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Saurabh Dwivedi

वियोग और संयोग
जिंदगी के सफर में
इन्हीं का महत्व है

रिश्ते होते हैं
रक्त और आत्मा के
सामाजिक बंधन के
सामाजिक मान्यता प्राप्त रिश्ते
जिनकी गवाह सारी दुनिया होती है

आत्मा के रिश्ते की गवाह
सिर्फ और सिर्फ साँसे होती हैं
आत्मा ही देती है गवाही

छीनने के लिए
वक्त और ईश्वर क्या नहीं छीन लेते
उनकी ही मर्जी से
किसी का किसी के जीवन में पदार्पण होता है

रिश्ते आत्मा के हों या सामाजिक रक्त वाले
सभी में संयोग और वियोग होता है
समय के संग सबकुछ घटित होता है

आत्मा के रिश्ते में
सिर्फ और सिर्फ महसूस करना होता है
वो साँसों से महसूस कर
अपनत्व के रस का मन से स्वाद गृहण कर
अंदर ही अंदर प्रेम अपनत्व की इमारत बना लेती है

हाँ उसी आत्मीय घर में
पलने बढ़ने लगता है प्रेम
उस पर भी वियोग महसूस हो
फिर वास्तव में स्थिति पागलपन वाली होती है
फिर भी संभलने संभालने को जिंदगी कहते हैं

हाँ महसूस ही करना कराना है
इसलिये महसूस अगर संयोग हो
तो पल भर की बातें
साँसो में बसकर जिंदगी भर का सुख
प्रदान किए रहती हैं

अपनत्व के संयोग का सुख
दैहिक सुख से अद्भुत होता है
दार्शनिक भी अक्सर ऐसा कहते रहे
जिसे जीवन में ऐसा अद्भुत सुख महसूस हो
यकीनन प्रेम उसी को हुआ है

पर जानती हो मेरी काल्पनिक प्रियतम
तुम्हारी मधुरता में जितना सुख है
तुम्हारे वियोग में भूकंप जैसी त्रासदी भी है
एक पुष्प हूँ और पुष्प की तरह
हथेलियों में ले लो या
जिंदगी के सफर में आगे बढ़ते हुए
पैरों तले कुचल दो
उस पुष्प की तरह सारा रस निकल जाएगा
सुर्ख होकर सूख जाऊंगा
हाँ वियोग कुछ ऐसा ही होता है

संयोग के सुख को
महसूस किया ही है
जैसे पुष्प एकदम स्वस्थ
अपनी ही डाली में खिला रहता है
वैसे ही अपनी डाॅल के संयोग में
खिलता रहता हूँ मैं

तुम्हारा “सखा”

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