खेल हो गया है ? इश्क करना , ब्रेकअप और हत्या कर देना ? बेरहमी से। इससे पहले एक इंसान की हत्या बहुत पहले हो जाती होगी तब वह किसी का इतनी बेरहमी से कत्ल कर पैंतीस टुकड़े कर सकता है। समय के विमर्श मे भविष्य भयावह ना हो इसकी चिंता करनी चाहिए। जिस प्रकार से आधुनिक समय मे बेटा हो या बेटी दोनो के लिए करियर बनाना जरूरी है वहाँ श्रद्धा जैसी रेयरेस्ट घटनाएं रोंगटे खड़ी कर देती हैं कि आखिर समाज का भविष्य क्या होगा ? जबकि बेटियों के करियर की चिंता भी हो !
आफताब ने सिर्फ श्रद्धा का मर्डर नही किया। सिर्फ श्रद्धा के टुकड़े नही किए बल्कि उसने विश्वास का मर्डर किया और उसके ही टुकड़े टुकड़े किए हैं। और चिंता के घनघोर बादल मन के आकाश मे हर माँ – बाप के सामने घिर चुके हैं।
बिलीव अंग्रेजी का शब्द है जिसका हिन्दी विश्वास है और आजकल लिव इन का समय है जिसका हिन्दी साथ रहना है। जिसमे एक लड़का और लड़की साथ रह सकते हैं। यह कानूनन जायज भी ठहरा दिया गया है। परंतु समाज को अधिक सजग हो जाने की जरूरत का समय आ गया है। सबसे पहले बेटियों को समझना चाहिए कि लिव इन मे बिलीव कितना महत्वपूर्ण है ? जब तक साथ रहने वाले दोस्त या कथित प्रेमी को उसकी हर आदत और जीवन जीने के तरीके को ठीक से नही जान जाती हो तब तक उसके साथ रहने का निर्णय कितना गलत हो सकता है , यह श्रद्धा मर्डर केस को स्टडी करके समझ सकती हैं। अगर श्रद्धा आफताब पर अंधविश्वास नही करती तो उसके पैंतीस टुकड़े नही होते। इसलिए प्रेम और दोस्ती मे अंधविश्वास से बचना चाहिए।
सोशल मीडिया पर एक छोटी सी डाक्यूमेंट्री बड़ा संदेश देती हुई देखी गई। उसका शाब्दिक अंश कहना चाहती हूँ कि ” एक लड़का और एक लड़की किराए का रूम लेने के लिए साथ साथ जाते हैं और एक घर मे घंटी बजाते हैं तो एक बुजुर्ग दादा जी गेट खोलते हैं और दोनों को अंदर बुला लेते हैं। लड़का कहता है दादा जी हमे रूम चाहिए तो दादा जी कहते हैं अच्छा दोनो भाई बहन हो तब दोनों साथ बोलते हैं नही हम दोस्त हैं और लिव इन मे रहते हैं और हम एक साथ ही जाॅब करते हैं। दादा जी ने कहा कि भाई अगर तुम्हारे माता पिता आकर कह दें कि इन दोनों को रूम दे दो तो मैं दे दूंगा अन्यथा रूम नही मिलेगा , ऐसे मे दोनो बोलते हैं कि आप कहाँ पिछड़े जमाने की बात करते हो किसी के माता पिता साथ रहने की इजाजत देते हैं क्या ? और हम आधुनिक युग के बच्चे हैं तो दादा जी कहते हैं कि बेशक बेटा पिछड़े जमाने के लोग प्रेम मे अलगाव होने पर हत्या नही करते थे। ऐसे साथ रहकर एक दूसरे का बुरा नही करते थे। तुम्हारी आधुनिक सोच से अच्छे थे पिछड़े जमाने के लोग।”
अंत मे दादा जी उस लड़के से सवाल करते हैं कि अगर तुम्हारी बहन होती तो क्या उसे लिव इन मे रहने की इजाजत देते और इस तरह वो लड़की अपने दोस्त का मुंह देखती रह गई। उसे सच का पता लग गया कि ये डबल स्टैंडर्ड है।
डॉक्यूमेंट्री संदेश देती है कि कोई भी व्यक्ति लिव इन मे रहने के लिए उनके माता पिता से पूछे बगैर रूम ना दें। थोड़े से पैसे कमाने के लिए बेटियों की मौत के अप्रत्यक्ष जिम्मेदार ना बनें। यह संदेश महानगर मे पहुंचना बेहद आवश्यक है कि लिव इन कानूनी मान्यता प्राप्त हो सकता है पर समाज सजग रहे तो माता पिता की जानकारी के बिना कोई इस तरह नही रह सकता जिससे किसी और श्रद्धा का कत्ल नही हो सकेगा।
