दिव्या त्रिपाठी प्रधान संघ जनपद चित्रकूट की जिलाध्यक्ष हैं। सेमरिया गांव से प्रधान पद की शपथ लेने के साथ ही चर्चा का विषय बन गई , जब उन्होंने एक महिला प्रधान को शपथ लेने का तरीका बताया। इस तरह से इनका सफर चल पड़ा और प्रसिद्धि के साथ जनपद की अच्छी नेत्री के रूप में उभर रही हैं.
1) एक प्रधान के तौर पर आप बहुत प्रसिद्ध हुईं क्यों ?
एक प्रधान के तौर पर या फिर महिला प्रधान के तौर पर ? बेशक मुझे दोनों स्वरूप में जो प्रसिद्धि मिली उसके पीछे सर्वप्रथम मैं अपने पति …… को धन्यवाद कहना चाहूंगी। मैं आजीवन एक जनप्रतिनिधि होने के नाते उनकी कृतज्ञ रहूंगी। चूंकि हमारे यहाँ का जो परिवेश है , उसमें महिलाओं को किसी पद पर होने के बावजूद पूर्ण विश्वास से इतनी स्वतंत्रता नहीं मिल पाती जितनी कि मुझे मेरे पति ने प्रदान की।
मुझे आज भी शपथ समारोह का दिन याद है जो मेरी स्मरण शक्ति में स्वयं ही झलकने लगता है। हुआ ये कि शपथ ग्रहण समारोह में जाने से मैं अकेले डर रही थी। मैंने इनसे आग्रह किया कि मेरे साथ चलिए तो इनका जवाब था कि नहीं , आज से तुम अपना सारा काम अकेले करोगी अर्थात स्वयं करोगी। मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगा।
तत्पश्चात मैं शपथ ग्रहण समारोह के लिए अंदर प्रवेश कर गई। वहाँ जो नजारा देखा उसमें जितनी महिला प्रधान थीं सब में एक असहाय भाव था। थोड़ी हिचक थी। इसलिए तो शपथ लेते वक्त एक महिला , लेती हूँ को लेता हूँ बोल गई। इतने मे ही मैंने उन्हें सजह भाव से कहना उचित समझा कि आप ” मैं शपथ लेती हूँ ” बोलिए। ” वहाँ से यह बात मीडिया मे भी चर्चा का विषय हो गई। मुझे भी हिम्मत मिली।
इसके बाद सफर चलता रहा। मेरे मन में गांव का कायाकल्प बदलने की इच्छाशक्ति थी। वही विचार अमल में ला सकी तो विकास और सामाजिक कार्यों में सक्रियता बड़ी वजह रही कि एक प्रधान के रूप में प्रसिद्धि मिली। जनता ने पसंद किया और मेरी कार्यशैली से प्रधान संघ ने महत्व प्रदान किया। उन अफसरों को भी धन्यवाद कहना चाहूंगी जिन्होंने गांव के विकास में तीव्र गति से प्रस्तावओं को पारित किया। यहीं से एक गांव के तीव्र विकास की अवधारणा बन जाती है। मुझे मेरे काम करने की ललक पर पूरा भरोसा है कि एक दिन महात्मा गांधी की यह बात चरितार्थ होगी कि भारत की आत्मा गांव हैं और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी एवं सीएम योगी आदित्यनाथ जी की समस्त योजनाओं के साथ स्वच्छता – स्वस्थता अभियान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है , आशा करती हूँ कि गांव की जनता के सहयोग से हम इस अभियान में सफल होगें और सभी को प्रसन्नता होगी। चूंकि प्रधान बनना प्रसिद्धि से कहीं अधिक बढ़कर ये है कि गांव की युवतियों , महिलाओं , युवाओं एवं बुजुर्गों के उच्च जीवन स्तर के लिए काम किया जाए। यही मेरे विचार और उद्देश्य हैं।
2) महिला होने से कभी दिक्कत का सामना करना पड़ा ?
