कहते हैं हर दिल की धड़कन मे टिकट धड़क रहा है। सपाई खेमे में धड़कन की रफ्तार तेज हो गई है कि सपा के शिव शंकर के डमरू से किसके नाम का नाद होने वाला है। जनपद चित्रकूट मे हाट सीट मानी जाने वाली नगरपालिका कर्वी चित्रकूट धाम में सबकी निगाहें टिकी हुई हैं तो भाजपा का समुद्र मंथन चल रहा है कि भाजपा के देवेश किसका अवतार कराएंगे , खैर इधर आम आदमी पार्टी के एक अध्यक्ष पद के प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया है।
समाजवादी पार्टी मे जातीय समीकरण मतदान के दिन तक बहुत प्रभावी सिद्ध होने वाला है इसलिए भी जिलाध्यक्ष शिवशंकर सिंह यादव प्रत्याशी की घोषणा करने में वेट एंड वाच की प्रक्रिया अपना रहे हैं।
असल मे यादव – कुर्मी मे कुर्सी की जंग तेजधार ले चुकी है। शहर से इनपुट ये मिल रहे हैं कि सपा ने यदि यादव को टिकट दिया तो कुर्मी यादव को वोट नही करेगा और अगर कुर्मी को दिया तो यादव भी मन बना रहा है कि कुर्मी को तो हम भी वोट ना देंगे , ये क्लियर परसेप्सन बन रहा है। इसलिए नगरपालिका की अध्यक्षी मे सपा की लड़ाई आसान नही है। बाकी तीसरी किसी जाति का उम्मीदवार आएगा भी तो फिर इन दोनों जातियों का वह कितना समर्थन हासिल कर पाता है यह उसके व्यक्तित्व पर निर्भर है।
खैर सपा से जागेश्वर यादव और मान सिंह पटेल का नाम चर्चा मे है तो कोई सोनी जी दबी जुबान से चर्चित हो रहे हैं। कुलमिलाकर शाम तक सपा प्रत्याशियों की घोषणा कर देगी।
इधर सत्ता के माहौल मे भाजपा जिलाध्यक्ष चंद्रप्रकाश खरे खुद बड़े अवसर की तलाश मे यूपीटी सीतापुर चित्रकूट से कानपुर और लखनऊ तक पालिटिकल आला लगा रहे हैं कि माहौल कितना गर्म है और टिकट मुझे भी मिला तो मैं भी नगरपालिका अध्यक्ष बन सकता हूँ , फिलहाल सारा दारोमदार संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह और क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल के सर्वे पर टिका है और प्रभारी देवेश कोरी के इनपुट बताएंगे कि जमीनी हकीकत को भांप कर प्रत्याशी तय किया जा रहा है।
टिकट की तारीख जैसे ही करीब आयी तो एक नाम रामबाबू गुप्ता का भी ट्रैफिक चौराहे मे पान के डिब्बे पर सुनाई दिया कि अबकी बार पान वाला नगरपालिका अध्यक्ष बन सकता है , आश्चर्यजनक लोगों को कुछ लोग बताने लगे कि जिस देश मे चाय वाला प्रधानमंत्री हो सकता है उस देश के उत्तर प्रदेश की तपस्वी श्रीराम की नगरी मे पान वाला रामबाबू गुप्ता नगरपालिका का अध्यक्ष क्यों नही हो सकता ? हाँ रामबाबू गुप्ता के शुरूआती दिनों की चर्चा और उनका आज के व्यक्तित्व की चर्चा होती रही कि जमीनी आदमी है और समाजसेवा कर रहे हैं तो भाजपा इस एक चेहरे पर भी विश्वास जता सकती है।
तो ; वहीं निवर्तमान नगरपालिका अध्यक्ष नरेन्द्र गुप्ता पर टिकट का समीकरण इस तरह निश्चित समझ मे आ रहा है कि सबकी लड़ाई नरेन्द्र गुप्ता से है जो भी लड़ रहा है वह नरेन्द्र गुप्ता से लड़ रहा है तो इस एक नाम की चर्चा विरोधी भी कर रहे हैं और सहयोगी भी कर रहे हैं और नरेन्द्र गुप्ता सिटिंग प्रेसीडेंट हैं , वे अपने काम और नाम की बदौलत सीट जीतकर भाजपा की झोली मे डालने की बात कहते हैं।
इस बीच अगर महिलाओं पर विचार हुआ तो चुपचाप आवेदन देने वाली महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष दिव्या त्रिपाठी पर भी महानिर्णय हो सकता है। चूंकि भाजपा है भैया वो दिव्य से दिव्य निर्णय लेना जानती है और अंततः लोग कहते हैं अरे यार हमने तो ऐसा सोचा ही नही था।
ओबीसी सीट पर चर्चा मे आई निशी सोनी भी जोरदार तरीके से टिकट मांग रही हैं। उनके भाइयों आकाश – पाताल एक कर डाला है कि टिकट दो और सीट लो। हाँ इनका कान्फिडेंस हाई लेवल का है कि जीतेंगे तो करण अर्जुन ही और बहन निशी सोनी बतौर प्रत्याशी भाजपा विजय का इतिहास रचेंगी। अन्य टिकटार्थियों की तरह इनको भी विश्वास दिलाया गया है कि विचार अवश्य किया जाएगा।
कर्वी नगरपालिका मे निर्दलीय चुनाव लड़ चुके श्याम गुप्ता भी लखनऊ तक की दौड़ मे शामिल रहे हैं जिसकी भनक पुरानी बाजार से लगी है , बात पुरानी है लेकिन फिलहाल ताजी है कि हो सकता है कुछ लंबे चौड़े कद के नेता की चल जाए तो चित्रकूट मे राम रहेंगे या श्याम , ये भाजपा ही तय कर सकती है और टिकट मांगने वाले अर्जी लगा रहे हैं।
कुछ एक तो बागेश्वर धाम सरकार पर अर्जी लगा रहे हैं तो वहीं सपा का प्रत्याशी अगर आज आ गया तो ईद मिलन सबसे पहले करेंगे कि अमन चैन कायम रहे। फिलहाल इस वक्त नेता सबसे अधिक शिष्टाचार का पालन करते नजर आ रहे हैं।
और कुर्मी यादव की सपाई जंग मे बसपा से एक पटेल साहब गमछा वाले निश्चित आ सकते हैं और उनका दावा बड़ा मजबूत है। कुल मिलाकर के कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसका आकलन लगाकर ही पार्टी टिकट देगी।
इस तरह तो सपा की अपेक्षा भाजपा मे दर्जनों नाम अभी अध्यक्ष पद के लिए कर्वी नगरपालिका मे भी गिनाए जा सकते हैं तो वहीं राजापुर , मानिकपुर और मऊ मे भी टिकट को लेकर जंग जारी है।
अंततः हमारे पालिटिकल प्वाइंट मे कुछ नाम के जरिए जनता को दलगत राजनीति का अहसास कराया गया है। विमर्श के केन्द्र मे शहर की जनता के मुद्दे भी होंगे लेकिन शर्त इतनी है कि जनता अपने मुद्दों के लिए हठ करना सीखे और मुद्दों पर ही मतदान करे ताकि जातिवाद के संक्रामक विष का खात्मा हो सके।
सवाल है क्या यह संभव है ?