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By :- Saurabh Dwivedi

जो प्याज की समस्या को नहीं हल कर पाए वो बलात्कार की समस्या को हल करेंगे ! असल समस्या राजनीति है। यह कोई एक दिन की बात नहीं है , बलात्कार जैसी त्रासदी भूकंप के झटकों की तरह है। जो विगत अनेक वर्षों से सामाजिक क्षरण के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।

यह ज्वालामुखी की तरह भी है ! जो अंदर ही अंदर अपना स्वरूप धारण कर रहा होता है और जब धधकता है तो उसका लावा नजर आता है। आसपास का सबकुछ आग में तब्दील हो जाता है।

सबसे अधिक अचरज इस बात है कि प्रत्येक यौन शोषण की घटना की पुनरावृत्ति के बाद आम आदमी के गुस्से की भी पुनरावृत्ति होती है। हर बार फाँसी और सार्वजनिक सजा की मांग की जाती है !

बेशक बलात्कार के अपराधियों को फाँसी दी जाए। इसमें कोई देर नहीं होनी चाहिए। साथ ही नाबालिग होने के नाम पर बचाव नहीं होना चाहिए। सजा होना अनिवार्य पहलू है।

परंतु इससे इतर भी समाज चेतना जागृत करे। चेतना विकसित करे और सोचे कि कमीं कहाँ पर है ? वजह क्या है ? अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि भी एक वजह हो सकती है।

जनसंख्या वृद्धि भी एक वजह इसलिये कि बच्चों के जन्म में गुणवत्ता नहीं रह चुकी है। जन्म के बाद पारिवारिक एवं आसपास का गुणवत्ताहीन सामाजिक माहौल भी जिम्मेदार है।

इससे इतर भी अनेक पहलू हैं। जिनकी पड़ताल ईमानदारी से की जाए तो स्वयं आत्मा स्वीकार कर लेगी। किन्तु ऐसा हो नहीं सकता , चूंकि अपनी कमियों पर ध्यान कौन देना चाहता है ?

यहाँ तो ऐसे लोग हैं जो नेतागिरी को लल्लनटाप बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा बच्चे जन्म देने के बयान देते हैं। किन्तु उनके रोजगार और उच्च जीवन स्तर की चिंता नहीं है। राष्ट्र के अंदर एक अच्छे माहौल की चिंता नहीं है।

विमर्श भी प्रत्येक पहलू पर उथले धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित हो गया है। एक दोषारोपण की प्रवृत्ति तेज रफ्तार से चल पड़ी है। जबकि सच है कि बलात्कार जैसी घटना को अंजाम देने वाले कुंठित अपराधिक मानसिकता के सिवाय और कौन हो सकते हैं ?

फिर हैं तो ये समाज के नागरिक ही ! ऐसे जानवर से बत्तर किस्म के नागरिक कहाँ से आ रहे हैं ? क्यों आ रहे हैं ? इनको सरकार जन्म दे रही है या समाज जन्म दे रहा है !

वास्तविकता की पड़ताल करने की आवश्यकता है कि कड़ी सजा होने से कोई बलात्कारी बलात्कार नहीं करेगा ? एक हत्यारा तीन सौ दो की धारा के बावजूद हत्या कर रहा है। सभी को पता है कि हत्या करने के बाद जेल जाना और फिर कम से कम उम्रकैद मिलेगी ही मिलेगी ! इससे पूर्व अपराधी सोचता है कि वह बच सकता है ! बहुत से हत्यारे बच जाते हैं।

कुछ बलात्कारी भी बचे हैं। कुछ ऐसे यौन शोषण करने वाले लोग हैं जो समाज की मुख्यधारा में सम्मान के साथ जी रहे हैं। ऐसे यौन शोषण कर चुके लोग समाज का मार्ग प्रशस्त करने वाले प्रोफेशन में हैं। ये क्यों हैं ? पता है इसलिये कि इनकी एफआईआर भी नहीं दर्ज करवाई गई और बेटी की शादी करके भेज दिया गया।

