By – Saurabh Dwivedi
पहली बार पुस्तक मेला ( प्रगति मैदान दिल्ली) जाने का सबकुछ पूर्व से ही निश्चित था। कहीं कोई शंका नहीं थी। किन्तु 29 दिसंबर की शाम बाईक चोरी होने के साथ पल भर में जिंदगी की तमाम योजनाएं बदल गईं।
मुझे भी महसूस हो रहा था कि पहली किताब के साथ पहली बार पुस्तक मेला जाने का अनुभव अपने आप में अद्भुत होगा। सोचता था कि कभी पुस्तक मेला नहीं जा सका। लेकिन जब पहुंचने का समय आया तब मेरी अपनी किताब भी वहाँ मौजूद होगी।
आज वहाँ साहित्य संचय प्रकाशन के इंस्टाल पर अंतस की आवाज है पर मैं नहीं हूँ। किन्तु किताब के रूप में मेरी वहाँ उपस्थिति दर्ज है।
बाईक की घटना कि परतें भी समझ में आने लगी हैं। पहली बार दिल – दिमाग यही कह रहा है कि योजना बनाकर बाईक चोरी करवाई गई। जिनके खिलाफ लिखा उनका ही हाथ होने की संभावना नजर आने लगी। कुछ गंध मिलने लगी है।
जब सामने से कोई हमला नहीं कर / करवा सकता तब आज के युग में वो हुआ जिसकी कल्पना मैं नहीं कर सकता था। लोगों को लगा कि इसे नुकसान पहुंचा दो लेखनी पर असर पड़ जाएगा। हाँ असर अवश्य पड़ेगा और धारदार हो जाएगी। जिंदगी की समझ बढ़ जाएगी। जीवन – दृष्टि अधिक सूक्ष्म हो जाएंगी।
आर्थिक क्षति आज नहीं तो कल पूर्ण हो जाएगी। समय की चाल के साथ मैं भी मानसिक रूप से मजबूत हो जाऊंगा। अधिक सावधानी के साथ लेखन जगत में आगे बढूंगा।
अभी तो बस दिल्ली के साथी एक बार साहित्य संचय प्रकाशन के इंस्टाल पर अवश्य पहुंचे। जहाँ अंतस की आवाज के साथ अन्य अच्छी किताबों से आपकी मुलाकात हो जाएगी। एक मुलाकात किताबों से जरूर करिए। किताब और मनुष्य की दोस्ती स्वविवेक के तराजू में सबसे भारी , सबसे अच्छी दोस्ती होती है।