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वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे और मैं भी मंद मुस्कुरा रहा था। नजरें आपस में मिली हुई थीं। चूंकि हम बचपन के मित्र थे , इसलिए माजरा और गंभीर हो गया था।

मित्र लवलेश सिंह यादव समाजवादी के नेता हैं और जिलाधिकारी कार्यालय में सड़क संबंधित समस्या लेकर आए थे।

एक आदमी जिलाधिकारी विशाख जी के पास पहुंचते हुए कहता है कि ……सर हम भी यादव होते तो हमारे साथ यह अन्याय नहीं हुआ होता , चूंकि हम सोनी हैं इसलिए बहुत बड़ा अन्याय हो गया। उनका जमीनी विवाद का मामला सपा सरकार के समय का था

ये वो बात है , जिसे आज तक हर सपाई नकार रहा है कि सपा में जाति विशेष को लेकर कभी कुछ हुआ ही नहीं। किन्तु बचपन के मित्र निवर्तमान कोआपरेटिव अध्यक्ष लवलेश सिंह यादव साक्षी हैं कि यह बात कोई नेता नहीं कह रहा था बल्कि एक अफसर से सामान्य जनता कह रही थी।

स्पष्ट करना चाहूंगा कि जाति और जातिवाद से मेरा दूर दूर तक का संबंध नहीं है और यादवों से विशेष मुहब्बत है। उसकी वजह ये भी है कि मेरी माँ ब्लाक प्रमुख बनीं थी तो यादवों का बहुत बड़ा खुल्ला साहसी साथ मिला , चाची ग्राम प्रधान बनीं और बड़े पापा अभिमन्यु द्विवेदी सहकारी समिति के अध्यक्ष हुए तो भी यादवों का बहुत बड़ा साथ मिला था , सपा शासनकाल में भी हमारे मान – सम्मान और प्रतिष्ठा की खूब रक्षा हुई थी। उदाहरण के तौर पर बीडीओ गुलाम सिद्दीकी कादिर का चुनौतीपूर्ण स्थानांतरण भी तत्कालीन जिलाध्यक्ष स्व. राजबहादुर सिंह यादव और पिता जी की जुगलबंदी से ग्राम्य विकास मंत्री ने रात में ही फैक्स कर दिया था और इस प्रकार से 24 घंटे के अंदर वाली जुबान पूरी हुई थी। ऐसे हर समय पर यादव जाति विशेष का साथ सबसे अधिक हमारे परिवार को मिला।

लेकिन जब बात समाज और राष्ट्र की आती है तो जीवंत उदाहरण के साथ जाति विशेष का नाम लेकर भी लोक कल्याण के निहितार्थ कहना पड़ेगा। कोई नेता कहता है तो बेशक राजनीति नजर आती है परंतु एक पीडि़त व्यक्ति ने कहा तो सपा के शीर्ष नेतृत्व को एवं खासतौर से Astralia Return अखिलेश सिंह यादव को मंथन करने का वक्त है कि विकास के कार्य कितने भी कराए गए हों , वह अपनी गति से चला करते हैं।

भारत में विभाजन के बाद से लगातार प्रतिनिधित्व को लेकर चुनाव संपन्न हुए हैं और सुशासन जनता के लिए होना चाहिए नाकि जातिविशेष तक सिमट जाना चाहिए। यही हार और जीत का बड़ा कारण हो जाता है। जनता ने महसूस किया था , इसलिए सपा को सत्ताच्युत कर दिया।

अब सपाइयों के पास लंबा वक्त है कि जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे व्यक्तित्व के समाजवादी विचारों को छुट्टी के इन दिनों में ना सिर्फ पढ़ें बल्कि चिंतन मंथन कर आत्मसात भी करें ताकि फिर कभी मित्र – मित्र को देखकर हकीकत से सामना होने पर मंद मंद मुस्कुराने को मजबूर ना हो।

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