ऐसा माना जाता है कि अपने समय के कालिदास कहे जाने वाले विलियम शेक्सपीअर के निधन-दिवस पर प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को विश्व-पुस्तक दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने मनुष्य को पुस्तकों के समीप लाने के लिये वर्ष 1995 में इस दिवस की शुरुआत की ।
मनुष्य को पुस्तकों के समीप लाने की बात से स्पष्ट है कि मनुष्य ने पुस्तकों से पर्याप्त दूरी बना लिया है।यह कहने और सुनने में थोड़ा आश्चर्यजनक लग सकता है किंतु यह कटु सत्य है कि आज के तकनीकी युग में प्रत्येक आयुवर्ग का व्यक्ति पुस्तकों से रिश्ता तोड़ कर इंटरनेट की गोद में आ बैठा है।इंटरनेट पर विभिन्न प्रकार की वेबसाइट्स और सोशल मीडिया जैसे आशियाने हैं जो आज की पीढ़ी के सामाजिक अड्डे बन चुके हैं।
एक दौर था जब न तो मोबाइल फोन थे,न कंप्यूटर थे और न ही इंटरनेट।पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने के मुख्य स्रोत मात्र पुस्तकें और शिक्षक थे किन्तु सम्प्रति इंटरनेट की दुनिया ने काफी हद तक पुस्तकों और शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों का मोहभंग किया है। माना कि इंटरनेट में लगभग सभी विषय उपलब्ध हो जाते हैं किंतु पुस्तकों से पढ़ने में जो आनन्द और ज्ञान की प्राप्ति होती है वो तकनीकी संसाधनों से नहीं।
पुस्तकें जीवन का वे अनिवार्य अंग हैं जिनके बिना जीवन जीने की कला,सामाजिकता तथा मानवता का बोध अधकचरा रह जाता है। सृष्टि के आदि में ज्ञान गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित था जिसे बोलकर और सुनकर प्राप्त किया जाता था। कालान्तर में विकासशील मनुष्यों ने गुरुकुलों को विद्यालयों में परिवर्तित कर दिया, जहाँ पर एक व्यवसायी की भाँति शिक्षक माल बेचते हैं और विद्यार्थी ग्राहक की भाँति उसे खरीद लेता है।
हालाँकि जब तक इंटरनेट की दुनिया में व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी की स्थापना नहीं हुयी थी तब तक मजबूरीवश कुछ विद्यार्थी ईंट-बालू-पत्थर निर्मित कक्षाओं में बैठकर शिक्षक और पुस्तकों को तवज्जो देते थे किन्तु जब से ब्रह्माण्डीय ज्ञान कंप्यूटर, मोबाइल और टेलिविज़न पर अवतरित हुआ है तब से विद्यार्थी और पुस्तकों का रिश्ता तलाक की कगार पर आ पहुँचा है।
जिस देश की पुस्तकों में वेद,वेदाङ्ग, उपनिषद् और पुराणों से साक्षात्कार होता हो, जिस देश की सभ्यता-संस्कृति और यशगाथा पुस्तकों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित की गयी हो,उसी देश के विद्यार्थी और अध्ययन-प्रेमी इन महत्त्वपूर्ण और जीवनोपयोगी पुस्तकों को लाल कपड़े में लपेटकर सन्दूक में भर देते हैं तथा उन्मुख हो जाते हैं इंटरनेट की दुनिया की ओर जहाँ खोखले और अस्थायी ज्ञान की भरमार है!
यद्यपि आधुनिकता के दौर में इंटरनेट,कंप्यूटर और मोबाइल की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि इन तकनीकों की मदद से मनुष्य के कई सारे कार्य आसान होते हैं और समय की बचत होती है किंतु अध्ययन हेतु पुस्तकों की शरण में जाना ही श्रेयस्कर है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंटरनेट में पढ़ाई करने से मष्तिष्क और आँख जैसी शारीरिक बीमारियाँ पनपती हैं, मन एकाग्र नहीं हो पाता क्योंकि इंटरनेट में प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों प्रकार की विषयवस्तु होती है, लिहाजा पढ़ने वाले का मन विचलित और भटकावशील हो जाता है। पुस्तकों के अध्ययन पर बल देने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में किसी भी प्रश्न के उत्तर का अंतिम और प्रमाणित साक्ष्य पुस्तकें ही मानी जाती हैं।
सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि आज की अधिकांश युवा पीढ़ी पढ़ाई-लिखाई को गम्भीरता से लेती ही नहीं। बहुतेरे युवा-युवतियाँ किताबों से मुँह फेरकर चंद लाइक्स और फॉलोवर्स की कामना बलवती किये हुये सोशल साइट्स पर अंग-प्रदर्शन और अश्लीलता के परीक्षा की होड़ में जुट जाते हैं कि काश इस परीक्षा में सबसे अव्वल होकर हम उन्नति के शिखर पर विराजमान हो सकें!
पुस्तकों की उपयोगिता और महत्ता के विषय में जितना कहा जाये ,कम ही होगा क्योंकि ब्रह्माण्ड की समस्त स्थावर और जङ्गम वस्तुओं का उल्लेख इन्हीं पुस्तकों में ही तो है। जीवन-दर्शन,मानव-मूल्य , पुरुषार्थ और समस्त प्राणी-भाव इन्हीं पुस्तकों में ही तो उकेरे गये हैं! यदि किताबों से मित्रता हो गयी और इन पर मन लग गया तो आपका अपना एक संसार होगा जहाँ ज्ञान-विज्ञान की रौशनी में आपकी आत्मा जगमगा उठेगी तथा समस्त अंधकार रूपी विकार दूर हो जायेंगे।
अतएव मनुष्य को खासकर विद्यार्थियों को किताबी जीवन से सम्बन्ध प्रगाढ़ करने होंगे ताकि एक योग्य, तार्किक और स्वस्थ मानसिकता वाले व्यक्तित्त्व का विकास हो सके।
किसी ने क्या खूब कहा है-
“इश्क़ कर लो किताबों से बेइन्तहां।
सिर्फ़ ये ही हैं जो,अपनी बातों से पलटा नहीं करतीं।”
विश्व-पुस्तक दिवस की शुभकामनाएँ।
अनुज पण्डित