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@Saurabh Dwivedi

अनेक महापुरूषों के पीछे किसी ना किसी का व्यापारी का सहयोग रहा है। किसी ना किसी क्रांतिकारी का सहयोग किसी व्यापारी ने किया है।

उस समय व्यापारी विचार-विमर्श को महत्व प्रदान करता था। उस समय व्यापारी गुलामी नहीं बल्कि स्वतंत्रता और सम्मान का पक्षधर व्यापारी था।

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जब – जब देश और समाज को नए विचार और नई क्रांति की आवश्यकता पड़ी कोई ना कोई व्यापारी कमाए हुए धन का ऐसा सदुपयोग करता कि सदियों तक विचार का यज्ञ चलता रहा।

क्षमा करिएगा परंतु अब ऐसा लग रहा है कि व्यापारी चुनावी हो गया है। वह चुनाव का सट्टा खेलने लगा है। वह अपना पैसा डुबाने और बड़ा करने मे विश्वास रखने लगा है। फौरन बड़ा हो जाएगा या फिर डूब जाएगा।

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व्यापारी जितना दूरदर्शी था वह रहा नहीं ! व्यापारी जितना त्याग और तपस्या करता था वह रहा नहीं। धैर्य की कमी हो गई है तभी राजनीति के माफियाओं के फेर मे व्यापारी है।

अभी इत्र व्यवसायी के यहाँ से सौ करोड़ निकलना बताता है कि राजनीतिज्ञ और व्यापारियों के कितने गहरे रिश्ते हुए हैं। यह गठजोड़ देश – प्रदेश की आत्मा के लिए खतरनाक है।

सारा खेल टैक्स बचाने का है। खास सरकार के आने के समय अत्यधिक लाभ कमाने का है। एक दल विशेष को अंदुरूनी समर्थन करेंगे तो उनकी खूफिया एजेंसी सेंध लगाकर सूचना देगी और फिर सरकारी सिस्टम 100 करोड़ निकाल देगा।

इस खेल मे जनता का क्या है ? जनता को क्या लाभ है ? जनता के खाते मे क्या आएगा ?

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व्यापारियों को अब सोचना चाहिए कि विचारों को समृद्ध करने के लिए धन का सदुपयोग करना है। चिंतन क्रांति से बड़ी कोई क्रांति नही हो सकती। चिंतन यज्ञ से बड़ा कोई यज्ञ नही हो सकता।

जिसे क्रांति मे आनंद आए वह क्रांति ले ले और जिसे यज्ञ मे आनंद आए वह यज्ञ संपन्न होते रहने को सोच ले। टैक्स और सुविधाओं का सरकार और सरकारी खेल बंद कर दलगत व्यापारी कहलवाना बंद कर देश का व्यापारी कहलाना चाहिए। समाज के उत्थान के लिए व्यापारी समाज को ऐसे लोगों का सहयोग करना चाहिए जिनकी समझ व विचार से जनमानस और देश का उत्थान होना तय हो।

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