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By :- Saurabh Dwivedi

इस दुनिया में रचनात्मक काम करने के लिए कहीं कोई बाधा नहीं है। कोई रोक – टोक नहीं है। यह व्यक्तिगत इच्छाशक्ति की बात है कि आप संसार को क्या देना चाहते हैं ? यह निर्णय आपका है कि छात्र / छात्राओं का मानसिक विकास भी करना चाहते हैं अथवा किताबी विकास तक सीमित कर वार्षिक परिमाण हाथों में थमाना चाहते हैं। भारत सरकार स्कूल में मिडडेमील चलाती है तो वहीं हमीरपुर के बांक परिषदीय विद्यालय में एक शिक्षिका लगातार रचनात्मक प्रयास कर रही हैं।

शिक्षिक समाज का वह शख्सियत है , जिसके हाथों में सचमुच देश का भविष्य है। इन्हें पर्याप्त मात्रा में वेतन भी मिलता है और कच्ची उम्र के बच्चे इनके आसपास रहते हैं। किताबी ज्ञान के सिवाय रचनात्मक कार्यों के विकास से बच्चे शोधार्थी होंगे। बचपन से ही बच्चों में शोधात्मक गुण विकसित होगा , जिससे भविष्य मे जीवन के हर क्षेत्र में बच्चे कुछ अलग करके दिखाएंगे।

शिक्षक एक अच्छी सोच को जन्म दे सकते हैं। बच्चों को समय और भविष्य के प्रति आगाह करते हुए उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। यह वक्त भी कुछ ऐसा है कि शिक्षक ही नकारात्मक संक्रामक सोच से देश को बचा सकते हैं। चूंकि डिजिटल दौर में इस देश की बड़ी संक्रामक सोच भी नजर आई है।

ऐसे में मंजीता अहिरवार जैसी शिक्षिका कभी क्राफ्ट के माध्यम से किताबी ज्ञान से इतर रचनात्मक विकास करती हुई नजर आती हैं तो कभी स्कूल में सब्जी उगाकर , यह सच है कि करीब – करीब प्रत्येक परिषदीय स्कूल में इतनी जगह होगी। जिसमें सब्जी उगाई जा सके।

बच्चों में पारिश्रमिक विकास भी होगा और शुद्ध हरी सब्जियां खाने को मिलेंगी। कृषि प्रधान देश में बच्चों में खेती गुण विकसित करना भी आवश्यक हो गया है। चूंकि एक दौर ऐसा आया है कि युवा खेती करने से पीछे हट रहे हैं और खेती के हाल ही बदहाल हो रहे हैं।

यदि इस प्रकार के प्रयास से बच्चों में परिश्रम और खेती का गुण विकसित किया जाता है तो अभिभावकों को विश्वास करना चाहिए कि उनका बच्चा एक युवा उम्र तक सशक्त सृजनात्मक व्यक्तित्व का स्वामी होगा। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं होगा।

शिक्षिका मंजीता अहिरवार के इस प्रकार के कार्यों से शिक्षकों को अनुकरण करना चाहिए। यदि ऐसे रचनात्मक कार्य प्रत्येक स्कूल मे होने लगें तो बच्चों के सर्वांगीण विकास मे सहायक होंगे और शिक्षक धर्म का पालन कर सुख भी मिलेगा।

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