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@Saurabh Dwivedi

पहाड़ी / चित्रकूट : एक तरफ आजादी का जश्न मनाने की तैयारी हो रही थी। बड़े गर्व के साथ ध्वजारोहण करने वाले थे तो एक तरफ मृत आदमी का शव लावारिस पड़ा था। यह वही आम आदमी है जिसके लिए आजादी वाला लोकतंत्र लाया गया और अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के विकास की अवधारणा स्थापित की गई। लेकिन बड़ा सवाल है कि यदि यह शव आपका होता ? आपके किसी परिजन का होता तो क्या पुलिस प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग यूं शव को सड़ने के लिए पड़ा रहने देते। महसूस करने की बात है कि यहाँ आम गरीब इंसान को इंसानियत से देखा जाता है कि नहीं !

मामला पहाड़ी थाना क्षेत्र के प्राथमिक चिकित्सालय का है। एक छोटा सा व्यापारी राह चलते आकाशीय बिजली का शिकार बताया जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। मृत्यु के पश्चात शव थाना पहाड़ी के प्रभाव क्षेत्र मे आ जाता है और अस्पताल पहुंचता है। चिकित्सकों के द्वारा मृत घोषित होने के पश्चात तत्काल पोस्टमार्टम हाऊस पहुंचना चाहिए था। किन्तु यह शव रात भर खुले आसमान के नीचे पड़ा रहा , वह भी आजादी की पूर्व संध्या पर !

कस्बा पहाड़ी मे थाना और चिकित्सालय की दूरी महज लगभग आधा किलोमीटर या इससे भी थोड़ा कम हो सकती है। समूचा पुलिस प्रशासन एवं कस्बा पहाड़ी के प्रभारी भी यहीं मौजूद थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का समस्त स्टाफ भी मौजूद था। जनपद से महज पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर चिकित्सालय है। किन्तु किसी ने भी मानवता से यह नहीं सोचा कि एक गरीब का शव समय से पोस्टमार्टम हाउस पहुंच जाए। लेकिन बयान बहाने जैसे साबित हुए जैसे कि पुलिस की ओर से कस्बा पहाड़ी इनचार्ज ने कहा कि मर्चरी हाउस में शव रखने के लिए फ्रीजर खाली नहीं है तो वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के डा. विपिन का यह बयान वायरल हुआ कि मर्चरी हाउस में शव रखने की पर्याप्त जगह थी।

जिम्मेदार प्रशासन के यह अलग-अलग बयान साबित करते हैं कि घोर लापरवाही हुई है और मानवता का कत्ल कर दिया गया है। रूह कांप जाएगी जब मानवता को महसूस करेंगे कि अरे हम आजाद हैं ? हमारे देश मे आजादी की सुबह में एक शव ने हमें शर्मसार कर दिया। हम मानवीय भारत की परिकल्पना मे असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा पार कर गए। यह घोर असंवेदनशीलता है। मानवता के खिलाफ शंखनाद है।

अभी कल्पना करिए कि ऐसा किसी वीआईपी के साथ हुआ होता , कल्पना करिए कोई ए ग्रेड के अफसर के साथ ऐसा हुआ होता ! कल्पना करिए किसी रसूखदार घराने का यह कोई व्यक्ति होता ? एक धनाढ्य होता ! तो क्या उसका शव यूं पड़ा रहता ? क्या उसके शव पर पुष्प अर्पित नहीं हो चुके होते ? उसके शव का ख्याल किसी जिंदा आदमी से ज्यादा रखा जाता। हमारे ही देश में समृद्ध लोगों के शव और गरीब आदमी के शव के मध्य यह स्पष्ट अंतर महसूस किया जा सकता है।

यह हमारे देश और जनपद की हकीकत है। एक ग्रामीण भारत के गरीब की दशा है और यह एक आम आदमी की औकात है ! चूंकि पुलिस प्रशासन को बयान देकर पल्ला झाड़ लेना है। अगर संवेदनशीलता होती तो प्रशासनिक कर्तव्य निभाते हुए शव को तत्काल सम्मानित ढंग से सुरक्षित कर दिया होता।

ऐसे प्रशासन को कार्रवाई होने का तनिक भय नहीं होता है तभी ऐसी शर्मसार करती हुई घटनाएं मानस लोक में अवतरित हो जाती हैं कि कभी कोई गरीब अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर निकल पड़ता है तो कभी किसी गरीब का शव बारिश से भीगता रहता है और लावारिस शांत चित्त लेटा रहता है।

यहाँ जिंदा आदमी की तो सुनी नहीं जाती , भला शव की कौन सुनेगा ! चूंकि शव की सुनने के लिए महसूस करने की क्षमता होनी चाहिए और आप में संवेदनशीलता होनी चाहिए , शायद यह दोनों गुण प्रशासन पर बैठा हुआ कथित मानव विस्मृत हो चुका है। तभी तो वह बयान देते हुए कांपते नहीं हैं और उन्हें चैन की नींद भी आ जाती है , बड़ी बात है कि यह लोग कर्मठ व ईमानदार कहलाए जाते हैं।

यदि वास्तव में किसी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और प्रशासन के उच्चाधिकारियों में मानवता हो तो कम से कम ऐसी घोर अमानवीयता पर जिम्मेदार कर्मियों के प्रति कठोर से कठोर कार्रवाई की जाए ताकि फिर कभी स्वतंत्रता दिवस के दिन यूं शर्मिंदा ना होना पड़े , वैसे आजादी का कोई एक दिन नहीं है और हर दिन आजादी का है तो किसी भी दिन आम – गरीब आदमी के साथ ऐसी क्रूरता ना हो सके। यदि मानव हैं और मानवता है तो इस शव को न्याय मिलना चाहिए , जिससे मानवता की ओर समाज सोच सके और विश्वास कर सके।

एक बार प्रशासन को ईमानदारी से मंथन करना चाहिए कि उन्होंने आजादी की 74वीं वर्षगांठ को कलंकित किया है कि नहीं ! और ध्वज के सामने खड़े होकर अथवा महापुरूषों के सामने खड़े हो अपनी गलती के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। यह कितना दुखद है कि जिंदा लोगों के बीच एक शव लावारिस पड़ा रहता है फिर सवाल है कि क्या आप जिंदा हैं ? मंथन करिए कि प्रशासनिक व्यक्ति होकर कर्तव्य का निर्वहन निष्ठा से ना कर किसके साथ धोखा कर रहे हैं ? स्वयं के साथ ? अतः इस गलती का पश्चाताप ही मानवता को अमृत की दो बूंद पिला सकता है।

अंततः हृदय के शब्द यही हैं कि ” एक पुष्प मुरझा जाए और उसका दर्द महसूस हो तो संवेदना व मानवता का दर्शन मिलता है। इस शव के लिए चंद पंक्तियां ही सवाल करती हैं। जो मानवता के कत्ल पर उसकी जीत की ओर संकेत करती हैं। एक कैसे मानव की आवश्यकता है , यह भी साबित करती हैं। संवेदनशीलता कितनी आवश्यक है यह स्पष्ट करती हैं। चूंकि संवेदनशीलता होती तो एक आम आदमी के शव को भी सम्मान मिल गया होता। समाज और राष्ट्र में इस अंतर को महसूस करिए फिर आजादी के मायने समझिए।

” पुष्प के मुरझाने से
यदि होती
तुम्हे मायूसी तो ,
आजादी के मायने समझ जाते ! “

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