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चित्रकूट : सुगबुगाहट होने लगी जब डिप्टी सीएम बृजेश पाठक प्राचीन द्वार मे दर्शन करने पहुंचे तो मुख्य द्वार मे उनके दर्शन की तैयारियों की चर्चा हो रही थी। असल मे जानकीकुंड के सामने तुलसीपीठ कांच मंदिर मे एक वर्दीधारी जिम्मेदार अधिकारी ने निर्देश दिया कि प्राचीन द्वार चलना है जिन्होंने यह सुना तो क्लियर करते रहे कि प्राचीन द्वार !
तस्वीर स्पष्ट हुई जब पूर्वी मुखार बिंदु प्राचीन द्वार मे डिप्टी सीएम ने दर्शन किए और उनका काफिला दिव्यांगों के एक स्कूल के ठीक सामने वाली गली से होते हुए कामतानाथ मुख्य द्वार के सामने से होते हुए गुजरा , हालांकि प्राचीन द्वार के पास से ही एक चौड़ा बाईपास मार्ग बन चुका है और व्यवस्थापक अफसरों के संज्ञान मे वह बाईपास मार्ग है लेकिन एक सकरी गली से डिप्टी सीएम का काफिला निकला जबकि वहाँ ट्रैफिक जाम की समस्या किसी भी पल हो सकती थी। अनजाने मे देर तक डिप्टी सीएम का काफिला फंस सकता था।
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लेकिन कामतानाथ मुख्य द्वार के सामने से उनका काफिला निकल गया और इस वक्त वहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ नजर आ रही थी तो हमने मुख्य द्वार के महंत मदनगोपाल दास जी को फोन कर जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन महंत मदनगोपाल दास जी ने बात नही कि बल्कि कुछ देर मे उनके एक शिष्य ने फोन किया और बातचीत मे कहा गया कि महराज जी एक बैठक मे हैं और डिप्टी सीएम को रामघाट आरती स्थल पहुंचना था। इसलिए वह सीधे निकल गए होंगे।
अब डिप्टी सीएम का काफिला रामघाट आरती स्थल पहुंचा ही नही था। उनका काफिला सीधे यूपीटी पहुंच गया। तो स्पष्ट हुआ कि मुख्य द्वार मे दर्शन ना करने की पीछे की राजनीति की जो जानकारी मिल रही है वह कितनी सटीक जानकारी है।
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हाँ ; गुप्तचर बताते हैं कि यह राजनीति दो संत के आपसी मतभेद की वजह से है जिनके कारण कामतानाथ के साथ भी भेदभाव हो रहा है। बताते हैं कि एक रत्न संत हैं जिनकी पहुंच केन्द्र तक मानी जाती है तो उनके यहाँ से ऐसा कोई संकेत हुआ कि मुख्य द्वार नही प्राचीन द्वार जाना है।
हालांकि यह सब जानकारी पर आधारित है और कौतुहल भी जनता के मन मे होता है कि राहुल गांधी हों या अखिलेश यादव हों अथवा खुद एक समय सीएम योगी इन सभी ने मुख्यद्वार मे दर्शन किए और रजिस्टर पर सूचनार्थ अंकित भी किए। फिर कामतानाथ मुख्य द्वार के सामने से काफिला गुजरा तो दर्शन क्यों नही किए गए ?
फिलहाल चित्रकूट संतों की राजनीति का तापमान हाई लेवल का है , ऐसी जानकारी मिल रही है। हालांकि बताने वाले बताते हैं कि लोग संतों की राजनीति के बारे मे बात करने से डरते भी हैं इसलिए ऐसे घटनाक्रम पर कलम जल्दी किसी की चलती नही।