प्रभु इच्छा संसार के दर्शन भी होंगे , मानसिक दर्शन मिलते ही रहेंगे।

ये रही वास्तविक कथा। जो प्रभु इच्छा से घटित हुई। पुजारी भारतेंद्र जी ने कथा सभी से कहकर मन को प्रभु भक्ति से लीन कर दिया। कोरोना संक्रमण काल और मानसिक संक्रमण काल में सकारात्मक ऊर्जा से मन परिपूर्ण होना चाहिए और प्रभु की ऊर्जा से ही आनंदमय जीवन जिया जा सकता है।

यह पुष्प तस्वीर में देखने से ही अद्भुत प्रतीत होता है। पुष्प में तेज झलक रहा है और दिव्यता महसूस हो रही है। प्रभु के प्रति समर्पण होने से पुष्प अद्भुत हो गया , वैसे ही मनुष्य प्रभु कृपा से प्रभु के प्रति समर्पित हो जाए तो वह स्वयं अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी हो जाएगा , शेष पथ प्रदर्शन प्रभु स्वयं करने लगते हैं।

अनलाक वन में एक पुष्प की वास्तविक कथा हमें अपार ऊर्जा प्रदान कर गई। बांके बिहारी मंदिर में प्रभु को समर्पित एक पुष्प की कथा इस वक्त मनुष्य को जीवन की राह दिखा रही है। इसलिए अपने जीवन में सात्विकता और समर्पण को स्थान दीजिए। प्रभु के दर्शन से ऊर्जा प्राप्त करिए और समर्पण कर जीवन की नैय्या पार लगाइए।

पुजारी जी ने बताया है कि यह घटना खास एकादशी को घटी है और यह अपने आप में अद्भुत है। एकादशी के दिन सच के सिवाय झूठ का स्थान नहीं होता और यह प्रभु की लीला ही है।

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