वीरांगना महारानी दुर्गावती की मूर्ति का अनावरण संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया। मूर्ति अनावरण के लिए वे सतना जिले के मझगवां पहुंचे और मूर्ति अनावरण कर इतिहास को फिर एक बार जीवित कर दिया।
15 वीं शताब्दी मे महिलाएं कितनी सशक्त थीं इसका प्रमाण महारानी दुर्गावती हैं जिन्होंने युद्ध भूमि मे मुगलों को तीन बार परास्त किया।
मूर्ति अनावरण कार्यक्रम मे पहुंची महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष दिव्या त्रिपाठी ने बातचीत मे कहा कि वह साक्षात दुर्गा थीं और बुन्देलखण्ड का इतिहास कितना गौरवान्वित करने वाला है कि हमारे पड़ोसी जनपद बांदा के कालिंजर किले मे 5 अक्टूबर 1524 को वह जन्मी थीं , तो सवाल समय के सापेक्ष बड़ा खड़ा होता है कि बुन्देलखण्ड मे महिलाओं का नेतृत्व कुछ खास क्यों नजर नही आ रहा ?
रानी दुर्गावती का जन्म भी खास दिन हुआ। दुर्गा अष्टमी के दिन जन्मी संतान का नाम दुर्गावती रखा गया। इनके तेज , साहस , शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि फैल गई।
इनका विवाह राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के साथ हुआ। लेकिन दलपत शाह का निधन विवाह के 4 वर्ष बाद हो गया। उस दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का था। रानी ने पुत्र को गद्दी मे बिठाकर शासन संभाल लिया।
महारानी दुर्गावती के शासन मे जनता खूब समृद्ध हुई और उनके राज्य गोंडवाना का विकास हुआ। धार्मिक कार्यों मे धर्मशाला और बावड़ी आदि बनवाए।
एक समय अकबर को रानी के दुश्मनों ने भड़काया और अकबर की सेना ने रानी के राज्य पर चढ़ाई की तो उस युद्ध मे भी रानी दुर्गावती ने साहस का परिचय दिया। जब रानी को लगा कि अब अंत समय आ सकता है तो महारानी दुर्गावती ने खुद के सीने मे कटार घोंप लिया और इस तरह वह बलिदान दे दीं , उनके इस साहसिक कार्य से अकबर का सेनापति खूब परेशान हो गया चूंकि वह रानी को अकबर के सामने पेश नही कर पाया।
अब 21 वीं सदी मे रानी दुर्गावती की मूर्ति का अनावरण होने से महिलाओं को प्रेरणा मिलेगी और उनके जीवन से सीखकर वर्तमान समय मे नेतृत्व के हर क्षेत्र मे कार्य करने के लिए अवसर मिलने चाहिए।