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समुद्र से मोती चुनकर कोई गोताखोर ही ला सकता है। सागर में संसार हेतु बहुमूल्य संपदा का भंडार होने के साथ संजीवनी सरीखी सी प्राकृतिक संपदा होती है। अगर गोताखोर जानकर है तो समुद्र से संसार को जीवन देने लायक संपदा ला सकता है।

दिव्यांगता एक वरदान की लेखिका रीभा तिवारी ने उसी समुद्री गोताखोर स्वभाव का परिचय दिया है। उन्होंने मेहनत और संवेदना के बल पर समाज के लिए ऐसे पचपन किरदार चुनकर लायी हैं कि उनके जीवन का संघर्ष और सफलता के प्रसंग पढ़कर मरणासन्न व्यक्ति भी जी उठेगा।

रामायण का वह कथानक याद आता है। जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे , तब हनुमानजी ने संजीवनी लाकर उनके जीवन को पुनर्जीवन प्रदान करने का काम किया था। यह किताब प्रकाशक की भूमिका में वैद्य की भूमिका का निर्वहन करती है और स्वयं लेखिका ने हनुमान सी खोज की है।

इस किताब का हर किरदार प्रेरणात्मक संजीवनी है। अक्सर लोग जीवन में उदास हो जाते हैं। समाज में अवसाद जैसी बीमारी लोगों को कब्जे में करती जा रही है। सकलांग कहलाने और दिखने वाले लोग मानसिक रूप से विकलांग हो जाते हैं। इसका आभास तमाम परिजनों को नहीं हो पाता और वह व्यक्ति अवसाद के चलते जीवन खो बैठता है।

पर इस किताब के तमाम किरदार पढ़कर निश्चित रूप से जी उठना होता है कि अरे जब इतनी बुरी परिस्थिति से ऊपर उठकर एक दिव्यांग गोल्ड मेडलिस्ट हो सकता है तो हम जिंदगी से क्यों हारें ?

अरे एक दिव्यांग व्यक्ति रामायण सहित सम्पूर्ण आध्यात्मिक परिक्षेत्र का विद्वान ईश्वरीय स्वरूप हो सकता है तो हम जीवन से हार क्यों रहे हैं ?

एक बेटी जो बचपन से संपूर्ण शरीर से अपंग हो जाती है। शून्य पड़ जाती है वह भी भविष्य में स्वयं के लिए नहीं बल्कि दूसरों की सहायता के लिए जीवन जीती है। यहीं पर हमें अपार ताकत और संसार की अच्छाई का आभास होने लगता है।

वास्तव में संसार आज भी अच्छाई की धुरी पर टिका हुआ है। इस अच्छाई और जीवन के संघर्ष का एहसास इस किताब के साथ विचरण करने में हो जाता है। विदेशी लेखकों ने जिंदगी को सफल बनाने के लिए बहुत सी किताबें लिखीं , तमाम नियम और सिद्धांत बताए पर रीभा तिवारी ने इस किताब के माध्यम से हर जीवन को वरदान प्रदान कर दिया है।

सचमुच दिव्यांगता एक वरदान ना सिर्फ दिव्यांगो को पहचान दिलाने के लिए है बल्कि भारत के हर युवा व युवतियों की जिंदगी के लिए है। यह किताब मनुष्य के लिए वरदान है।

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