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By :- Saurabh Dwivedi

ब्लाक मुख्यालय पहाड़ी में पथरा निवासियों का जन सैलाब उमड़ पड़ा। जल संकट से उबरने के लिए जन सैलाब का उमड़ना समाज व संविधान के लिए खतरे की घंटी है। ऊपर से जब संकट दस पंद्रह वर्षों का हो और निदान के लिए मतदाता जनता गुहार लगा रही हो तब लोकतंत्र की पोल खुल जाती है। उन जनप्रतिनिधियों के विकास कार्यों की कलई खुलती है जो मत लेकर जनता के मातहत बनते हैं।

ब्लाक प्रमुख रेखा देवी , प्रमुख प्रतिनिधि देशराज यादव और खण्ड विकास अधिकारी विपिन कुमार सिंह ने जनता का ज्ञापन ले विश्वास दिलाया कि अतिशीघ्र जल संकट से निजात मिलेगी। किन्तु गौर करने योग्य है कि जिस गांव के लिए मार्च 2017 – 18 वित्तीय वर्ष में लगभग एक करोड़ बयासी लाख आवंटित हुआ। वह धन गांव तक क्यों नहीं पहुंच पाया ?

अधिकारी जवाब दें ……..

इस संबंध में जल संस्थान एवं पीडब्ल्यूडी की जवाबदेही बनती है। बुंदेलखण्ड विकास निधि से आवंटित हुआ धन वापस क्यों हुआ ? जनपद के जनप्रतिनिधि क्या कर रहे थे कि एक प्यास बुझाने वाला बड़ा प्रोजेक्ट कागज पर तैरता रह गया ? ये सवाल हैं जो गांव की जनता को प्रशासनिक अफसरों से करना चाहिए। नवागंतुक जिलाधिकारी चाहें तो अतिशीघ्र ही पथरामानी का दौरा कर जल संकट से निजात दिलाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

सदर विधायक ने खंगलवाईं थीं फाइल …

जल संकट की खबर चलते ही सदर विधायक चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय ने जिला उपाध्यक्ष भाजपा चंद्रप्रकाश खरे को सीडीओ आफिस से लेकर पीडब्ल्यूडी तक भेजकर फाइल निकलवाईं तो पता चला कि आया हुआ धन वित्तीय वर्ष के कारण वापस हो गया। इस संबंध में जानकारी मिली कि धन वित्तीय वर्ष समाप्त होने के सन्निकट आया था। जिससे खर्च नहीं हो पाया और अधिकारियों ने वापस जाने दिया। जबकि उड़ती खबर की बात की जाए तो कुछ टेंडर आदि होने की बात भी सुनने में आती है।

ब्लाक क्या कर सकता है ?…

असल में यह मामला ब्लाक का है ही नहीं। ब्लाक मुख्यालय में एक समूचे गांव को जल संकट से उबारने के लिए ना पर्याप्त धन होता है और ना ही कोई ऐसा मद आता है कि बोरिंग करा जल टंकी का निर्माण से लेकर घर-घर पाइप लाइन बिछवाई जा सके। तत्पश्चात वहाँ आपरेटर रखकर सुचारू रूप से योजना का क्रियान्वयन किया जा सके। चूंकि ब्लाक द्वारा मौखिक रूप से ट्यूबवेल लगवाने की बात कही गई है जो स्थाई हल बिल्कुल भी नहीं हो सकता। हाँ जनता को कुछ राहत मिलने की संभावना अवश्य जताई जा सकती है।

हाँ ब्लाक कुछ कर सकता है तो जनता की आवाज बनकर उच्चानिकारियों तक ज्ञापन भेजकर निदान हेतु निवेदन कर सकता है।

राजनीति की शिकार जनता….

जनता के माथे पर राजनीति का शिकार होना अदृश्य रूप से अंकित है। इस गांव की जनता ने बड़ी हिम्मत करके मतदान बहिष्कार करने का प्रथम निर्णय लिया था। उस वक्त तत्कालीन जिलाधिकारी मोनिका रानी पहुंचीं और उन्होंने चुनाव पश्चात समस्या हल हो जाने की बात कही। जनता ने मतदान कर दिया पर समस्या बनी रही।

इस बार भी लोकसभा चुनाव में जनता ने मतदान बहिष्कार किया। कुल तीन मत पड़ सके और तीनो मत चुनाव चिन्ह साइकिल पर पड़े। इससे भी सुनने में आया कि दलगत राजनीति करने वाले कुछ खुश हैं तो कुछ नाराज हो गए। खुश होने वाले भी संकट से उबार नहीं पा रहे तो नाराज लोगों से अपेक्षा भी क्या ?

इधर आंदोलन का समय और स्थान चयन भी राजनीति का शिकार होना तय कर देता है। सबको अपनी राजनीति चमकानी है , बेशक जनता को सही जानकारी मिले या ना मिले। असल में शिक्षित – अशिक्षित जनता को पता ही नहीं चलता कि विभागों का निर्माण समस्याओं के निदान के लिए हुआ है। जैसे कि जल संस्थान , जल निगम बना है तो जल समस्या का निदान यहीं से होना तय है। यह जनपद स्तरीय और प्रादेशिक सरकार द्वारा आवंटित धन पर मुहर लगने तक का मामला है और करोड़ो रूपए का बजट आवश्यक है। किन्तु राजनीतिक जिंदाबाद – मुर्दाबाद का चुनावी खेल खेलने वाले एक्टिविस्ट बेचारी जनता को सही जानकारी होने नहीं देते और भ्रमित करके आंदोलन ही गलत दिशा में होने लगे हैं।

अतः आवश्यक है कि जनता जागरूक हो और मांग को सही व्यक्ति , अधिकारी , विभाग पर रखें। कुलमिलाकर पथरा गांव की जनता को जल संकट से निजात मिलनी चाहिए। इस संदर्भ में ब्लाक प्रमुख पहाड़ी एवं खंड विकास अधिकारी की पहल कामयाब हो सकती है। बशर्ते जनता को भी राजनीतिक शिकार होने से बचने हेतु सही जानकारी रखना आवश्यक है।

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