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By – Devanshu jha

नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति में पिछले सोलह सत्रह वर्षों से जाने जाते हैं । हमारे देश के मूर्धन्य पत्रकारों ने उन्हें गुजरात दंगों के बाद से कुख्यात किया । मीडिया ट्रायल का शास्त्रीय उदाहरण बने नरेन्द्र मोदी । मुझे ध्यान ही नहीं आता कि सेक्यूलर मीडिया के भयावह प्रभुत्व में किसी और राजनेता को इस तरह से मलिन करने का षड़यंत्र रचा गया हो । खैर, यतो धर्म: ततो जय:! मोदी जी इसके जीवंत प्रमाण हैं ।

नरेन्द्र मोदी के सार्वजनिक जीवन के पिछले पच्चीस तीस वर्षों में उपलब्ध साक्षात्कार, संबोधन, वैचारिकी को देख लीजिए । उतना स्पष्ट, धर्मबद्ध, तार्किक कोई और नहीं मिलेगा।उनके विचारों में कोई अंतर नहीं आया है । ना ही दृष्टि बदली है । वे तब भी बिलकुल साफ़ और स्पष्ट थे, आज भी हैं । धर्म, राजनीति,देश, लोकतंत्र इन सभी विषयों पर वे विलक्षण सोचते और विचारते रहे हैं । बहुत सारे साक्षात्कार इसके प्रमाण हैं।

गुजरात दंगों के बाद से उन्हें षड़यंत्रकारी मीडिया ने बदनाम कर नष्ट करना चाहा । उतनी उलाहनाएं और भर्त्सनाएं सुनकर तो आदमी टूट सकता है पर वे वज्र की तरह खड़े रहे । धर्मनिष्ठ थे इसलिए झूठी लांछनाओं से विचलित नहीं हुए ।ईश्वर साथ थे, समय न्याय कर सका ।

एक घोर संघाती सरकार के दर्जनों कुचक्रों को तोड़कर बेदाग निकलने वाले नरेन्द्र मोदी को किसी पत्रकार का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए । वे लोकतंत्र की संवैधानिक संस्थाओं में अपना उन्नत माथ लिये खड़े रहे हैं । उन्हें देश की छोटी से लेकर सर्वोच्च अदालतों ने बेदाग़ कहा है ।

ताज्जुब है कि नैतिकता से दूर और अति साधारण बुद्धि विवेक वाले पत्रकारों ने उन्हें अपराधी घोषित किया और नग्न, घोषित लुटेरों, लंपटों, वंशवादी पतितों, आकंठ भ्रष्टाचारियों को नायक बनाया । परंतु, मीडिया के बनाए नायक अपना असली रंग दिखला देते हैं । टिकता वही है जिसमें धर्म और सत्य की शक्ति होती है । नरेन्द्र मोदी टिके ही नहीं हैं, निरंतर ऊपर उठ रहे हैं । तुम अपनी कंजी आंखें साफ़ करो पत्रकार महोदय !! वह महानायक है ! उसे तुम रोक नहीं सकोगे !!

इस पथ का उद्देश्य नहीं है
श्रान्त भवन में टिक रहना
किन्तु पहुंचना उस सीमा तक
जिसके आगे राह नहीं……… प्रसाद

( लेखक टीवी जर्नलिस्ट्स हैं )

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