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@Saurabh Dwivedi

अगस्त माह के प्रथम बुधवार को अधीक्षक जिला कारागार अशोक कुमार सागर से मुलाकात हुई , मौका था क़ैदियों को अगरबत्ती प्रशिक्षण देने का और उस समय ही क़ैदियों मे सुधार आदि बिंदुओं पर मार्मिक चर्चा हुई।

वह अपनी कुर्सी पर बड़ी सरलता सहजता से बैठे हुए लगते हैं और हर आने जाने वाले मधुर स्वभाव मे संवाद करते हैं जैसे उनका स्वभाव पानी के रंग जैसा हो और सोच उतनी ही निर्मल और अविरल है।

वह क़ैदियों के लिए चिंतित रहते हैं कि जिस जेल वह बतौर अधीक्षक हैं वहाँ के क़ैदियों मे सुधार हो। वह मानसिक रूप से विकास करें जब यहाँ से बाहर जाएं तो कुछ ऐसा हुनर लेकर निकलें कि अच्छा व्यवसाय स्थापित कर लें और आर्थिक रूप से सक्षम होकर समाज मे बदलाव के लिए काम करें।

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कहते हैं आत्मा बहुत दूर की सुन लेती है। जब मुझे जेल से बुलावा आया तब अचानक महसूस हुआ कि किताब ले जाऊं और किताब वही ली जो परमात्मा की कृपा से मुझे इस समाज की हकीकत लिखने का अवसर मिला और उम्मीद है कि अधीक्षक अशोक कुमार सागर को सोशल काॅकटेल मे वह सब मुद्दे मिलेंगे जिन सुधारों की वह बात करते हैं।

हमारी बातचीत बेहद मार्मिक रही लोकतंत्र से लेकर समाजतंत्र तक चर्चा हुई। युवाओं के जीवन पर हम सबने प्रकाश डाला , प्रिया मसाले के डायरेक्टर बृजेश त्रिपाठी भी इस मर्मज्ञ चर्चा के सबसे प्रमुख पक्षकार रहे वह एक व्यवसायी होने के साथ समाज सुधार मे बहुत बड़ी भूमिका खुद निभाते हैं। इस दौरान मेरे युवा साथी विवेक तिवारी भी जेल से समाज सुधार जैसी चर्चा मे सहभागी रहे।

अधीक्षक जिला कारागार की गहरी मर्मज्ञता से यह सुनने को मिला कि वह यहाँ अच्छी लाइब्रेरी खोलना चाहते हैं। चित्रकूट के जेल मे लाइब्रेरी होने से बंदी यहाँ कुछ पढ़ेंगे जिससे आत्मचिंतन कर सकेगे। यह सच है कि अपराध अच्छी मानसिकता से ही समाप्त किया जा सकता जिसमे किताब की सबसे मुख्य भूमिका होती है।

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