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महिलाओं की उन्नति तब ही संभव है जब समाज में उन्हें समान अवसर और स्वतंत्रता मिले। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पुरुषों को भी इस बदलाव में सहभागी बनना होगा। महिलाओं के प्रति सोच और व्यवहार में परिवर्तन लाना आवश्यक है, ताकि वे बिना किसी भेदभाव के हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।

हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इसका उद्देश्य सिर्फ एक दिन महिलाओं की उपलब्धियों को सराहना नहीं, बल्कि उनके सशक्तिकरण और समानता की दिशा में ठोस कदम उठाना है। दिव्या त्रिपाठी के विचार इस बात को रेखांकित करते हैं कि महिला उत्थान केवल आरक्षण या सरकारी नीतियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे समाज के हर स्तर पर व्यवहार में उतारने की आवश्यकता है।

समानता का स्वतंत्र संसार

महिलाओं की उन्नति तब ही संभव है जब समाज में उन्हें समान अवसर और स्वतंत्रता मिले। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पुरुषों को भी इस बदलाव में सहभागी बनना होगा। महिलाओं के प्रति सोच और व्यवहार में परिवर्तन लाना आवश्यक है, ताकि वे बिना किसी भेदभाव के हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।

आज महिलाएं घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे राजनीति, विज्ञान, समाजसेवा और आध्यात्मिक क्षेत्र में भी नए आयाम स्थापित कर रही हैं। गांव से लेकर संसद तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा देश का बजट प्रस्तुत करना और स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ‘आयरन लेडी’ के रूप में सम्मानित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि महिलाएं नेतृत्व की भूमिका में किसी से पीछे नहीं हैं।

सशक्तिकरण और मर्यादा का संतुलन

महिला सशक्तिकरण का अर्थ यह नहीं है कि समाज में किसी भी वर्ग के प्रति अन्याय को बढ़ावा दिया जाए। महिलाओं को मिले अधिकारों का उपयोग न्याय के लिए करना चाहिए, न कि अनुचित लाभ उठाने के लिए। सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि महिलाएं भी मर्यादा और नैतिकता का पालन करें।

यह भी सत्य है कि समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराध चिंता का विषय हैं। ऐसे में, कानूनी और सामाजिक उपायों के साथ-साथ महिलाओं को स्वयं भी आत्मनिर्भर और जागरूक बनना होगा, ताकि वे किसी भी प्रकार के शोषण या भेदभाव का सामना करने में सक्षम हों।

सशक्तिकरण का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर

महिला नेतृत्व और उनकी भागीदारी से आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा मिलेगी। जब एक महिला सशक्त होती है, तो वह न केवल अपने परिवार बल्कि समाज को भी प्रभावित करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, राजनीति, व्यवसाय—हर क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ रही है और यह समाज के विकास में सहायक सिद्ध हो रही है।

निष्कर्ष

इक्कीसवीं सदी महिला सशक्तिकरण की सदी बन सकती है, यदि पुरुष और महिलाएं मिलकर एक समानता भरा समाज बनाने की दिशा में कार्य करें। केवल नारे लगाने और महिला दिवस मनाने से बदलाव नहीं आएगा, बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को समान अवसर और स्वतंत्रता मिले।

आइए, इस महिला दिवस पर हम संकल्प लें कि महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हम अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करेंगे। सशक्त महिलाएं ही एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र की नींव रख सकती हैं।

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