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@Saurabh Dwivedi

कम पढ़े-लिखे युवा मजदूरों के आसपास खड़ा था , संभवतः वे निरक्षर भी हों। वे अपना काम कर रहे थे और मैं उनका काम देख रहा था। वे आपस हंसी-मजाक भी कर रहे थे , हंसते हुए मेहनत का काम करना जिंदगी मे आनंद का मूल मंत्र है। जिस काम मे रूचि हो वही काम किया जाए तो सफलता और जीवन के आनंद का संयुक्त उपक्रम हो जाता है।

असल मे काम ऐसा ही होना चाहिए , जिसमे हमारी रूचि हो। जिस कार्य मे प्रकृति द्वारा प्रदान की हुई प्रतिभा की उपयोगिता हो पाए। प्रतिभा के अनुकूल काम करने मे जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होता है और उस काम के विशेषज्ञ की तरह सुखमय प्रदर्शन करते हैं।

यह जीवन का मूलमंत्र है परंतु जिंदगी मे आंतरिक रूप से बहुत कुछ घटित होता है। चूंकि युवा मजदूर आपसे मे बात कर रहे थे , उनके पास एंड्रायड मोबाइल भी था ! एक युवा मजदूर एकाएक कहता है कि चलो आज सेक्सी मूवी देखा जाए।

मैंने जैसे ही सुना कि वह मजदूर कह रहा है कि चलो आज सेक्सी मूवी देखी जाए , तो अचंभित रह गया। मैं एक तरफ सोच रहा था और दूसरी ओर से मेरे कानों मे उनकी खिलखिलाहट गूंज रही थी।

वे तीन – चार युवा मजदूर आपस मे सेक्सुअल डिबेट करके ठहाका मार रहे थे। इतने मे एक मजदूर ने कहा कि दारू कौन पिलाएगा ?

सेक्सी मूवी और दारू के नशे से बड़ा काकटेल और क्या हो सकता है ? , ऐसा मेरे मन मे चल रहा था ! मैं सोचने लगा कि जैसे ये युवा मजदूर एंड्रायड मोबाइल मे सेक्सी मूवी देखने और दारू पीने की बात कर रहे हैं तो यही एक बड़ा कारण है जब ये लोग अनियंत्रित हो जाएं तब अपराध सरलता से घटित हो जाता है।

उन युवा मजदूरों की आपस की बातों मे एक ओर से और आवाज आई , उसने कहा कि देख तो लोगे पर शांति कहाँ से लाओगे ? अब खूब समझा जा सकता है कि ये कौन सी शांति है ! देह मे लगी आग की शांति की बात है। जब देह मे आग लग जाएगी तब उस पर पानी कैसे पड़े कि आग बुझ जाए ?

अर्थात समझिए कि महसूस करने की क्षमता सभी मे होती है। एक सामान्य सा मजदूर भी देखते – सुनते महसूस करता है। वह एक उम्र के बाद दैहिक जरूरत को महसूस करने लगता है। देह मे जाग रही इच्छा को साकार रूप प्रदान करने के लिए वह सेक्सी मूवी का सहारा लेता है , और दारू भी आसानी से मिल जाती है।

पर उस मजदूर के पास वह औरत नहीं है , जिसे वह प्रेम करता हो। या फिर उसकी पत्नी हो। मजदूर ही क्या अपितु ऐसा बिन विवाह के समाज मे वर्जित है , विवाह के बिना सेक्स एक अपराध है। और प्रेम वैसे भी अपराध माना जाता है , प्रेम से अधिक वर्जित इस समाज मे कुछ भी नहीं है।

अगर कहीं कोई मान्यता है तो वह विवाह की मान्यता है। फिर हो चुकी पत्नी से प्रेम नहीं भी हो तब भी समाज उसे दैहिक सुख प्राप्त करने के लिए मान्यता प्रदान कर देता है। वह पति कुछ महसूस करे ना करे परंतु देह की भूख को थाली मे लगे व्यंजन की तरह गप्प कर मिटा सकता है। फिर कहीं किसी को किसी भी समाज को कोई तकलीफ नहीं होती सिवाय मुहल्ले वाले – रिश्ते वालों के कि अभी तक बच्चे नहीं हुए इसलिए बच्चे भी जन्म देना अनिवार्य हो जाता है। बेशक वह मन – मस्तिष्क से बच्चों का पालन-पोषण कर पाने को तैयार हों या ना हों परंतु बच्चे को जन्म देकर , मर्द के सीने मे समाज की मुहर लग जाती है !

संघर्ष के इसी गोल चक्कर मे यौन अपराध की पूरी थ्योरी व्याप्त है। किन्तु समाज चाहता है सरकार सब ठीक कर दे ! सरकार ऐसी हो कि बेटियां सुरक्षित हों लेकिन बेटों को समाज कब सुरक्षित करेगा ! जैसे वे युवा मजदूर आपस मे बात कर रहे थे , उससे साफ प्रतीत हुआ कि बलात्कार का अदृश्य ट्रेलर देख रहा था , जो आफलाइन अपनी भूमिका मे था।

बलात्कार के तमाम कारणों मे से एक नजदीकी कारण एंड्रायड मोबाइल , एडल्ट मूवी और दारू का काकटेल है। लेकिन यह गरीब – मजदूर वर्ग बस मे हद तक माना जा सकता है। बलात्कार के सिर्फ इतने ही कारण नहीं हैं बल्कि दैहिक आकर्षण व अपरिपक्व प्रेम सहित अन्य तमाम कारणों के साथ समय के साथ समाज मे बदलाव ना आना भी है। चूंकि बलात्कार सिर्फ मजदूर वर्ग नहीं करता अपितु बलात्कार के हाई-प्रोफाइल मामले भी होते हैं।

उनका अट्टहास बड़ा खतरनाक महसूस हो रहा था और मैं स्वयं को दयनीय महसूस कर रहा था। सिर्फ यह सोच रहा था कि बलात्कार होते रहेंगे और अब कुछ नहीं किया जा सकता है ! यह समाज पहले से अधिक मानसिक रूप से बीमार हुआ है और मानसिक इलाज के लिए समाज तैयार नहीं , बीमार करने के लिए सबकुछ सहज उपलब्ध है लेकिन इस बीमारी से बचने के एंटीबायोटिक थिंक वैक्सीन लेने को कोई तैयार नहीं है।

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