सर्वप्रथम ना कहना चाहूंगी। किन्तु सत्य है कि दिक्कतें हर राह मे आती है पर निर्भर स्वयं पर करता है कि दिक्कतों का सामना कैसे कर रहे हैं ? मैंने खुला आसमान सा संसार पाया और राजनीति के क्षेत्र में सशक्त विचार रखे। यदि कभी कुछ महसूस हुआ तो फौरन उस बात का विरोध दर्ज कराया। राजनीति के क्षेत्र में एक महिला वास्तव में पुरूष के मुकाबले अधिक ताकतवर होती है , शर्त सिर्फ इतनी सी है कि वह हर सही बात से सहमति जताए व गलत का विरोध करे।
यही मेरी ताकत रही है। दूसरी सबसे बड़ी बात कि मैं अधिकारी हों या जनप्रतिनिधि सभी से विनम्रता से बात करती हूँ तो मुझे सहयोग भी उसी विनम्र भाव से मिला। राजनीति के क्षेत्र में विनम्रता नेता / नेत्री का श्रृंगार है और कहना चाहूंगी कि समय बदल रहा है। भविष्य में राजनीति में विनम्र लोग ही सेवा भाव से उन्नति के शिखर पर होगें। इसलिये दिक्कतें बड़ी व्यक्तिगत हैं बस समय पर हैंडिल करना आना चाहिए।
3) ग्रामीण महिलाओं के जीवन प्रति आपकी क्या राय है ?
मेरी अब तक की ग्रामीण यात्रा बतौर प्रतिनिधि व इससे पहले जन्म से ही मेरा जीवन ग्रामीण जीवन से जुड़ा रहा। मैं स्वयं महिला हूँ , एक महिला के संघर्ष को आत्मीयता से महसूस करती हूँ। इसलिये उनके जीवन स्तर को उच्च बनाने के लिए व्यापक सुधार की जरूरत है। जिसके लिए पारिवारिक संस्था व पुरूषों को भी उदार मन से महिलाओं के जीवन और जीवन अस्तित्व के प्रति विचार करना चाहिए।
स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता मे फर्क होता है। मैं स्वछंदता का विरोध करती हूँ पर स्वतंत्रता की पैरोकार हूँ। महिलाओं को भी इतनी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए कि वह अपने जीवन का विस्तार कर सकें। जिस ओर रूचि हो उस क्षेत्र में अच्छा काम कर सकती हैं। साथ ही परिणाम यह मिलेगा कि महिलाओं के चेहरे पर रौनक होगी व काम करने का सुख होगा।
अभी बड़ा भयानक दृश्य देखने को मिल जाता है कि वक्त से पहले ही चेहरे पर झुर्रियां और उदासी के भाव झलक जाते हैं जो सचमुच किसी भी संवेदनशील महिला और पुरुष मन को द्रवित कर देगा। अतः मुझे लगता है कि समाज में अभी भी वैचारिक रूप से बहुत काम करने की जरूरत है। ताकि औरतों का भी अपना संसार हो , वह राजनीति मे हो या व्यापार में अथवा कोई घरेलू उद्योग ही हो। सरकार ने इस ओर कुछ प्रयास किए हैं। जैसे कि समूह आदि द्वारा परंतु अभी भी बहुत बड़ी सामाजिक सहभागिता आनी शेष है ! मैं भी उम्मीद से हूँ कि हमारे जनपद और समूचे बुंदेलखण्ड में बड़ा व्यापक बदलाव आएगा।
4) महिलाओं को राजनीति मे कहाँ देखती हैं ?
