By – Sandhya tripathi
प्रपंचतंत्र की कहानियां भाग 2
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बहुत पुराने समय की बात नहीं है। जंगल के जानवरों में एकता की वजह से कुछ समय से लकड़बग्घों की कोई युक्ति काम नहीं कर रही थी। समस्त जानवर इतना हिलमिल कर रहते थे तो शेर जैसे बड़े शिकारियों को तो शिकार मिल जाता था किंतु लकड़बग्घे बहुत परेशानी में थे। आख़िर उन्होने एक योजना बनाई और दूसरे दिन से ही सुनियोजित तरीक़े से वे अपनी योजनानुसार कार्य करने लग पड़े। उन्होंने सभी बड़े जानवरों को समझाना आरंभ किया कि जंगल में मात्र एक नदी है और ये सब छोटे जानवर जो नित्यप्रति उसका पानी पी-पी कर उसे समाप्त किये डाल रहे हैं, अंततः एक दिन सारे बड़े जानवर एक-एक बूंद पानी के अभाव में तरस-तरस कर मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे।
हालाकि लकड़बग्घों को बहुत मेहनत करनी पड़ी पर शनैःशनैः वे बड़े जानवरों को यह समझाने में कामयाबी हासिल करने लगे। यद्यपि कुछ अनुभवी और विद्वान जानवर बार-बार उनसे यह कहते रहे कि इतनी विशाल नदी कोई छोटा मोटा जल भराव तो नहीं जो छोटे जानवरों के पीने से उसका जल समाप्त हो जाएगा, लेकिन वे कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थे। बल्कि लकड़बग्घे ताक लगाकर इन अनुभवी और बुद्धिमान जानवरों पर आक्रमण कर उन्हें मार डालते थे। और बहुतायत में जंगल छोटे जानवरों के खिलाफ हो गया। बड़े जानवरों ने इस भय में कि नदी का पानी समाप्त न हो जाये धीरे-धीरे छोटे जानवरों को भगाना/मारना शुरू कर दिया। कथा अभी ज़ारी है जब उसका नतीज़ा निकल आएगा तभी यह कहानी पूरी हो सकेगी।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अग़र फूट डालनी हो तो एक पक्ष में किसी किस्म का भय पैदा कर देने से बेहतर नतीजे प्राप्त हो सकते हैं।