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मैंने कभी भी राजनीति को सक्रियता से नहीं सोची और ना ही समझी। छात्र जीवन में इन सब पर बातें मुफ्तखोरी लगती थी। सन 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार वोट देने का मौका मिला था। बाकी इलेक्शन जब भी होता था तब पापा के लिये जरूर चिंतित होती थी क्योंकि वो पीठासीन अधिकारी होते थे।

सन 2014 में मेरी एक दोस्त की पोस्टिंग बस्तर हुई, यह उसको CRPF जॉइन करने के बाद यह पहला मौका मिला था जब उसे इलेक्शन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, वो भी अति संवेदनशील बस्तर के दुर्दांत इलाके में। कमांडेंट सर का यह विश्वास भी उसके लिये किसी मेडल से कम नहीं रहा कि उन्हौने उसे यूनिट के सबसे संवेदनशील और सूदूर क्षेत्र में बतौर कम्पनी कमांडर भेजा।

इलेक्शन महज इलेक्शन ना होकर एक जंग की तरह था। जंग लोकतंत्र के प्रहरी और लोकतंत्र के दुश्मन के बीच! जंग चुनाव कराने की जिद और चुनाव के बहिष्कार के बीच। इलेक्शन के एक महीने पहले से ही माहौल अति संवेदनशील हो चला था। नक्सली गिरोह बनाकर सुरक्षाबलों को टारगेट करने की ताक में लगे रहते थे। और यह लड़ाई शुरू हो चुकी थी जिद और सनक के बीच!

सबसे पहली घटना जो हुयी वो बासागुड़ा क्षेत्र में 168 बटालियन के बंकर को उड़ाने से हुयी। चार सोल्जर शहीद हुये जिसमें दो ट्रेनिंग के उपरांत जुलाई 2018 में ही यूनिट को जॉइन किये थे। उम्र महज 21 वर्ष के आसपास की। खैर…वक्त तो भावुक होने का सेना के पास कभी नहीं रहता और हम शहादत को नियति मान आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन, एक अफसोस उम्र का जरूर रहा और एक अफसोस यह भी कि काश दुश्मन सामने से आकर लड़ता।

यह एक चिंगारी थी जो इस बात की संकेतक थी कि बस्तर जलेगा! आग लगानेवाले चारों तरफ बैठे थे, और बुझाने वालों को खुद जलकर आग बुझाना था। फिर जो सिलसिला शुरू हुआ, दंतेवाड़ा में दूरदर्शन के पत्रकार को मारे जाने से लेकर लगातार विस्फोटों का ….वह खबर बनकर आपतक जरूर पहुंची होगी और खबर समझकर आपने जरूर पढ़ा भी होगा।

एक वोट आखिर कितना कीमती होता है!

बस्तर के इलाकों में पोलिंग पार्टी से लेकर पोलिंग मशीनें तक हेलिकॉप्टर से पहुंचायी गयी। उसकी जिम्मेदारी सिर्फ बूथ, पोलिंग पार्टी को सिक्योर करने तक ही नहीं थी, जिम्मेदारी थी क्षेत्र की जनता को इस कदर भयमुक्त कर देना कि उन्हें कोई खौफ ना रहे नक्सलियों के बहिष्कार का। दिन-रात की गश्ती, हर दिन कहीं ना कहीं शहादत, हर दिन जवानों को मोटिवेट करना और फिर से निकल पड़ना किसी जगह अनजान नियति को स्वीकार करने ! अब या तो इसे मशीन कहिये या फिर पागलपन जिसने संविधान की रक्षा में खुद को इतना सनकी बना लिया था कि उसे एहसास हो चला था कि एक वोट आखिर कितना कीमती होता है!

खैर…टारगेट पूरा भी हुआ और हमारे सेना खून से लिखी गयी फिर से एक बेहतरीन इबारत और रेकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ बस्तर में। धराशायी हुयी नक्सलियों की ताकत और हमने उनकी छाती पर लहराया तिरंगा।

लेकिन एक बात मुझे सोचने पर मजबूर करती है! महज 21 वर्ष के बच्चे की शहादत, घर पर एक बूढ़ी मां के अलावा कोई नहीं! छह महीने पहले शादी करके आया हुआ जवान, ख्वाहिश कि चुनाव के बाद छुट्टी में बीवी को किसी टूरिस्ट प्लेस पर घुमाने ले जायेगा!

वाकई में एक वोट कितना कीमती होता है! जिसके सामने जान/सपने/परिवार की कोई वैल्यू नहीं होती। एक स्याही की बूंद उंगली पर लगाने के लिये कई बूंदें खून साथ छोड़ देती है।

किसी शहर में बैठ, राजनीति का विश्लेषण करते हुये और खुद को परम् ज्ञानी मान यह बात कभी नहीं समझी जा सकती। एक वोट की कीमत! खैर….यह लोकतंत्र है जहां अभिव्यक्ति के नाम पर मनमानी ही अधिक करते हैं लोग! लेकिन सोचियेगा कि इतनी बोझिल प्रक्रिया/इतना अधिक खर्च/शहादत सब कुछ है सिर्फ एक वोट के लिये! जिसे आप जाति-धर्म-क्षेत्र से आगे बढ़कर कुछ सोच ही नहीं पाते कभी। मत बर्बाद कीजिये इसे इस तरह से! आपके इस अधिकार के लिये सैकड़ों जानें न्यौछावर होती है अकसर!

इसलिए अपने को भाग्यशाली मानिये की आपके एक वोट के लिए कोई अपनी जान तक न्योछावर करने को तैयार है!!! अपने अधिकार का प्रयोग करें अपने लिए एवं अपनी आने वाली नस्लों की खुशहाली के लिए… ताकि लोकतंत्र जीते…ये देश जीते…

(Copied from Archita Mishra’s wall)

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