@Saurabh Dwivedi
जैसे सूरज का प्रकाश होता है , वैसे ही असर है। सूरज के प्रकाश का असर सोते हुए आदमी को जगा देता है , महान आलसी आदमी सोता रहता है। जो आदमी भोर मे नहीं जागता उसे सूरज का बढ़ता तापमान एकबारगी जगा देता है !
रात रहती है , चांद रहता है। कृष्ण पक्ष मे चांद भी गायब रहता है। बच्चों का चंदा मामा शुक्ल पक्ष मे आता है। पक्ष कोई भी हो लेकिन दिन – रात अवश्य होते हैं। रात का मतलब चांद हो जाता है , कुछ नहीं तो आकाश मे तारे तो रहेंगे ! चांद का होना ना होना अंडरस्टुड हो जाता है।
एक आदमी रात को सोता है , सुबह जगने के लिए। यह प्रक्रियागत है , जीवन की एक प्रक्रिया है। सोना और जागना – रात और सुबह की तरह हर किसी के जीवन में प्रकृति के नियम की तरह बना हुआ है।
ऐसे ही कुछ नियम हैं। संसार के नियम हैं , संविधान के नियम हैं। सरकार की कार्यशैली है , जनता के जनप्रतिनिधि की कार्यशैली है और समाज की मुख्यधारा से जुड़े हुए पत्रकारिता जगत की भी कार्यशैली है। लेकिन गांव , नगर और क्षेत्र के विकास के लिए सक्रिय भूमिका निभाने वाले अनेकानेक लोग हैं , उनमे से एक मीडिया भी है।
मीडिया भी आदमी के द्वारा चलती है। वहां भी कोई ना कोई पत्रकार बना आदमी होता है। यह गुलामी काल से क्रम चला आ रहा है। जब देश अंग्रेजों का गुलाम रहा उस वक्त पत्रकार व पत्रकारिता जन – जागरण का काम करते थे। बड़ा लंबा समय लगा लोगों को जगाने में और तब लिखने वालों ने गुलामी की प्रताड़ना भी झेली थी। लेकिन अब असर का चक्कर है !
कभी-कभी तो यूं लगता है कि आज का पैदा हुआ पत्रकार होता तो वह एक खबर से अंग्रेजों की नींव धराशाई कर देता , वह एक चर्चा करते ही अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर कर देता। चूंकि आजकल आज के पैदा हुए पत्रकार की एक चर्चा और एक खबर का इतना जोरदार असर होता है कि करोड़ो का विकास कार्य धरती फाड़कर पैदा हो जाता है !
जैसे सूर्य और चंद्रमा प्रकृति के नियमानुसार अस्तित्व मे आते हैं , जैसे इंसान सोता और जागता है। जैसे प्रकृति कार्य करती है , जैसे सरकार कार्य करती है। वैसे ही बहुत से होने वाले कार्यों में विकास की मुख्यधारा में प्रयासरत सभी की भूमिका होती है। लेकिन बहुत से प्रयासरत लोग कभी कहते ही नहीं कि मैं इतना असरदार हूँ कि चौबीस घंटे या अड़तालीस घंटे में एक चोर को गिरफ्तार करवा दिया !
हां ! चिंतन की बात है कि जिन खबर से एक चोर कुछ दिन और महीने मे गिरफ्तार नहीं होता , एक जेबकतरा फरार रहता है और दबंग की दबंगई कायम रहती है पर जनपद के पुलिस प्रशासन से तीखे सवाल खबर के परिप्रेक्ष्य में नहीं किए जाते ,वैसी खबर का ऐसा असर होता है कि सरकार के खजाने का पिटारा खुल जाता है।
अब पाठक वर्ग को – स्रोता वर्ग को विचार करना चाहिए कि एक सड़क का निर्माण भी तब होता है , जब निर्माण संबंधी समस्त आकलन कर लिए जाएं। समस्त कागजात तैयार हो जाएं तब उस अनुसार धन स्वीकृति मिलती है। लेकिन गंभीर चिंतन के अभाव में नकली सितारा भी असली सितारे की दृष्टि से देखा जाने लगता है और होता यूं है कि लोग नकली सितारा असली सितारे के दाम में खरीद लेते हैं।
आजकल हो यही रही है कि असली सितारे फूहड़ता से बचने के लिए गुमनामी मे काम कर रहे हैं। जो असल में काम करके कुछ कर रहे हैं , वह भी चुपचाप ये कहकर शांत हो जाते हैं कि मेरे अथक प्रयासों से जनहित का यह कार्य संपन्न हुआ।
किन्तु नकली सितारे हर वक्त चमक बिखेरने के लिए बत्तियों का सहारा लेते हैं , हाँ कुछ लोग नकली सितारे की बत्तियां हैं। जो नकली सितारे को कहते रहते हैं कि बड़े चमकदार हो – बड़े असरदार हो और इसी असर के लिए पत्रकारिता कर रहे होते हैं अर्थात पत्रकार हो तो असरदार हो !
इस असर का रोग इस कदर फैला है कि टिड्डा भी मर जाए तो आज का पत्रकार कह देगा कि ये टिड्डा बड़ा छलांग लगा रहा था और बच्चे परेशान हो रहे थे , बच्चों को भय लग रहा था। मेरे मुहल्ले के बच्चे परेशान थे तो मैंने पत्रकारिता के कर्तव्य का पालन करते हुए इस हुड़दंगी टिड्डे के खिलाफ खबर चलाई , इतने में टिड्डे को खबर की भनक लग गई। अब टिड्डा बेचारा गिरफ्तारी के डर से परेशान चूंकि बात बाल आवाज की थी ; पुलिस फौरन सक्रिय हुई और इस भय से टिड्डा ने सर पटक – पटक कर आत्महत्या कर ली।
इस प्रकार एक टिड्डा खबर के असर से जीव – जगत से मोक्ष प्राप्त कर गया। अब उस पत्रकार के संगी साथी कहने लगे कि भाईसाहब आपकी कलम मे वो ताकत है , आपकी डिबेट मे वो दम है कि काश आप अंग्रेजों के जमाने के पत्रकार होते तो एक खबर – एक चर्चा के असर से हमारा देश आजाद हो गया होता , अंग्रेज भारत छोड़कर भाग खड़े होते थे।