यह सवाल बड़ी चिंता का विषय है। एक ओर भारत महिला आरक्षण की बात करता है और आधी आबादी की अधिकाधिक भागेदारी चाहता है। परंतु बुंदेलखण्ड का कड़वा सच है कि यहाँ कि महिलाओं को वह स्वतंत्रता और विश्वास नहीं मिल सका कि राजनीति के क्षेत्र में अपनी आकांक्षाओं का विस्तार दृढ़ इच्छाशक्ति से कर सकें।
कुछ एक उदाहरण ऐसे भी सुनने को मिल जाते हैं कि जो महिलाएं दहलीज डांक कर निकली भी उन्हें राजनीतिक माहौल ने तोड़ दिया। चूंकि राजनीति का स्तर जब गिर जाता है उसमे संवेदनशील स्वभाव के लोग अंगद की तरह लंका में पैर नहीं जमाए रख सकते। चूंकि पुरूषों के मुकाबले स्त्री मन अत्यधिक संवेदनशील होता है। इसलिये मेरा मानना है कि यदि महिलाओं को उचित माहौल मिले और परिजन विश्वास के साथ स्वतंत्र कर सकें तो यहाँ से भी कोई निर्मला सीतारमण बनकर हमारे समाज को गौरान्वित कर सकती है। कितना सुख महसूस होता है जब ये दिखता है कि भारत जैसे विशाल राष्ट्र का सुरक्षा मंत्रालय एक महिला के जिम्मे है और उन्होंने बखूबी निभाया।
एक उदाहरण से पुरूषों को समझना होगा कि हम कहाँ गलती कर रहे हैं ? समाज को सोचना चाहिए। तब जाकर कोई महिला राजनीति हो या व्यवसाय का क्षेत्र लगभग प्रत्येक क्षेत्र मे वह अपना सतप्रतिशत दे सकती है। चूंकि बुंदेलखण्ड रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है और उनकी गाथा हमे गारान्वित करती है। इसलिये यहाँ संभवानाएं अत्यधिक हैं , सिर्फ माहौल मिलने व बनाने की जरूरत है। मैं चाहूंगी कि राजनीति के क्षेत्र मे महिलाएं आगे आएं व नेतृत्व की बागडोर संभाले , जिससे तय है कि एक माँ अपने बच्चों / पीढ़ियों के भविष्य के लिए अच्छा सृजन करेगी।
5) अवसर मिले तो क्या प्रधान पद से आगे की राजनीति करना चाहेंगी ?
हाँ बिल्कुल आगे भी राजनीति करना चाहूंगी। मैं इसे एक छोटे से ग्रामीण परिवेश के उदाहरण से प्रस्तुत करना चाहूंगी जो शहरी परिवेश मे भी तमाम महिलाएं प्रयोग मे लाती हैं जो कम से कम प्रेशर कूकर प्रयोग नहीं करतीं। उस पर भी तीन बार सीटी आने का उदाहरण है लेकिन यदि हांडी का चावल चेक करना है तो हांडी मे से एक चावल निकालकर देखा जाता है कि पका है कि नहीं ?
यदि एक चावल पक गया तो शेष सभी चावल पके हुए मान लिए जाते हैं। एक अवसर मिला और गांव के चहुंमुखी विकास के लिए काम किया। वर्तमान कार्यकाल मे बहुत से कार्य संपन्न हुए शेष कागज के घोड़े दौड़ा दिए हैं। जिसका परिणाम विकास के रूप में भविष्य मे भी मिलेगा। इसलिये मुझे आगे भी अवसर मिला तो जनपद का नेतृत्व कर ऐसे विकास की अवधारणा से समाज व सरकार को परिचित कराना चाहूंगी। मेरा सतत प्रयास समाज मे परिवर्तन लाने हेतु जारी है।
6) बुंदेलखण्ड की राजनीति के प्रति आपका क्या नजरिया है ?
मेरी समझ में बुंदेलखण्ड की राजनीति में अभी बहुत बदलाव की आवश्यकता है। यहाँ शुरूआत से दबंगो का शासन चलता रहा है। दबंग शुरू से सत्ता में काबिज हुए। किसी दार्शनिक ने कहा था कि सत्ता विचारों की होती है। जिस प्रकार के विचार के लोग सत्ता मे होगें वैसे ही सत्ता का स्वरूप दिखेगा जो घिनौना स्वरूप राजनीति का दिख रहा है , वह इसी का परिणाम है कि वर्तमान मे कोई सच्चा , सभ्य और ईमानदार स्वभाव की महिला हो या पुरुष बामुश्किल ही राजनीति मे सफल हो पाएगा।
कुछ आमूलचूल परिवर्तन हुआ। फिर भी दबंगों की कमी आने के साथ अत्यधिक धनबली का होना भी राजनीति में नए लोगों का ना प्रवेश कर पाना बड़ा घातक है समाज के लिए ! इसलिये यहाँ की राजनीति में कम से कम संक्रमित जहरीली जातिवादी सोच का अंत हो और मुझे अवसर मिला तो बिजली , सड़क तथा पानी के सिवाय आम जनमानस में सकारात्मक मानसिक परिवर्तन लाने के लिए भी काम करूंगी।
7) मंदाकिनी नदी के संदर्भ मे क्या कहेंगी ?
