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@Saurabh Dwivedi

आज भी साधु एकांत मे वास करते हैं। किसी अच्छे साधक से मिलन साकार करना हो तो एकांत मे रम रहे साधु से मिलने पर संभव हो सकता है। शास्त्रों मे साधुओं की सेवा से होने वाले पुण्य का वर्णन है तो वहीं चित्रकूट के धार्मिक इतिहास में साधुओं की विरली कथाएं जीवंत हैं। एक ऐसी ही कथा से बांके बिहारी मंदिर के पुजारी भारतेंदु दुबे के साधु सेवा कार्य से परिचय प्राप्त हुआ , जो वास्तव में प्राचीन साधु विरली कथाओं को प्रमाणित करती है।

कथा का सारांश यहाँ से शुरू होता है कि लाला के भक्त भारतेन्दु दुबे को मन – मस्तिष्क में साधुओं की सेवा करने की प्रेरणा प्राप्त हुई और स्थान निर्दिष्ट हुआ ब्रह्मकुंड ! उन्हें बताया गया कि ब्रह्मकुंड में साधुओं की सेवा करके आइए। अब सेवा किसी एक साधु मात्र की नहीं की जा सकती थी। अतः उन्होंने सामर्थ्य के अनुसार ई रिक्शा में राशन सामग्री व पूजा सामग्री ले ली।

मेरी मुलाकात उस वीडियो से हुई , जिसमें भारतेन्दु दुबे एक साधु से मधुर वाणी मे कहते हैं कि ” बाबा अगरबत्ती खत्म हो गई थी ? “

बाबा कहते हैं कि हाँ बेटा अगरबत्ती खत्म हो गई थी। पुनः पुजारी जी कहते हैं कि देखो भगवान ने भेज दी ना ? कामतानाथ ने भेज दी ना ! भगवान कृष्ण के साधक को साधुओं की सेवा करने का अहसास होना एक साधु के पास अगरबत्ती पहुंचाने का संदेश था।

ऐसी ही संत सेवा की कथाएं अनुसुइया आश्रम के स्वामी परमहंस जी के समय से जीवंत हैं , जब उनकी सेवा में भी घनघोर जंगल में सेवक पहुंच जाते थे। जो किसी बाघ व हिंसक पशुओं से नहीं डरते थे। वर्तमान मे चित्रकूट का प्राकृतिक स्वरूप बदल चुका है , जंगल की जगह इमारते खड़ी हो गई हैं व तेजी से प्राकृतिक स्वरूप भौतिक स्वरूप की ओर बदलता जा रहा है। जबकि प्रकृति की सुंदरता से छेडछाड़ किए बिना सुविधाओं को दिया जा सकता है और आध्यात्म और प्रकृति का संगम बना रहने दिया जा सकता है। ऐसा महसूस होता है चित्रकूट के प्राकृतिक सौंदर्य को बचाना बहुत आवश्यक है। जैसे कि स्वामी परमहंस जी व बांके बिहारी की यही इच्छा हो।

ब्रह्म कुंड मे साधुओं को समर्पित

असल में संत सेवा की कथा में परमात्मा के संदेश हृदय में तरंग बनकर आ जाते हैं। इसलिए मैंने कथा के बीच में चित्रकूट के आध्यात्मिक व प्राकृतिक सौंदर्य के अस्तित्व की चर्चा कर दी। लेकिन महामारी के इस समय में साधुओं के समक्ष जो संकट व्याप्त हुआ है , उस संकट को हरण करने के लिए भगवान अपने भक्त को स्वयं प्रेरणा प्रदान कर देते हैं।

इसलिए बांके बिहारी के पुजारी जब साधु के पास अगरबत्ती लेकर पहुंचते हैं और उनके संवाद से सिद्ध होता है कि वास्तव मे अगरबत्ती खत्म हो गई थी तो यहीं पर ईश्वर के अंश और अस्तित्व का अहसास होने लगता है। जीवन में सत्कर्म अवश्य करना चाहिए और साधुओं की सेवा कर पुण्य प्राप्त करना चाहिए। इस समय सुदूरवर्ती जंगल में रह रहे साधुओं की चिंता करना परम आवश्यक है। चूंकि वह एकांत में साधना करते हैं और एक साधक के आशीर्वाद से मनुष्य के जीवन से पाप नष्ट हो सकते हैं व मानसिक संक्रामक रोग समाप्त हो जाते हैं।

बांके बिहारी के भक्त भारतेन्दु जी ने साधुओं की सेवा करने को अपना सौभाग्य बताया व उन्होंने कहा कि महामारी के समय में बंदरों की सेवा से लेकर साधुओ की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , यह परमात्मा की प्रेरणा से हुआ है। जो आज सेवा की एक कथा पुनः अस्तित्व मे आई है और सात्विक विचार के मनुष्यों से निवेदन है कि वह गरीब – जरूरतमंद मनुष्य की सेवा कर ईश्वर की सच्ची पूजा करें।

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