
धार्मिक -राजनीतिक विमर्श में बीते कुछ महीनों के दौरान बागेश्वर धाम सरकार और जय बजरंग सेना के बीच चली तनातनी ने न सिर्फ सुर्खियां बटोरीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी व्यापक बहस को जन्म दिया। एक ओर बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, दूसरी ओर जय बजरंग सेना की मुखर नेत्री अर्चना नितिन उपाध्याय। यह पूरा घटनाक्रम धर्म, राजनीति और प्रचार की त्रिकोणीय रणनीति जैसा प्रतीत होता है।
अर्चना उपाध्याय ने एक धर्म रक्षक की भूमिका में बागेश्वर धाम जैसे शक्तिशाली पीठ पर प्रश्नचिह्न लगाने का साहस किया। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से खुलकर विरोध दर्ज कराया—यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बागेश्वर धाम से जुड़े एक संभावित कार्यक्रम के दौरान लाइव आकर उन्हें वहाँ न जाने की सलाह तक दे डाली। यह एक अप्रत्याशित कदम था, जिसने पूरे मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उछाल दिया।
वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर मौजूद तमाम तस्वीरें और फुटेज इस बात की पुष्टि करते रहे कि जय बजरंग सेना प्रमुख नितिन उपाध्याय और उनकी पत्नी अर्चना उपाध्याय, बागेश्वर धाम के साथ पहले किसी समय तक घनिष्ठ संबंधों में थे। धार्मिक आयोजनों और मंचों पर उनकी उपस्थिति ने यह जताया कि दोनों संस्थाओं के बीच कभी सौहार्द्रपूर्ण रिश्ता रहा है।
हालात तब और पेचीदा हो गए जब अर्चना उपाध्याय ने ‘सनातन हिन्दू एकता पद यात्रा’ पर भी तीखे सवाल खड़े किए। इसने एक ओर बागेश्वर धाम को टीआरपी दिलाई, वहीं दूसरी ओर जय बजरंग सेना को विरोध की राजनीति का चेहरा बना दिया। लेकिन यह सब अचानक तब बदला जब हाल ही में धीरेन्द्र शास्त्री मुंबई में अर्चना उपाध्याय के आवास पहुंचे, जहां दोनों के बीच सौहार्द्रपूर्ण भेंट हुई और ‘हिंदू ग्राम बसाने’ के नाम पर समर्थन का ऐलान भी किया गया।
अब सवाल यह उठता है कि यह सब वास्तव में एक वैचारिक टकराव था या सुनियोजित प्रचार रणनीति? क्या यह टीआरपी का खेल था जिसमें पहले विरोध का तड़का लगाया गया और अंत में ‘हिन्दू एकता’ के नाम पर मेल-मिलाप का मंचन किया गया?
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि जय बजरंग सेना और बागेश्वर धाम सरकार का यह नया समीकरण किस तरह के धार्मिक-राजनीतिक विमर्श को जन्म देता है। परंतु एक बात स्पष्ट है—धर्म और प्रचार के इस युग में विरोध और समर्थन की रेखाएं बहुत पतली होती जा रही हैं।
” सौरभ द्विवेदी वरिष्ठ पत्रकार, विश्लेषक और ‘सत्य भारत’ के लेखक हैं। दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय सौरभ सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों पर बेबाक लेखन के लिए जाने जाते हैं। “