यह सवाल समूचे चित्रकूट की जनता एवं किसानों के साथ यहाँ के आध्यात्मिक संस्कृति – सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है। मंदाकिनी नदी भूख – प्यास बुझाने से लेकर जीवनयापन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही मंदाकिनी को स्पर्श करती हुई वायु मनुष्य के फेफड़ो के लिए वरदान है। स्वच्छ जल – स्वच्छ वायु मानव जीवन के लिए अमृत है। साथ ही निर्मल – अविरल मंदाकिनी पर्यटकों के लिए बड़े आकर्षण का केन्द्र हो सकती है। इसके लिए चित्रकूट समाज को जागृत करना प्रथम उद्देश्य है। मैं स्वयं सतत प्रयास करूंगी कि माँ मंदाकिनी पुनर्जीवन हेतु अपना सौ प्रतिशत दे सकूं।
मंदाकिनी नदी से जल संकट का अंत संभव है। परंतु मंदाकिनी स्वयं संकट मे है तो यहाँ का आम जनजीवन स्वयं ही संकटग्रस्त हो जाता है। यह सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। बल्कि यहाँ समस्त समाज की जिम्मेदारी है। नदी सूखने ना पाए इसके लिए सरकारी प्रयास तब सफल होगा जब सामाजिक प्रयास हठयोग की तरह किया जाए। इस लक्ष्य को प्राप्त करना मानव जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना है। वर्तमान समय में जो जनप्रतिनिधि हैं , वे गंभीरता से समाज के साथ बैठें तो चित्रकूट नदी पुनर्जीवन के लिए भारत ही नहीं वरन् विश्व के लिए उदाहरण बन सकता है।
मंदाकिनी नदी का सीमांकन हो और दोनों किनारों पर वृक्षारोपण की मुहिम से इस सुंदर दर्शनीय स्थल बनाया जा सकता है। जो आवाज उठ रही है , वह गूंजने लगी है। यह गूंज मंदाकिनी नदी के साथ हमारे लिए शुभ है।
8) जनपद चित्रकूट विकास से कितना पीछे है ?
इस सवाल का जवाब मैं क्या दूं ? सरकारी आंकड़े स्वयं हाथी सी गर्जना कर रहे हैं। फर्क सिर्फ सुनने और ना सुनने का है। हाल ही में केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा एक आंकड़ा जारी हुआ था , जिसमे चित्रकूट को पिछड़े जिले की सूची मे शामिल किया गया। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु युवा जिलाधिकारी विशाख जी भेजे गए। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य था कि युवा अधिकारी विकास के लिए अधिक काम करेगा।
किन्तु राजनीतिक सामाजिक चेतना की भी जरूरत है। जनप्रतिनिधि बने हुए लोग यहाँ के चहुंमुखी विकास का सैद्धांतिक खाका कभी खींच नहीं सके। जब तक स्थानीय स्तर पर कम से कम एक वर्ष और पांच वर्ष के विकास का सैद्धांतिक खाका नहीं खीच लिया जाएगा तब विकास लक्ष्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
इसलिए मेरा विचार है कि स्थानीय स्तर पर जनता और नेता स्वयं मंथन कर विकास का लक्ष्य तय करें। प्रधान भी गांव का इस तरह विकास करें कि पर्यावरण से लेकर रोजगार तक के द्वार गांव से खुल सकें। चूंकि भारत कृषि प्रधान देश है और यहाँ रोजगार गांव से महानगर की ओर होना चाहिए।
एक और बात चित्रकूट को विजनरी नेता की आवश्यकता है। जो समय के साथ अवश्य पूरी होगी , ऐसा मेरा मानना है। समय अवसर देता है और वह समय अतिशीघ्र आएगा जब चित्रकूट के माथे से पिछड़े होने का कलंक मिटेगा। जबकि सत्य है कि श्रीराम की तपस्थली होने से यहाँ की प्रसिद्धि व वैभव राष्ट्रीय – अंतर्राष्ट्रीय जगत तक है और विकास के लक्ष्य से हम दुनिया का संपूर्ण ध्यान आकृष्ट करा सकते हैं। धन्यवाद।
(सौरभ द्विवेदी
8948785050)
Very nice