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By :- pushker awasthi

कल फ्रांस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के बीच द्विपक्षीय वार्ता से पहले हुए प्रेस कांफ्रेंस में दोनो नेताओ के व्यवहार में अनौपचारिकता का भारत समेत, विश्व भर में काफी चर्चा हो रही है। इसको देखने से यह तो समझ मे आ ही जाता है कि दोनों के बीच एक विशेष तालमेल है, जो आज के विश्व की सच्चाई को काफी हद तक एक ही दृष्टि से देख रहे है।

अब जब कि मोदी जी भारत आगये है और ट्रम्प वापसअमेरिका चले गए है तब बाहर हुई अनौपचारिकता से ज्यादा महत्व इस बात को हो जाता कि दोनों के बीच बन्द कमरे हुई द्विपक्षीय वार्ता में क्या हुआ और वार्ता से निकल कर ट्रम्प इतना प्रसन्न क्यों थे? उन्होंने निकल कर यह तो कह दिया कि भारत की अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन उसके आलावा उन्होंने कुछ नही कहा है।

आज जब मैं कल की घटनाओं को तटस्थ भाव से देखता हूँ तो मुझे लगता है कि वार्ता से पूर्व जो पत्रकारों के सामने हुआ वह ट्रम्प और मोदी जी साझा लिखी गयी स्क्रिप्ट का हिस्सा था। इन दोनों को नाटकीय रूप से पाकिस्तान व उसके समर्थको को सीधे तरीके से अपने मन्तव्य बताने थे, जो उन्होंने सफलता पूर्वक बता भी दिया है। लेकिन उसके बाद जो द्विपक्षीय वार्ता, जो करीब 40 मिनट चली वह पुरो तरह गम्भीर वातावरण में हुई है। यह वार्ता दोनो नेताओ के अपने अपने राष्ट्र के हितों के लैकर हुई है। इस वार्ता के बाद भारत के विदेश सचिव ने प्रेस ब्रीफिंग दी थी, जिसमे उन्होंने इस वार्ता के वणिज्यकी पक्ष व उससे निकले परिणाम पर प्रकाश डाला है। जो वार्ता की बात सामने आई है वह जहां भारत के हितों का तो लाभ है ही, वही यह परोक्ष रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को भी लाभान्वित करेगा।

आप लोगो को यह तो पता ही होगा कि मोदी जी का सितंबर 2019 में अमेरिका का दौरा पूर्वनिर्धारित है, जहां उन्हें संयुक्तराष्ट्र संघ के अधिवेशन में भाग लेना है। मोदी जी की इस यात्रा का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि उनको राष्ट्रपति ट्रम्प से कोई आधिकारिक मुलाकात नही करनी है बल्कि वे ह्यूस्टन, टेक्सास जाएंगे और वहां के तेल व ऊर्जा क्षेत्र के व्यापारिक समूह और भारतीय समुदाय से मिलना है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि टेक्सास, अमेरिका का वह राज्य है जहां तेल का भंडार है और विश्व की सबसे बड़ी तेल कंपनियों का मुख्यालय स्थित है।

भारत, आज के दिन अमेरिकी तेल आयातित करने वाला सबसे बड़ा राष्ट्र है। मोदी जी जबसे प्रधानमंत्री बने है तब से मध्यपूर्व एशिया से तेल की निर्भरता को कम करने के लगे हुए है और उसके परिणामस्वरूप आज 4 बिलियन डॉलर का तेल अमेरिका से आयातित कर रहे है। उनकी यह ह्यूस्टन की यात्रा इसी परिपेक्ष में है। वैसे तो मोदी जी का एजेंडा दीर्घकालीन तेल की सस्ती व निरंतर सप्लाई को लेकर थी लेकिन द्विपक्षीय वार्ता में मोदी जी ने उस एजेंडे को बदल कर ट्रम्प को न सिर्फ चौंक दिया है बल्कि प्रसन्न भी कर दिया है।

हुआ यह कि मोदी जी ने ट्रम्प से न सिर्फ अमेरिकी तेल की खरीदने की बात की है बल्कि भारतीय तेल कम्पनी ओएनजीसी के माध्यम से अमेरिकी तेल के कुएं खरीदने व वहां निवेश करने के निर्णय लिए जाना भी बताया है। यह ट्रम्प के लिए व्यक्तिगत खुशी की बात थी क्योंकि अमेरिका की तेल इंडस्ट्री ट्रम्प की न सिर्फ समर्थक है बल्कि इस इंडस्ट्री में काम करने वाला अमेरिका का वर्किंग क्लास ट्रम्प का कोर वोटर भी है। अब अमेरिका में 2020 को राष्ट्रपति का चुनाव है और चुनावी वर्ष में टेक्सास में कोई भी विदेशी निवेश, ट्रम्प के समर्थको को बल प्रदान करेगा। भारत का यह निवेश ट्रम्प की आर्थिक नीति की सफलता को प्रचारित करने में उपयोगी होगा।

हम भारतीयों के लिए इस निवेश का महत्व भले ही समझ में न आये लेकिन ट्रम्प को समझ मे आगया है। पहले मोदी जी की ह्यूस्टन यात्रा में उनकी बैठके तेल व ऊर्जा क्षेत्र के विभिन्न सीईओ से होनी थी और उसमे अमेरिका की कोई सरकारी भागीदारी नही थी। यह पूर्ण रूप से एक व्यापारिक आयोजन था। लेकिन अब ट्रम्प ने इस आयोजनों में अमेरिकी ऊर्जा विभाग की भी भागीदारी सुनिश्चित कर दी है। अब ह्यूस्टन में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी की व्यापारिक मीटिंग्स में अमेरिका के अधिकारी भी भाग लेंगे जो भारत के तेल व ऊर्जा सम्बंधित प्रस्तावों को पूरी तरह सफलता दिलाने में सहायक होंगे।

मोदी जी निश्चित रूप से अच्छे राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और प्रशासक है लेकिन साथ मे अच्छे व्यापारी भी है। उन्हें राष्ट्रहित में कब और कैसे व्यापारिक बिसात बिछानी है, अच्छी तरह आता है।

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