By :- Saurabh Dwivedi
इस तस्वीर की खूबसूरत सच्चाई यह है कि नग्न बच्चे को जिलाधिकारी के हाथों से खाना मिल रहा है। खुशी की बात यह है कि जिलाधिकारी और बच्चे की बीच की दूरी का खात्मा हुआ है। बच्चा जिलाधिकारी को परिजन की तरह महसूस कर रहा है , बालक है पर जानता नहीं कि यह कोई जिलाधिकारी हैं ! अगर बालक जानता होता कि जिलाधिकारी हैं , तो बेशक भयभीत हो जाता है। किन्तु भूख से बड़ा भय क्या ?
भूख हमें रूलाती है। गरीब बच्चे की भूख का दर्द महसूस करना मानवता का दर्शन है। बेशक कोरोना महामारी है पर कोरोना समाज की सच्चाई से व्यक्ति का हस्ताक्षर करवाता है। लोकतंत्र की प्रगति का बड़ा सूचक भी कोरोना बन रहा है।
जहाँ एक समय अधिकारी और समाज की अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के बीच दूरियां हुआ करती थीं। वहीं आज अधिकारियों के कर्तव्य की बात जमीनी स्तर और व्यक्ति तक क्या पहुंची कि जिलाधिकारी के हाथों का स्पर्श मासूम को नसीब हुआ।
यह सच साफ नजर आया है कि महामारी के खिलाफ मनुष्यता के जारी युद्ध में चित्रकूट जिलाधिकारी शेषमणि पाण्डेय की संवेदनशीलता नजर आई है। उनके जमीनी स्तर के कार्य जीवन के हित मे नजर आए हैं और बड़ी बात है कि इतिहास में जब – जब कोरोना याद किया जाएगा , तब – तब चित्रकूट में इन जिलाधिकारी का नाम लिया जाएगा।
जिलाधिकारी याद रखे जाएंगे परंतु इस नग्न बच्चे को भी समाज ना भूले , जनप्रतिनिधि ना भूलें और चिंतन करें कि बालक नग्न क्यों है ? एक बालक नग्न है तो महसूस कर लो कि लोकतंत्र नग्न है ? लोकतंत्र को भी वस्त्र पहनने की आवश्यकता है , तभी इस बालक को वस्त्र नसीब होगें !
इस बच्चा का भी बड़ा सौभाग्य है कि जिलाधिकारी के हाथों भूख समाप्त हुई , वैसे तो बच्चे की भूख मां के वात्सल्य और स्नेहिल हथेलियों से बने भोजन से तृप्त होती है।
यह समाज की सच्चाई है कि एक ही तस्वीर में बच्चा और जिलाधिकारी संयुक्त रूप से वायरल होते हैं। यह जिलाधिकारी का मानवीय कार्य है कि वह भूख शांत करने के लिए भी स्वयं तत्पर हैं। इनकी संवेदनशीलता की चर्चा चहुंओर व्याप्त है , पर यह बालक ? इस बालक की चर्चा ? इसका अभी नाम भी गुमनाम , सिर्फ इतना पता है कि ” भूखा बालक ” था।
संभव है कि भविष्य मे कभी यह बालक जिलाधिकारी हो जाए। बच्चे राष्ट्र के भविष्य होते हैं तो संभव है कि अच्छी परवरिश मिल जाए तो बच्चा मुख्यमंत्री – प्रधानमंत्री भी बन जाए और ऐसा इसलिए कि रंग से काले नग्न भूखे बच्चे की भूख सहृदयी जिलाधिकारी ने मिटाई है।
यह तस्वीर हमारे समाज का हस्ताक्षर है। प्रत्येक तस्वीर समाज का हस्ताक्षर होती है। यदि संवेदनशीलता से गरीब , भूख और जीवन स्तर की ओर सोचकर राजनीति हुई होती तो कोरोना संकट के समय एक ही तस्वीर में गौरव व शर्म का दर्शन ना मिलता। यह दर्शन ही कोरोना संकट समाप्त होने के बाद समाज के लिए आगे बढ़ने का स्रोत होना चाहिए , नेतृत्व की सोच मे समाहित होना चाहिए।
समाज की कड़वी हकीकत है ये।