इस पूरे मामले मे यही बात उठकर आ रही है कि श्रद्धा ने अपने माता पिता का कहना नही माना। जो सबसे ज्यादा जरूरी है। माता पिता के पास अनुभव होता है। समय के धूपछाँव को देख चुके माँ – बाप अपने बच्चों को हमेशा सही सलाह देते हैं। अगर श्रद्धा ने बात मान ली होती तो श्रद्धा जीवित होती। एक शानदार जिंदगी जी रही होती।
परंतु आफताब के प्रेम मे पागल हो चुकी श्रद्धा अपना विवेक खो चुकी थी। वह दिल से अधिक सोचने लगी और दिमाग की बत्ती गुल हो चुकी थी। जबकि जीवन मे दिल के साथ दिमाग की भी सुननी चाहिए। अगर वो दिमाग की सुन लेती तो आफताब के बहकावे का शिकार नही होती।
अब तक की जांच पड़ताल से एक बात सामने आई कि मुंबई मे लिव इन मे रहते हुए आफताब ने श्रद्धा को बेरहमी से पीटा था। 23 नवंबर 2020 की रात को आफताब ने इस तरह पीटा कि उसके चेहरे पर खूब चोट आई थी तब उसे अस्पताल मे भर्ती होना पड़ा था।
श्रद्धा के दोस्तों ने अस्पताल मे भर्ती करा के इलाज कराया। उसके दोस्तों ने आफताब की शिकायत पुलिस मे दर्ज कराने को कहा तब श्रद्धा ने तुलिंज पुलिस स्टेशन मे रिपोर्ट भी दर्ज करायी थी। जब एक बार बात थाना तक पहुँच गई तो श्रद्धा को खुद सोचना चाहिए कि उसकी सामाजिक प्रकृति से अलग सामाजिक प्रकृति का आफताब हमेशा के लिए उसका कैसे हो सकता है ? यहीं श्रद्धा से चूक हुई।
जबकि आफताब ने श्रद्धा का कत्ल कर देने की योजना पहले ही बना ली थी। अपने पॉलीग्राफी टेस्ट पर आफताब ने कहा कि उसने कत्ल योजना बनाकर किया था। जबकि इससे पहले वह पुलिस से भी बहाने बना रहा था ताकि रेयरेस्ट केस ना साबित हो सके और गुस्से मे कत्ल हो जाने की बात से उसको सजा कम मिलेगी। अब आफताब को सजा बेशक कम और ज्यादा मिले किन्तु यह केस सोशल स्टडी मे आ चुका है और लिव इन पर प्रश्न चिन्ह भी खड़े कर रहा है।
श्रद्धा मर्डर जैसा एक मामला बहुत पहले का तंदुर कांड नाम से जाना जाता है। सुशील शर्मा नाम के शख्स ने अपनी पत्नी नैना साहनी को झगड़े के दौरान गोली मार दी थी। इस एक मामले से आफताब के मामले को जोड़कर एक मानसिक वजह की ओर भी संकेत मिलते हैं कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो पेशेवर तरीके से कत्ल कर देते हैं। हो सकता है कि ऐसी मानसिकता बन जाती हो लेकिन कोई एक मामला इस पूरी थ्योरी को पुष्ट नही करता है।
जबकि वर्तमान परिदृश्य मे प्यार का व्यापार हो जाने की थ्योरी सामने आ रही हो तो श्रद्धा और आफताब के केस से अभी बहुत से ऐसे बिन्दु सामने आएंगे कि सचमुच समाज के संवेदनशील लोगों के रोंगटे खड़े जाएंगे। फिलहाल बेटियों को सावधान रहने की आवश्यकता है , अपना दोस्त और लाइफ पार्टनर चुनते समय उसके जीवन और तरीकों के बारे मे खूब जानकारी इकट्ठा करें और सिर्फ दिल नही दिमाग का भी प्रयोग करें तब श्रद्धा बनने से बचोगी बेटियों !
ये तय है कि इस तरह कि घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि , क्या आधुनिकता अभिशाप बनती जा रही है !
दिव्या त्रिपाठी चित्रकूट
( लेखिका महिला मोर्चा भाजपा की जिलाध्यक्ष भी हैं )