@Saurabh Dwivedi
गांव से पलायन कर शहर मे मुकाम बनने के बाद एक शख्सियत का आकर्षण हर शख्स को अपनी ओर खींचता है। इस सफलता और आकर्षण के बीच संघर्ष की कहानी दर्दनाक व चुनौतीपूर्ण होती है। ऐसी ही एक शख्सियत राजीव तिवारी हैं , जिन्होंने गरीबी के अंधकार मे जीवन व्यतीत किया तो अब अमीरी के प्रकाश में जी रहे हैं। लेकिन लाकडाउन की चुनौतियों ने पुनः संघर्ष महसूस कराया।
ग्राम नोनार जनपद चित्रकूट मे आज ही के दिन जन्में राजीव तिवारी अब पुणे में रहते हैं। जहाँ इनका अपना एक करोड़ ₹ का फ्लैट है व मनोरमा डेवलपर्स नाम से कंपनी है। यह सब सुनने मे बड़ा सुहाना लगता है। किन्तु हकीकत में पलायन के दिन को महसूस करें तो जब इन्होंने घर की दहलीज और जनपद की दहलीज से बाहर कदम रखा था , तब सचमुच सीना फट गया रहा होगा।
यह दर्द अहसास करने की मांग है कि जब – जब कोई युवा चंद पैसे कमाने के लिए मां के आंचल से दूर चला जाता है , तब – तब इसके लिए हमारे गृह राज्य – गृह जनपद की राजनीति कितनी जिम्मेदार है ? जहाँ वर्तमान समय मे भी सीधे रोजगार मिलने की संभावना रेगिस्तान में पानी मिलने की तरह है , आखिर हमने प्रगति कितनी की है ? यह सवाल राजनीति और समाज के जिम्मेदार लोगों से रहेगा !
गांव पर चर्चा के दौरान मनोरमा डेवलपर के डायरेक्टर राजीव तिवारी से चर्चा हुई। यह चर्चा इसलिए कि गांव मे संभावनाएं तलाशी जाएं। यहाँ के युवाओं मे मानसिक स्तर को उच्च किया जाए। विवाद के अतिरिक्त विकास की चर्चा हो और चर्चा सिर्फ सड़क , बिजली , पानी की ही नहीं अपितु स्वालंबी बनाने की चर्चा। एक ऐसा मानसिक विकास हो कि गांव का युवा दूरदर्शी सोच का हो। वह अपने भविष्य के प्रति सजग हो और परिस्थिति के अनुसार कहीं भी हो तो उत्तम लोक व्यवहार से शीघ्र सफलता अर्जित कर सके।
इसलिए ऐसे व्यक्तित्व का अनुभव काम आता है। जो अपने अनुभव को गांव के युवाओं से साझा कर सकें। जनपद के युवा सुन सकें और सफलता के रहस्य को समझ सकें। एक सफल व्यक्तित्व के लिए धैर्य कितना आवश्यक है , इसका ज्ञान युवाओं को होना चाहिए।
इनकी कहानी में वह दिन – रात भी दर्ज हैं , जब नींद सीमेंट की गोदाम में लेते थे। यह सफलता के संघर्ष की प्रथम सीढ़ी है। यदि इस दिन ये हार जाते या इस दिन को नकार देते तो आज एक करोड़ के फ्लैट में रहने का सौभाग्य नहीं मिलता।
इन्होंने अच्छा काम किया और बदले में सुपरवाइजर की पोस्ट तक एक कंपनी मे पहुंचे। दूरदृष्टि सोच से काम पर बारीक नजर रखी। एक इमारत नींव से बुलंद छत तक कैसे पहुंचती है , इस पूरे काम को मन – मस्तिष्क से समझ सके।
एक दिन ऐसा आया भी जब इनको नौकरी छोड़नी पड़ी। किसी की भी नौकरी चली जाए तो वह निराश – हताश हो जाता है। यही वो पल है जब हमें धैर्य की आवश्यकता होती है। यही वो पल है जब हमें एक समझदारी से भरा निर्णय लेना पड़ता है।
एक अजनबी से महानगर में जहाँ भाषाई अंतर भी था। वहाँ इन्होंने खुद का काम करने का निर्णय लिया। छोटे – छोटे काम करने लगे। जब हम छोटे – छोटे काम में अच्छा परिणाम देते हैं तब वह चर्चा का कारण बन जाते हैं। धीरे-धीरे इनके काम की प्रशंसा होने लगी। जीवन में आपकी प्रशंसा आपको बहुत दूर तक ले जाती है , जहाँ सफलता का महल होता है।
इसी की बदौलत ये लोगों के महल बनाने लगे। इनकी कंपनी को बड़ी – बड़ी कंपनी से कांट्रेक्ट मिलने लगे। इस तरह आप स्वयं बिल्डर बनने की ओर चल पड़े। किन्तु अभी यही सफलता का चरम नहीं है। अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। लेकिन गांव से पलायन कर आत्मनिर्भर होना व अपने साथ काम करने वाले परिजनों को आत्मनिर्भर बनाना बड़ी बात है।
आज राजीव तिवारी जैसे युवा बिल्डर आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर के बड़े उदाहरण हैं। जब देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत का नारा देते हैं , तब आत्मनिर्भर व्यक्तित्व की कहानियां देश के सामने प्रस्तुत होनी चाहिए। देश के तमाम परिवार , मुखिया और परिजनों को महसूस करना चाहिए कि एक युवा के आत्मनिर्भर बनने में कितना संघर्ष है , और कितना मानसिक सहयोग की आवश्यकता होती है। अतः ऐसी शख्सियत के अनुभवों को जानकर प्रतिभा के अनुसार अपने बच्चों को अलग – अलग क्षेत्र मे सफल बनने में सहयोग करें , यह परिवार के हित में और राष्ट्र हित में बड़ी देशभक्ति का काम होगा।
हम ऐसी शख्सियत के जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनायें व उज्ज्वल भविष्य की परमात्मा से प्रार्थना करते हैं व आशा करते हैं कि मानसिक विकास , गांव के मुद्दे और जनपद सहित प्रत्येक जन सरोकार के मुद्दे पर सहयोग प्रदान करते रहेंगे। जिससे हम अनवरत यात्रा कर परिवर्तन में भागीदार होंगे।
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