चित्रकूट / बांदा : दो पत्ती क्या है ? बचपन मे सुन रहा था कि पापा चिल्ला रहे थे कि कहाँ प्रचार करने चले गए हैं ? उनकी तड़प देखी कि अरे कमल के फूल का प्रचार करना है , राम प्रकाश द्विवेदी का प्रचार करना है। ये दो पत्ती लेकर मिश्रा जी चुनाव हराने को खड़े हुए हैं , बस !
मैं छोटा था और राजनीतिक समझ बहुत कम थी तो मैंने पास मे बैठे बड़े से पूछा कि ये दो पत्ती क्या है ? उन्होंने कहा कि दो पत्ती से भैरों प्रसाद मिश्र चुनाव लड़ रहे हैं।
मैंने फिर कहा कि कमल के फूल मे भी पत्ती होती है तो अलग-अलग कैसे ? उन्होंने कहा देखो भैरों जी को भाजपा ने टिकट नही दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
मैंने कहा अच्छा तो कमल वाले काहे से हैं ? तो बोले कि कमल का फूल भाजपा का चुनाव चिन्ह है तो मैंने कहा ठीक है फिर क्या दिक्कत है ?
तो मेरे बगल मे बैठे बड़े ने कहा कि अरे एक ब्राह्मण चुनाव हार जाएगा ? मैंने कहा कैसे ? वो बोले देखो भैरों प्रसाद सिर्फ वोट काट लेगा और एक ब्राह्मण की ब्रह्म हत्या कर देगा जब पार्टी ने एक ब्राह्मण को टिकट दे दिया तो का ” यहय लोलरवा ब्राह्मण आय ? ” मैंने कहा क्या मैं समझा नही लोलरवा क्या होता है ?
वो बोले अरे जैसे तुम अपनी मां के दुलारे हो तो उसको लोलरवा कहते हैं , अच्छा ! तो मैने पूछा ब्राह्मण कौन है ? द्विवेदी कि मिश्रा ?
उन्होंने कहा कि अरे मूर्ख दोनों ब्राह्मण हैं तो मैंने गुस्से मे कहा कैसे ? मैंने सुना है दो पत्ती वाला कह रहा था मैं ब्राह्मण हित मे खड़ा हो रहा हूं मैं ही चुनाव जीत सकता हूं तभी ब्राह्मणों का अस्तित्व बचेगा वरना ब्राह्मणों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा तो दोनों कैसे ब्राह्मण हुए ?
बड़े ने मेरे सर मे हाथ मारा अरे चू….. तुम द्विवेदी नही हो ? तुम ब्राह्मण नही हो ! मैंने कहा अरे यार तो मतलब रामप्रकाश द्विवेदी भी ब्राह्मण हैं ! मैंने माथा ठोका तब !
फिर लड़ाई काहे की है ? तो उन्होंने कहा देखो ये राजनीति है वो ब्राह्मणों को बरगलाने के लिए कहते रहे होंगे कि मैं ब्राह्मण हित मे ब्राह्मण अस्तित्व के लिए चुनाव लड़ रहा हूं असल मे वो भाजपा को औकात दिखाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं कि मैं ही भाजपा हूं बाकी कोई भी भाजपा से हार जाएगा।
और जब परिणाम आया तो भैरों जी को 8 या 10 हजार वोट मिला तो इससे भाजपा प्रत्याशी रामप्रकाश द्विवेदी चुनाव हार गए तब मेरे बड़े ने कहा था कि देखो कर दी ना ब्रह्म हत्या !
वो सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए चुनाव लड़े और शुरूआत से सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए चुनाव लड़ना शुरू किए। ब्राह्मणों मे सिर्फ यही ब्राह्मण हैं बाकी कोई ब्राह्मण नही है ? एक मासूम ब्राह्मण को निर्दोष ब्राह्मण को दो पत्ती का खेल खेलकर चुनाव हरवा दिया , यही अगर कमल के फूल का वफादार होता और ब्राह्मण अस्तित्व का वफादार होता तो तन मन धन से प्रचार करता और राम प्रकाश द्विवेदी आराम से चुनाव जीत जाते।
उस दिन बड़े बहुत गुस्से मे थे कि देख लो अपने दादा को एक दिन के लिए चले गए थे वो ना जाते तो भी ठीक रहता कुछ लेकिन भैरों जी के चक्कर मे एक रात को पड़ गए और ब्राह्मणों का अस्तित्व भैरों जी ने ही खत्म कर दिया लेकिन यह जनता फिर भूल जाएगी वो फिर दल मे आ जाएंगे और फिर चुनावी दंगल सजेगा फिर भैरों जी भाजपा , सपा या बसपा से चुनाव लड़ेगे और फिर ब्राह्मण हित की बात होगी फिर समाज तोड़ा जाएगा फिर नफरत का बीज बोया जाएगा क्योंकि जो लोग अपने अतीत से नही सीखते वो लोग हर बार धोखा खाते हैं और ब्राह्मण बार बार धोखा खाएगा।
क्योंकि जब जब तथाकथित नेताओं का अस्तित्व खतरे मे आता है तब तब ब्राह्मण अस्तित्व की बात करेंगे और बरगला कर अपना अस्तित्व बचाएंगे।
बड़े कहने लगे समझे छोटे राजनीति के अस्तित्व को मासूम जनता नही समझ सकती तुम जैसे छोटे जोशीले नवयुवक नही समझ सकते और अगर समझना है तो हम जैसे बड़ो की संगति करो और मैं चुपचाप बैठे सुन रहा था , पूरा चुनावी खेल समझ रहा था………….