ठाकुर साहब 100 ₹ दो
उनके दूर जाते ही मैने पूछा कि आपके परिचित थे ? तो उन्होंने कहा नही !
मैने पुनः कहा कि देखो हम तीन थे और अगल – बगल ब्राह्मण थे और बीच मे आप ठाकुर !
तो मुझे लगा कि आपको जानते रहे होंगे।
मैने इससे पहले कभी उन बाबा जी को बस स्टैंड के आसपास कभी नही देखा , संभवतः पहली बार और अंतिम बार ही देखा हो।
ठाकुर साहब ने 10 का नोट निकाला और देने लगे तो वह बोले कि नही हम नागा हैं , देखो प्रयागराज जाना है !
आशीष सिंह रघुवंशी की जेब मे कुल 60 ₹ थे तो उन्होंने 50 की नोट निकाल दी उतने मे मैंने भी पर्स निकाला और देखा तो 50 की नोट थी , श्रद्धा भाव से आगे बढ़ा दिया।
बाबा जी की सेवा हो चुकी थी और वो आगे बढ़ गए तो विवेक को सेवा का अवसर नही मिला।
मेरे मन मे जिज्ञासा जन्म ली जिन्हें इतने बड़े चित्रकूट मे नही देखा वो अचानक से आए और दो को छोड़कर बीच वाले ठाकुर साहब के सामने आकर कहते हैं ठाकुर साहब 100 ₹ दो ……
अंततः आशीर्वाद देकर गंतव्य की ओर चले गए पर नागा बाबा अद्भुत थे। कोई तो थे जो भी थे वो इससे पहले कभी नही देखे गए और ना उनका चित्र लेने का अवसर मिला सबकुछ पल पल मे हो गया।
बस कहीं पढ़ा था कि जब सात्विक भाव किसी भी नर – नारी मे बढ़ेंगे तो उनके साथ ऐसी सुखद घटनाएं होंगी जैसे कोई साधु – संत अचानक से दर्शन दे जाएं और आशीर्वाद दे जाएं।
तो ऐसा लगा जैसे बाबा नीम करोली अचानक से दर्शन दिए और आशीर्वाद देकर ओझल हो गए क्योंकि हुआ ही कुछ ऐसा……..
उनके अंदर का गुण कहेंगे कि अंदाज ? जो सीधे इंगित कर एक को ठाकुर साहब कहते हैं और तीन को आशीर्वाद देकर जाते हैं , कुछ देर बाद कहाँ चले गए दूर तक दिखे नही !
बाबा जी की जय ! राम राम !!
Note : फोटो सांकेतिक है