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अपनी अद्भुत होती जा रही प्रेयसी को प्रेमी ये रचना उस समय लिखता है जब वो उसकी याद मे व्याकुल हो जाता है

यह एक दिलचस्प रिश्ता है जिसमे हम भावनात्मक रूप से डूबे रहते हैं। वो हर वक्त हमारे पास ना हो कर भी सूक्ष्म देह से रहती है। प्रेमी हो या प्रेयसी हर इंसान की एक सूक्ष्म देह होती है और जब प्रेम तन मन और आत्मा को एकाग्र कर देह से परे अवस्था मे आकार लेता है तब वो प्रेमी कविता रचने लगता है।

यह तब अधिक दिलचस्प हो जाता है जब ऐसी कविताओं में एक प्रेयसी खुद को महसूस करने लगे तब वो आंतरिक अहसास से अद्भुत प्रेयसी के रूप मे आकार लेने लगती है और प्रेम के सम्मोहन मे प्रेमी – प्रेयसी ऐसी ऊर्जा बन जाते हैं जो सबके लिए प्रेरणा बन जाते हैं , वो भी अदृश्य रूप से।

अपनी अद्भुत होती जा रही प्रेयसी को प्रेमी ये रचना उस समय लिखता है जब वो उसकी याद मे व्याकुल हो जाता है , वो बातें करना चाहता है पर बात नही हो सकती थी और बातें करता भी क्या ? इसलिए प्रेम की उस अवस्था को आकार देता है प्रेमी जब निःशब्द हो जाता है और संभवतः जो शब्द हृदय मे है वो है ‘ दर्द ‘ लेकिन रचनाकार प्रेमी दर्द बयां कर देता है अदृश्य रूप से कि उसकी प्रेमिका पढ़कर दर्द से अंकुरित हो रहे प्रेम को महसूस करेगी और एक ऐसे समय मे वो बातें कर लेगी कि फिर वो समय साक्षी होगा कविता और खत लिखने का।

यकीनन कल्पनालोक की प्रेमिका और प्रेमी का ये अद्भुत प्रेम सम्मोहन की उस अवस्था मे आकार लेता है जब वो दोनो काल्पनिक अहसास मे एकदम करीब एकदम करीब होते हैं और फिर दिल और धड़कन के आलिंगन से मखमली स्पर्श से एक ऐसी रचना जन्म लेती है तो इस उम्मीद मे कि ये शब्द हकीकत मे उसकी प्रेमिका तन मन और आत्मा मे स्वीकार कर रही है………

एक प्रेमी

निःशब्द
हो जाने कि
अवस्था
प्रेम है !

जहाँ
महान से महान
प्रेमी

कुछ कह
पाने की स्थिति मे
नही रहे

उसके शब्द
समुद्र में
डूबकर खो जाएं
कहीं…..

लहरें प्रेम की
हिलोरे मारें
यादें तट से
आकर टकरा जाएं

उसे प्रेयसी की झलक
सदृश्य नजर आए

और वो तड़पे
इतना कि तड़पता रहे
कुछ कह ना सके

एक प्रेमी
प्रेम की इस अवस्था मे
दर्द महसूस करते हुए
स्वयं मे स्थित रहता है।

तुम्हारा ‘ सखा ‘

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