इस समाज में वो जीवित रहकर मुख्यधारा में काम कर रहा है , जिसने एक छोटी बच्ची का यौन शोषण किया। ऐसे लोगों को यह समाज जिम्मेदारी देता है , सब हमारे बीच के लोग हैं।

शोषण करने वाली मानसिकता ही खतरनाक होती है। वह शोषण मानसिक हो अथवा शारीरिक हो। यदि आफिस में बाॅस अपने जूनियर का शोषण करता है तो इस बात के खिलाफ आवाज किसने उठाई ? कितने ऐसे निजी क्षेत्र के कार्यालय और सरकारी कार्यालय होंगे , जहाँ किसी ना किसी का मानसिक शोषण हो रहा है।

सीनियर अपने जूनियर का शोषण कर रहा है। जिस जूनियर ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई तो उसे काम से अर्थात रोजगार से हाथ धोना पड़ गया , वह बेरोजगार हो गया ! उसे बेइज्जत कर निकाल दिया जाता है। जबकि वह अपनी जगह पर सही होगा !

शोषण एक मजदूर का भी होता है। कौन करता है मजदूर का शोषण ? सोचिए यह चिंतनीय पहलू , शोषण हमारे आसपास हो रहा है। आपके वर्किंग प्लेस पर कोई ताकतवर किसी का मानसिक शोषण कर रहा है तो कितनों ने शोषित के साथ आवाज उठाई ? कौन शोषणकर्ता के खिलाफ खड़ा होकर आवाज़ दे सका ! नहीं हम अपनी नौकरी बचाने के लिए निकल जाते हैं। अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए एक शोषणकर्ता को नजरंदाज कर देते हैं।

चूंकि बेटी का दैहिक शोषण इज्जत की बात है। वह सार्वजनिक हो गया तो सबकी मानसिक इज्जत की बात हो गई। यह बात हो गई कि नहीं हमें बहुत दुख है कि एक बेटी के साथ बलात्कार हो गया , यह अपनी आदर्श छवि हेतु जताना भी आवश्यक है ! यह महज एक बेटी का बलात्कार नहीं समूचे समाज का बलात्कार है कि हमने शोषण करने वाली मानसिकता के खिलाफ स्व की सिद्धि हेतु आवाज नहीं उठाई।

अगर बलात्कार की पुनरावृत्ति से बचना है तो बड़े सामाजिक बदलाव की ही जरूरत है। उस मानसिकता को खत्म करने की जरूरत है जो शोषण करती है , जैसे कि अपने से छोटों का शोषण और आफिस में पुरूष द्वारा पूरूष का मानसिक शोषण , महिला द्वारा महिला का मानसिक शोषण और वह तमाम मानसिक शारीरिक शोषण जो बलात्कार की घृणित घटना के अतिरिक्त इस समाज में घटित हो रहा है।

यह जंग किसी धर्म और व्यक्ति के खिलाफ नहीं होकर अपितु शोषण करने वाली मानसिकता के खिलाफ है , जिन्हें हम नजरंदाज करते हैं। यह गहरी बात है और इसकी प्रतिपूर्ति हेतु गहरी समझ रखनी होगी। इस ओर सोचना होगा ताकि एक बड़ा सामाजिक बदलाव आ सके , यहाँ प्रेम और अपनत्व के साथ सहज जिंदगी हो सके।

अंततः बात राजनीतिज्ञों की तो ये लोग समस्याओं को जन्म देने वाले हैं नाकि हल करने वाले , जब ये इंदिरा गांधी के जमाने से नरेन्द्र मोदी तक के जमाने में प्याज की समस्या नहीं हल कर सके तो आप निर्भया से दिशा तक इनसे उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? यह बात अलग है कि चार दिन गुस्सा दिखाकर हमें फिर पंख सिकोड़ कर शांत बैठ जाना है !

ॐ शांति

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