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सम्प्रेषण एक अद्भुत कला है। इस कला के माध्यम से खूबसूरत सतरंगी दुनिया का निर्माण किया जा सकता है। सोशल मीडिया के समय में यह बेहद आसान भी हो गया है। परंतु इस पर भी ग्रहण सा लगने लगा है, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तरह होने लगा है। आकर्षण अच्छाई से ज्यादा बुराई की तरफ होने लगा है। 

अखबार का पृष्ठ हो, टीवी की स्क्रीन हो या फिर सोशल मीडिया की वाल, हर तरफ बुरी खबरें और बुरे लोग की चर्चा को इतनी अधिक प्राथमिकता मिल रही है। उनके बिना प्रयास के बुराई और बुरे लोगों का एकछत्र राज अवश्य कायम रहेगा, बची हुई अच्छाई और अच्छे लोग तारीफ, प्रोत्साहन, प्रेम और प्राथमिकता की आक्सीजन के अभाव में गोरखपुर में मासूम बच्चों की तरह दम तोड़ देगें, फिर किल्विश का अंधेरा कायम रहेगा। 
किसी बुरे व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर दोस्ती की और धोखा दिया। दोष किसका है ? स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि सबसे पहले दोष स्वयं में देखना चाहिए। आपने बुरे व्यक्ति को जगह ही क्यों दी ? अपने अंदर किसी को पहचानने की शक्ति का विकास क्यों नहीं कर सके ? ईश्वर ने सबको ऐसी क्षमता प्रदान की है। यहाँ तक की स्वभाव से आपका सजातीय रिश्ता कौन है और किससे आपकी आत्मीयता जीवन भर बनी रह सकती है, इसकी भी अद्भुत शक्ति दी हुई है। फिर भी हम रोना रोने लगते हैं कि सोशल मीडिया के जरिए ठगी हो रही है और कोई ब्लैकमेल हुआ या किसी ने ब्लैकमेल किया। सोचिए इसके लिए हम स्वयं दोषी हैं और उससे बड़ा दोष येे है कि उस बात को इस तरह नकारात्मक आधार पर स्प्रेड कर रहे हैं कि जीवन में कहीं कोई किसी का विश्वास ना कर सके। 
एक बात तय मानिए संसार से विश्वास का गला इस तरह घोटा जाता है, सोशल मीडिया हो या इससे बाहर की दुनिया विश्वास के अभाव में प्रेम और मानवता का जीवन कहीं किसी को परिवार और परिवार से परे किसी अजनबी सेे बनने वाला आत्मीय रिश्ता व प्रेम नहीं मिलेगा। सभी इसके अभाव में दम तोड़ देगें। 
ऐसे ही एक सर्वे की खबर पढ़ी, जिसमें किसी पत्रकार ने बड़ी मेहनत से लिखा कि सोशल मीडिया के जरिए लव, सेक्स और धोखा पाने वाले लोग मनोरोगी हो रहे हैं। असल में सबसे पहले उस पत्रकार को इलाज की जरूरत है। उसे स्वयं नहीं पता कि वह समाज में क्या परोस रहा है और इसका क्या असर होगा ? दुनिया में हर तरह के लोग हैं, सोशल मीडिया हो या फिर आपकी तथाकथित वास्तविक कहलाने वाली दुनिया। सोशल मीडिया की दुनिया से पहले आपकी वास्तविक दुनिया में अपराध रहे और हैं, तो क्या दुनिया छोड़़ दी ? रिश्ते बनाने छोड़ दिये ? यहाँ तक की ब्याह देह का किया जाता है ना कि दो मन का, फिर भी परंपरागत तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया। पागल खाने सोशल मीडिया में नहीं बल्कि आगरा और ग्वालियर जैसे शहरों में हैं।
एक स्वतंत्र जगह मिली है, वो किसी महिला के लिए हो अथवा पुरूष के लिए जहाँ स्वतंत्रता से अपने विचार रख सकते हैं। बिना रोक टोक के आंसू बहाएं या बौराई सत्ता के तख्त पर अंतिम कील ठोक दें अथवा शब्दों से जश्न मना लें। आजादी यहीं पर है, उस पर भी एक भय भर दीजिए और यहाँ पर भी बंदिशें लगाकर आत्महंता समाज का निर्माण कर लीजिए। 
बेशक सावधानी हर जगह जरूरी है। सबकुछ हमारे मानसिक विकास व अंदुरूनी शक्ति पर निर्भर है। स्वयं को जागृत कर लीजिए और जागरूक रहिए। हमें सम्प्रेषण ज्यादा से ज्यादा प्रेम, अपनत्व और मानवता का करना चाहिए। अच्छाई को विचारों की आक्सीजन प्रदान करनी चाहिए। जिससे सामाजिक रिश्तों में मिठास घुली रहेगी। यहीं पर अच्छे लोग हैं और अच्छाई है बनाम वास्तविक दुनिया के इस  दुनिया में अभी बहुत अच्छाई है और बुराई का अंत भी यहाँ एक क्लिक में हो जाता है। 

निर्भर आप पर है, कैसी जिंदगी जीना चाहते हैं और कैसी दुनिया का निर्माण करना चाहते हैं। कोशिश इतनी सी रहे कि विश्वास जीवंंत रहे फिर प्रेम, स्नेह और मानवता जीवंत रहेगें। इसलिये सम्प्रेषण अच्छाई और सच्चाई भरा होना चाहिए।
Saurabh Dwivedi

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